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ईमान के पचड़े में परिवार को तबाह करते रहे

सीतामढ़ी : भले ही वसंत ऋतु अभी शुरू हुआ है, पर इसका खुमार साहित्यकार, शायर व कवियों पर छाने लगा है. इनकी गतिविधियां तेज हो गयी है. वैसे ठंड के मौसम में भी अपने अंदर के साहित्य को ठंड से जमने नहीं दिये. बीच-बीच में कवि सम्मेलनों के माध्यम से जिले के शायर व कवि […]

सीतामढ़ी : भले ही वसंत ऋतु अभी शुरू हुआ है, पर इसका खुमार साहित्यकार, शायर व कवियों पर छाने लगा है. इनकी गतिविधियां तेज हो गयी है. वैसे ठंड के मौसम में भी अपने अंदर के साहित्य को ठंड से जमने नहीं दिये. बीच-बीच में कवि सम्मेलनों के माध्यम से जिले के शायर व कवि अपनी साहित्यिक गतिविधियां रखे रहे. वसंत ऋतु में गीता भवन, डुमरा के पुस्तकालय में पहली कवि गोष्ठी आयोजित की गयी. प्रसाद साहित्य परिषद के तत्वावधान में हुई गोष्ठी की अध्यक्षता इंजीनियर सचिंद्र कुमार हीरा ने की. — मुहब्बत की गहराई समंदर गीतकार गीतेश की रचना ‘मुहब्बत की गहराई समंदर से भी ज्यादा है, न हो यकीं तो पढ़ लो सामने श्रीकृष्ण राधा है’ से कवि गोष्ठी का आगाज हुआ. नवोदित कवि दिनेश पेंटर की रचना ‘हे जननी तू जन्म न दे’, जितेंद्र झा की ‘जल-जल कर तू इस तरह निखर कि..’, रामकृष्ण वेदांती की रचना ‘बहुत खेले चंचल लहरों से..’ व विकास कुमार की रचना ‘भविष्य को हादसों से पार ले जाना है’ की खूब सराहना की गयी. कैसे कोई ईमानदार व्यक्ति फक्का-कशी की जिंदगी जीने को मजबूर हो जाता है, इसी चीज को सुरेश वर्मा ने अपनी रचना के माध्यम से रेखांकित किया. यह कि ‘ईमान के पचड़े में परिवार को तबाह करते रहे, पत्नी फटी साड़ी में तो बच्चे नमक-भात से निबाह करते रहे’. सत्येंद्र मिश्र, अशोक कुमार सिंह, डा शत्रुघ्न यादव, सुरेश लाल कर्ण, मुरलीधर झा मधुकर, रामबाबू सिंह व डा आनंद प्रकाश वर्मा ने भी अपनी रचनाएं पढ़ी.

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