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बीके त्रिपाठी ने 23 प्रिंटरों को पहुंचाया 17.23 करोड़ का लाभ
विवेक चंद्र रांची : शिक्षा विभाग के पूर्व प्रधान सचिव बीके त्रिपाठी ने पद पर रहते हुए प्रिंटरों को करोड़ों रुपये का मुनाफा पहुंचाया है. उन्होंने नियम विरुद्ध 23 प्रिंटरों को 17.23 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया. कम संख्या में किताबों की छपाई कराने और निर्धारित समय से कई माह बाद तक इसकी आपूर्ति […]
विवेक चंद्र
रांची : शिक्षा विभाग के पूर्व प्रधान सचिव बीके त्रिपाठी ने पद पर रहते हुए प्रिंटरों को करोड़ों रुपये का मुनाफा पहुंचाया है. उन्होंने नियम विरुद्ध 23 प्रिंटरों को 17.23 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया. कम संख्या में किताबों की छपाई कराने और निर्धारित समय से कई माह बाद तक इसकी आपूर्ति करने पर प्रिंटरों को दंडित किया गया था.
उनकी राशि काट ली गयी थी. पर, बीके त्रिपाठी ने पिछले एक दशक के अंदर सभी प्रिंटरों को रोकी या काटी गयी राशि का सूद सहित भुगतान कर दिया. इस राशि का भुगतान वर्ष 2013-14 में बच्चों की किताबों की खरीद करने के लिए प्राप्त राशि से किया गया. शिक्षा परियोजना की तत्कालीन निदेशक पूजा सिंघल ने इस मामले में सरकार को रिपोर्ट भेजी है.
प्रिंटरों से अपील की सुनवाई कर किया भुगतान : बीके त्रिपाठी को वर्ष 2012-13 में शिक्षा विभाग का प्रधान सचिव बनाया गया था. कुछ समय बाद उन्हें शिक्षा परियोजना निदेशक का अतिरिक्त प्रभार भी सौंप दिया गया. प्रभार लेने के बाद उन्होंने शिक्षा सचिव के रूप में 2005-06 से 2013-14 तक की बकाया राशि के लिए प्रिंटरों से अपील करायी.
जबकि नियम के अनुसार, काम पूरा करने के 30 दिनों के अंदर ही संबंधित व्यक्ति सरकार के फैसले के विरुद्ध अपील कर सकता है. बीके त्रिपाठी ने प्रिंटरों से प्राप्त अपील पर सुनवाई करते हुए रोकी या काटी गयी राशि को बकाया करार दे दिया. साथ ही सभी प्रिंटरों को भुगतान करने का आदेश जारी कर दिया. यही नहीं, उन्होंने बतौर शिक्षा परियोजना निदेशक राशि भुगतान के लिए प्रिंटरों को खुद ही चेक काट कर दे दिया. इसके लिए विभागीय मंत्री या कैबिनेट की स्वीकृति लेने की जरूरत तक नहीं समझी.
किताब आपूर्ति में गड़बड़ी के लिए काटी गयी राशि का सूद समेत किया भुगतान
मुख्य सचिवों के आदेशों का उल्लंघन
– नवंबर 2007 में तत्कालीन मुख्य सचिव आरएस शर्मा ने कम संख्या में किताबों की आपूर्ति करने के लिए झांसी की पितांबरा बुक्स को भुगतान में से 26 लाख रुपये काटने का आदेश दिया था. बीके त्रिपाठी ने अपील की सुनवाई के बाद इस राशि को सूद सहित लौटाने का फैसला किया. 34.20 लाख रुपये का भुगतान चेक के माध्यम से कर दिया.
– 2008-09 में किताबों की आपूर्ति नहीं करने के लिए नोएडा के प्रिंटर मेसर्स गोपसंस पेपर्स को 4.69 करोड़ रुपये काट कर भुगतान करने का आदेश तत्कालीन मुख्य सचिव पीपी शर्मा ने जनवरी 2008 में दिया था. पर, श्री त्रिपाठी ने सुनवाई के बाद 2.62 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया.
– 2008-09 में ही पितांबरा बुक्स का कम किताबों की आपूर्ति को लेकर 1.04 करोड़ रुपये काटा गया था. देरी के लिए 2.09 करोड़ रुपये काटा गया था. बीके त्रिपाठी ने इसमें से 1.88 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया.
– इसी तरह अन्य प्रिंटरों की ओर से की गयी गलती के लिए काटी गयी उनकी राशि का भुगतान कर दिया
किताब खरीद में घोटाले के हैं आरोप
बीके त्रिपाठी पर किताबों की खरीद में खास कंपनी को टेंडर देने के लिए शर्तो में व्यापक फेरबदल का आरोप है. टेंडर के बाद प्रकाशकों को लगभग 30 करोड़ रुपये का भुगतान भी किया जा चुका है. केंद्र सरकार की रोक के बाद शेष राशि का भुगतान नहीं किया जा सका है. राज्य सरकार ने आरोपों की जांच के लिए विकास आयुक्त की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनायी है.
नहीं उठाया फोन
वर्तमान में राजस्व पर्षद के सदस्य के रूप में पदस्थापित बीके त्रिपाठी से उनका पक्ष जानने के लिए कई बार फोन किया गया. पर उन्होंने फोन नहीं उठाया. उनका पक्ष जानने के लिए उनके मोबाइल पर मैसेज भी किया गया, पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
त्रिपाठी पर लगते रहे हैं आरोप
1983 बैच के आइएएस अधिकारी बीके त्रिपाठी अपने कारनामों से चर्चित रहे हैं. कैबिनेट में निहित शक्तियों का खुद ही इस्तेमाल करने के अलावा वित्तीय गड़बड़ियों के भी आरोपी रहे हैं. पर, किसी भी मामले में सरकार ने उन पर कोई कार्रवाई नहीं की.
प्रमंडलीय आयुक्त रहते हुए रांची से दिल्ली जाने के दौरान उन्होंने हवाई अड्डे पर हंगामा किया था. स्वर्ण रेखा बहुद्देशीय परियोजना के निदेशक के पद पर रहते हुए तीन करोड़ रुपये की सरकारी जमीन एक बिल्डर को दे दी थी. जबकि उन्हें ऐसा करने का वैधानिक अधिकार नहीं था.
उस वक्त जमीन के हस्तांतरण का अधिकार कैबिनेट के पास था. सरकार ने तत्कालीन जल संसाधन सचिव से मामले की जांच करायी थी. इसमें त्रिपाठी द्वारा अपने ही स्तर से बिल्डर को जमीन देने की बात प्रमाणित हुई. पर, तत्कालीन सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की.
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