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विकल्प तलाश रही है देश की जनता

दिल्ली चुनाव के बाद देश में झाड़ू का जादू फिर हावी हो गया. बसंत आने के पहले ही कमल मुरझा गया. अभी तो गर्मी की तपिश बाकी ही है. वहीं, हाथ को थामने वाला अब कोई नहीं. दिल्ली की राजनीति में पहली बार किसी राजनैतिक पार्टी को इतनी बड़ी जीत नसीब हुई है. आम आदमी […]

दिल्ली चुनाव के बाद देश में झाड़ू का जादू फिर हावी हो गया. बसंत आने के पहले ही कमल मुरझा गया. अभी तो गर्मी की तपिश बाकी ही है. वहीं, हाथ को थामने वाला अब कोई नहीं. दिल्ली की राजनीति में पहली बार किसी राजनैतिक पार्टी को इतनी बड़ी जीत नसीब हुई है. आम आदमी पार्टी की आंधी में मोदी की लहर का पता ही नहीं चला. भाजपा के लिए यह सबसे निराशाजनक बात रही.
दरअसल, दिल्ली में हुए इस बदलाव के पीछे कई अहम कारण हैं, जिसे राजनीतिक दलों को बारीकी से समझना होगा. बीते कई वर्षो से दिल्ली में दो ही दलों का शासन चलता चला आ रहा था. कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस. कांग्रेस की लंबी राजनीतिक यात्रा ने लोगों को अधिक ऊबा दिया. हालांकि, दिल्ली में कांग्रेस ने अपने शासन के पहले दो कार्यकाल में विकास का अच्छा पैमाना तय किया, लेकिन उसका तीसरा कार्यकाल उसी के लिए घातक सिद्ध होने लगा. दिल्ली के लोगों के पास कोई तीसरा विकल्प ही नहीं था, जिसे अपना कर वे इन दोनों दलों को सबक सिखा सकें. हालांकि, कई दलों ने अपनी उपस्थिति दर्ज तो करायी, लेकिन वे विकल्प नहीं बन सके.
पिछले साल के दिसंबर में जब आम आदमी पार्टी की कांग्रेस समर्थित सरकार बनी. अरविंद केजरीवाल ने 49 दिनों की सरकार चला कर दिखा दिया, तो लोगों में उम्मीद जगी. आग में घी का काम किया भाजपा के नेताओं का अहं भरा भाषण और पूर्व के चुनावों का तोड़-जोड़. लोगों ने कांग्रेस को भी सबक सिखाने का मौका मिला और उन्होंने दोनों दलों को पटखनी दे दी. सबसे बड़ी बात यह है कि आज देश के लोगों को भी एक अच्छे विकल्प की तलाश है. राष्ट्रीय फलक पर अभी तक कोई वैसा दल उभरा नहीं है, जिसे विकल्प बनाया जा सके.
विवेकानंद विमल, पाथरोल, मधुपुर

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