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उत्पाद घोटाला: स्पेशल ऑडिट टीम कर रही जांच, शराब माफियाओं की उड़ी नींद

मुंगेर: उत्पाद विभाग में फर्जी चालान पर शराब के उठाव के मामले की जांच अब वित्त विभाग की स्पेशल ऑडिट टीम द्वारा की जा रही है. टीम खास कर उन पहलुओं की विशेष जांच कर रही कि आखिर प्रतिवर्ष होने वाले एनुअल ऑडिट के बाद भी किस प्रकार लगभग आठ करोड़ के घोटाला को अंजाम […]

मुंगेर: उत्पाद विभाग में फर्जी चालान पर शराब के उठाव के मामले की जांच अब वित्त विभाग की स्पेशल ऑडिट टीम द्वारा की जा रही है. टीम खास कर उन पहलुओं की विशेष जांच कर रही कि आखिर प्रतिवर्ष होने वाले एनुअल ऑडिट के बाद भी किस प्रकार लगभग आठ करोड़ के घोटाला को अंजाम दिया गया और वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट में यह पकड़ा नहीं जा सका. वित्त विभाग के जांच से एक बार फिर शराब माफियाओं की नींद उड़ गयी है.
क्या था मामला
उत्पाद विभाग के अधिकारियों एवं मुंगेर के लाइसेंसधारी शराब माफियाओं ने मिल कर एक बड़े घोटाले को अंजाम दिया. एजी बिहार के रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय वर्ष 2012-13 एवं 2013-14 के जांच में 7.77 करोड़ के जालसाजी का उजागर हुआ है.
जिसमें मुंगेर के अनुज्ञप्तिधारी मजीद अहमद, केके चौधरी, शंभु कुमार सोनी, एसके चौधरी, मनोज कुमार सोनी, दीपक कुमार, मंटू कुमार, सीएस मंडल, विनय यादव, कैलाश कुमार, ओमप्रकाश यादव, पिंकु कुमार, संजीव कुमार यादव, पंकज ठाकुर ने फर्जी चालान के आधार पर करोड़ों रुपये का घोटाला किया है.

ऑडिट रिपोर्ट में बताया गया है कि फर्जी चालान के आधार पर शराब का उठाव होता रहा और विभाग के खाते में राशि जमा नहीं हुई. मजीद अहमद ने मई 2012 से दिसंबर 2012 तक जो चलान जमा किया वह पुरी तरह से फर्जी निकला. इसके साथ ही शंभु सोनी जुलाई 2012 में 2 लाख के विरुद्ध मात्र 5 हजार का चलान जमा कर फर्जी उठाव कर लिया. यूं तो इस मामले में कोतवाली थाने में 1 मार्च 2014 को कांड संख्या 74/14 दर्ज है. किंतु अबतक मुख्य आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई है. उस मामले में उस समय मात्र 1.70 करोड़ का मामला पकड़ा गया था. जबकि यह राशि बढ़ कर अब 7.77 करोड़ पहुंच चुका है.

फरवरी में उजागर हुआ मामला
विदित हो कि फरवरी 2014 के अंतिम सप्ताह में यह मामला उजागर हुआ था. तत्कालीन जिलाधिकारी नरेंद्र कुमार सिंह ने मामला का उद्भेदन किया था.
प्रधान लिपिक ने कर ली थी आत्महत्या
विभाग के प्रधान लिपिक योगेंद्र कुमार को मुख्य आरोपी करार देते हुए उसे तत्कालीन जिलाधिकारी के आदेश पर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. इसके साथ ही एक कंप्यूटर ऑपरेटर व विभाग के लिपिक को भी गिरफ्तार किया गया था. गिरफ्तारी के बाद प्रधान लिपिक योगेंद्र कुमार ने जहर खा लिया. तबीयत बिगड़ने पर उसे अस्पताल में भरती कराया गया. लेकिन दो दिन बाद उसकी मौत अस्पताल में हो गयी. उसकी मौत को भी संदेहास्पद माना गया था.
कहते हैं उत्पाद अधीक्षक
उत्पाद अधीक्षक प्रमोदित नारायण ने बताया कि घोटाले की जांच की जा रही है. जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है.
13 लोगों की पायी गयी संलिप्तता
उत्पाद विभाग में करोड़ों के हेराफेरी में पुलिस अधीक्षक ने अपने जांच प्रतिवेदन में 13 लोगों में संलिप्तता पायी है. जिसमें विभाग के प्रधान लिपिक योगेंद्र कुमार (अब मृत), विभाग के सहायक लिपिक अनंत कुमार व अभिमन्यु सिंह, कंप्यूटर ऑपरेटर बृजनंदन कुमार सहित लाइसेंसी अनुज्ञप्तिधारी शंभु कुमार सोनी, मनोज सोनी, ओम प्रकाश यादव, कैलाश कुमार, पिंकु कुमार, जवाहर मिश्र, पंकज ठाकुर व मजीद अहमद शामिल हैं.
अनुसंधान विभाग भी कर रही जांच
घोटाले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले को आर्थिक अपराध अनुसंधान इकाई को सौंप दिया गया है. जो अपने स्तर से इस मामले की जांच नये सिरे से कर रही है. उनकी जांच में विभागीय अधिकारी व कर्मचारी, बैंकर्स एवं विभाग का ऑडिट करने वाले ऑडिटर को संदेश में रखा गया है.
मुंगेर घोटाले की देन ई-चालान
मुंगेर फर्जी चालान के माध्यम से हुए उत्पादन घोटाले से विभाग और सरकार ने सबक लिया. मुंगेर घोटाले की देन है कि अब ई-चालान के माध्यम से राशि जमा की जाती है और फिर शराब का परमिट विभाग द्वारा लाइसेंसधारी दुकानदारों को दिया जाता है.
वित्त विभाग की टीम पहुंची मुंगेर
उत्पाद घोटाले की पुन: जांच के लिए वित्त विभाग द्वारा 3-3 सदस्यों का दो टीम गठित किया गया है. जिसमें 3 सदस्यीय एक टीम मुंगेर पहुंच कर फाइलों को खंगाल रही है. जबकि दूसरी टीम दो-तीन दिनों में मुंगेर पहुंचने वाली है.

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