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दिल्ली विधानसभा चुनाव के फलितार्थ

लोकसभा चुनावों के दौरान अपनी सभाओं में अपने भाषणों से तालियां बटोरनेवाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे वोट के रूप में तब्दील किया, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में सभाओं के दौरान उनके भाषणों पर बजनेवाली तालियां वोट में बदली नहीं जा सकीं. इसका अर्थ यह है कि इस चुनाव में प्रधानमंत्री द्वारा दिये गये भाषणों […]

लोकसभा चुनावों के दौरान अपनी सभाओं में अपने भाषणों से तालियां बटोरनेवाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे वोट के रूप में तब्दील किया, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में सभाओं के दौरान उनके भाषणों पर बजनेवाली तालियां वोट में बदली नहीं जा सकीं. इसका अर्थ यह है कि इस चुनाव में प्रधानमंत्री द्वारा दिये गये भाषणों में अहंकार की बू आती रही और मतदाताओं की सोच के अनुरूप वह खरे नहीं उतर सके.

आज भारत की जनता साठ के दशक वाली नहीं रह गयी है, जो सिर्फ बातों के जाल में आकर फंस जाये. आज के लोग अधिक सतर्क और मेहनतकश हैं. जिस तरह उनके काम के बाद नतीजे भी तुरंत देखे जाते हैं, वैसे ही वे भी सरकारी घोषणाओं के नतीजे देखना चाहते हैं. यही वजह रही कि दिल्ली के चुनावों में भाषणों की भिन्नता के कारण हार मिली.

डॉ अरुण सज्जन, जमशेदपुर

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