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तो अर्थव्यवस्था हो सकती है बेपटरी

पटना: राज्य की मौजूदा सरकार की अंधाधुंध घोषणाओं पर अमल हो जाये तो बिहार की अर्थव्यवस्था एक बार फिर बेपटरी हो सकती है. जो राज्य बहुत दिनों बाद मुश्किल से वित्तीय प्रबंधन के रास्ते चल कर विकास दर की ऊंचाई को छुआ था. सारे प्रयास बेकार साबित होंगे. राज्य का वित्तीय प्रबंधन न केवल नीतीश […]

पटना: राज्य की मौजूदा सरकार की अंधाधुंध घोषणाओं पर अमल हो जाये तो बिहार की अर्थव्यवस्था एक बार फिर बेपटरी हो सकती है. जो राज्य बहुत दिनों बाद मुश्किल से वित्तीय प्रबंधन के रास्ते चल कर विकास दर की ऊंचाई को छुआ था.

सारे प्रयास बेकार साबित होंगे. राज्य का वित्तीय प्रबंधन न केवल नीतीश कुमार के शासन काल में सुधर रहा था. बल्कि उनके पहले की राबड़ी सरकार में भी खजाने की स्थिति अच्छी थी. नीतीश कुमार ने जब शासन संभाला, तो उनके सामने सरप्लस बजट उपलब्ध था. 12 वें वित्त आयोग की सिफारिश पर राज्य को पहले से अधिक पैसे प्राप्त हुए थे. 13 वें और 14 वित्त आयोग की सिफारिश पर भी राज्य को अच्छी सहायता मिली. हालांकि यह 12 वें वित्त आयोग की सिफारिश में कम था, लेकिन इसके बाद भी लगातार राज्य का वार्षिक योजना आकार बढ़ता गया. वर्तमान सरकार की घोषणाओं को लागू करने की स्थिति में गैर योजना मद के खर्च बढ़ जायेंगे. इसका असर विकास पर होगा.

1990 के पहले की सरकार द्वारा चतुर्थ चरण में कॉलेजों के अंगीभूत करने के खामियाजे से सरकार अभी तक उबर नहीं पायी है. यह सही है कि शिक्षकों को बेहतर वेतन मिलनी चाहिए. लेकिन, बेहतर वेतन के पहले बेहतर शिक्षक और उनकी नियुक्ति भी बेहतर तरीके से होना जरूरी है. वित्त विभाग के दस्तावेज बताते हैं कि 2005-06 में राज्य का योजना आकार 4300 करोड़ रुपये था. जो बढ़ कर 2014-15 में 57392 करोड़ रुपये हो गया. सरकार ने अपने आतंरिक संसाधनों में भी बढ़ोत्तरी की. 2005-06 में राज्य का अपना राजस्व 35 सौ करोड़ था जो गुड गवर्नेंस के कारण बढ़ कर 2014-15 में 25662 करोड़ रुपये हो गया. पहली बार चालू वित्तीय वर्ष में बजट राशि एक लाख करोड़ को पार कर 1,16,886 करोड़ रुपये निर्धारित हुआ. यह सब हुआ तब सरकार ने गैर योजना खर्च में कटौती की और विकास कार्यो को तरजीह दी. वर्तमान में सरकार को पेंशन पर सालाना 11,600 करोड़ और वेतन पर 13 हजार करोड़ रुपये सालाना खर्च करना पड़ता है. प्रतिमाह देखें तो औसतन 12-13 सौ करोड़ रुपये सिर्फ वेतन पर खर्च करने पड़ रहे हैं.
ट्रेजरी खैरात में बांटने की चीज नहीं : वशिष्ठ
पटना. मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी द्वारा लगातार की जा रही घोषणाओं पर जदयू ने आपत्ति जतायी है. जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि ट्रेजरी खैरात में बांटने के लिए नहीं है. ताबड़तोड़ घोषणा करने से विकास नहीं होगा. वे क्षति पहुंचाने के लिए ऐसा कर रहे हैं. ‘घोषणा’ व किसी को ‘राहत’ देने से ही विकास नहीं होता. विकास के लिए रोड मैप, नजरिया, दृष्टिकोण बड़ा पाठ होता है. मांझी कहते थे कि वे नीतीश कुमार के पद चिह्नें पर चलेंगे और उनकी नीति को आगे बढ़ायेंगे, लेकिन वे राजनीतिक रूप से नीतीश कुमार को क्षति पहुंचा रहे हैं. पार्टी के एजेंडे में जो सोच व ख्याल रखना चाहिए,मांझी ने वे नहीं किया. नीतीश कुमार को जीतन राम मांझी अपना आइकन मानते थे. वे कई बार कह भी चुके हैं, लेकिन अब उनके बयानों में विरोधाभास है.
राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी के बयान पर जदयू प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि उन्होंने राजनीतिक टिप्पणी की है. जब संवैधानिक पद पर कोई व्यक्ति बैठता है, तो राजनीतिक रूप से ऊपर उठ कर उनको काम करना चाहिए. 48 घंटे में अपना फैसला नहीं दिया, तो पहले ही चार दिन का समय ले लेना चाहिए था. जो उन्होंने बयान दिया, वह राजनीतिक मर्यादा के खिलाफ है.

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