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सब्सिडी के चक्कर में परेशान उपभोक्ता

बिहार की बड़ी आबादी रसोई गैस पर केंद्र के निर्देशों व राज्य सरकार की उदासीनता के कारण परेशान हैं. बैंक में डायरेक्ट सब्सिडी ट्रांसफर योजना के चक्कर में करीब 30 प्रतिशत आबादी को पिछले दो महीने से रसोई गैस की आपूर्ति नहीं की गयी है. केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रलय का निर्देश बता कर गैस डीलर उपभोक्ताओं […]

बिहार की बड़ी आबादी रसोई गैस पर केंद्र के निर्देशों व राज्य सरकार की उदासीनता के कारण परेशान हैं. बैंक में डायरेक्ट सब्सिडी ट्रांसफर योजना के चक्कर में करीब 30 प्रतिशत आबादी को पिछले दो महीने से रसोई गैस की आपूर्ति नहीं की गयी है. केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रलय का निर्देश बता कर गैस डीलर उपभोक्ताओं को परेशान कर रहे हैं.

इधर राज्य सरकार का खाद्य व आपूर्ति विभाग इस मामले में पूरी तरह चुप है. विभाग के अधिकारी यह कह कर जिम्मेवारी से बचना चाह रहे हैं कि रसोई गैस के डीलर केंद्र के निर्देश पर काम करते हैं. लेकिन यह उनकी थोथी दलील है. रसोई गैस की आपूर्ति सही तरीके से हो, उपभोक्ता परेशान न हों, सब्सिडी ठीक जगह पर पहुंचे, यह सब देखना राज्य सरकार का विषय है. इस बात में न कोई भ्रम है और न इसकी रत्ती भर की गुंजाइश. ग्रामीण इलाकों में कुछ गैस डीलरों ने डायरेक्ट सब्सिडी योजना के बहाने उपभोक्ताओं को परेशान करना शुरू कर दिया है. जगह-जगह से इस बारे में खबरें आ रही हैं.

जिलों के प्रशासन की ओर इस संबंध में जो भी निर्देश दिये जा रहे हैं, उसे रसोई गैस डीलर नहीं मान रहे हैं. केंद्रीय पेट्रोलिय मंत्रलय की ओर से यह साफ तौर पर निर्देश है कि मार्च तक रसोई गैस उपभोक्ता को अपनी सब्सिडी के लिए बैंक खाता का नंबर उपलब्ध कराना है. इस निर्देश को रसोई गैस के डीलर व पेट्रोलियम कंपनियों के स्थानीय अधिकारी अपने मुताबिक परिभाषित कर रहे हैं. उपभोक्तों पर गलत ढंग से दबाव बनाने के लिए रसोई गैस की आपूर्ति नहीं कर रहे हैं.

उपभोक्ता सड़क पर उतरने को बाध्य हैं. बिहार-झारखंड दोनों ही राज्यों में रसोई गैस की आपूर्ति का बैकलॉग रोज बढ़ता ही जा रहा है. इस तरह के मामले में राज्य सरकारों को पूरी संजीदगी के साथ उपभोक्ताओं को राहत दिलाने का काम करना चाहिए.

राज्य स्तर पर गैस उपभोक्ताओं की समस्याओं व उसके निदान को लेकर केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रलय के प्रतिनिधि, पेट्रोलियम कंपनियों, बैंक प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करके एक रास्ता निकाला जाना चाहिए. इस तरह की पहल कर्नाटक समेत कुछ दूसरे राज्यों ने किया है. उन राज्यों में इस पहल का अच्छा असर भी पड़ा है. उपभोक्ताओं की परेशानी कम हुई है.

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