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हम और हमारा ईश्वर

इस संसार में जिन-जिन महापुरुषों ने आत्मज्ञान की प्राप्ति कर ली है, उन्होंने अपने अनुभव की पुष्टि की है कि हम अपना जीवन परमात्म तत्व से एक दिव्य प्रवाह के रूप में पाते हैं. हममें और परमात्मा में कोई भेद नहीं है. हम और हमारा ईश्वर एक सत्य के ही दो नाम और दो रूप […]

इस संसार में जिन-जिन महापुरुषों ने आत्मज्ञान की प्राप्ति कर ली है, उन्होंने अपने अनुभव की पुष्टि की है कि हम अपना जीवन परमात्म तत्व से एक दिव्य प्रवाह के रूप में पाते हैं. हममें और परमात्मा में कोई भेद नहीं है. हम और हमारा ईश्वर एक सत्य के ही दो नाम और दो रूप हैं. यही ज्ञान अथवा अनुभव आत्मानुभूति आत्म प्रतीति अथवा आत्मज्ञान के अर्थ में मानी गयी है.

जिसे अपने प्रति सर्वशक्तिमान की प्रतीति होती है, वह सर्वशक्तिमान और जिसको अपने प्रति निर्बलता की प्रतीति होती है निर्बल बन जाता है और तद्नुसार जीवन व्यक्त अथवा प्रकट होता है. अपने प्रति इस प्रतीति की स्थापना का प्रयास ही आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होना है. उसका उपाय आत्मचिंतन के अलावा क्या हो सकता है? जब यह चिंतन अभ्यास पाते-पाते अविचल हो जाता है, तभी मनुष्य में आत्मज्ञान का दिव्य प्रकाश अपने आप विकीर्ण हो जाता है, दिव्य शक्तियां स्वयं आकर उसका वरण करने लगती हैं और वह साधारण से असाधारण, सामान्य से दिव्य और व्यष्टि से समष्टि रूप होकर संसार के लिए आचार्य, योगी या अवतार रूप हो जाता है.

आत्मज्ञान मनुष्य का सर्वोच्च लक्ष्य है, जिसने भौतिक विभूतियों के लोभ में इसकी उपेक्षा कर दी, उसने मानव जीवन का सारा मूल्य गंवा दिया. जो अवसर परमात्मा से संबंध स्थापित करने और दिव्य प्रकाश को ग्रहण करने की योग्यता उपार्जित करने के लिए मिला था, उसे अज्ञान के अंधकार में भटकते रह कर खो दिया.

– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

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