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पैसों से बढ़ कर इनसानी रिश्ते

अजय पांडेय प्रभात खबर, गया उस दिन गया में ठंड का 53 वर्षो का रिकॉर्ड टूट गया था. और उसी दिन मैं घर जाने को तैयार था. रात के एक बजे ट्रेन पकड़ना आसान नहीं था. सहकर्मी इन हालात में नहीं जाने की सलाह दे रहे थे. घरवालों को गया की ठंड का अहसास नहीं […]

अजय पांडेय

प्रभात खबर, गया

उस दिन गया में ठंड का 53 वर्षो का रिकॉर्ड टूट गया था. और उसी दिन मैं घर जाने को तैयार था. रात के एक बजे ट्रेन पकड़ना आसान नहीं था. सहकर्मी इन हालात में नहीं जाने की सलाह दे रहे थे.

घरवालों को गया की ठंड का अहसास नहीं था, नहीं तो वे भी मना कर देते. खैर, मैंने ठंड की चुनौती स्वीकार की और निकल गया. गया से पटना और पटना से हाजीपुर. वहां से सीवान के लिए दो घंटे बाद ट्रेन थी. उस वक्त सुबह के चार बजे थे. ठंड वहां भी कम नहीं थी, बस कोई रिकॉर्ड नहीं टूटा था. कोहरे से लिपटे प्लेटफॉर्म पर एकदम सन्नाटा. दो घंटे का समय काटना भारी पड़ रहा था.

मैं प्लेटफॉर्म पर घूमते-घूमते आगे बढ़ गया. तभी, आखिरी छोर पर एक फूड स्टॉल खुला दिखा. पास गया, तो अंदर 35 से 40 साल का एक आदमी मूर्तिवत बैठा था. उसे पता था कि इस समय कोई ग्राहक आनेवाला नहीं है. मैंने जब आवाज दी, तो उसकी तंद्रा टूटी. उससे कुछ कहता, इससे पहले वह मशीन से कॉफी निकालने लगा. उसने कहा- ‘‘बाबू बड़ी ठंड है, कॉफी पी लो.’’ मुङो पता था कि कॉफी मुफ्त मेंनहीं थी.

लेकिन उसकी आत्मीयता देख मैं हैरत में था. वह विदुपुर का रहनेवाला था. शाम के छह बजे से सुबह के नौ बजे तक की ड्यूटी के लिए उसे 130 रुपये मिलते थे. छुट्टी के पैसे कट जाते थे. वह हिसाब कर रहा था कि घर आने-जाने में कम से कम 30 रुपये लग जाते हैं. बचता है 100 रुपया. यानी 30 दिन काम करें, तो महीने के 3000.

मैं सोचने लगा कि आज के जमाने में महज 3000 रुपयों से क्या होता होगा? घर-परिवार का खर्च कैसे चल पाता होगा? ऊपर से ठंड में शरीर को इतना कष्ट. जब तक देह जवान है, तब तक तो भाग-दौड़ हो जा रही है, बुढ़ापे में इस आदमी का क्या होगा? इस कमाई से तो भविष्य के लिए कुछ बचने की उम्मीद करना बेमानी है. इस बीच मैं तीन कप कॉफी पी चुका था, चौथा हाथ में था. इस दौरान तीन-तीन ट्रेनें गुजर गयीं, लेकिन एक भी यात्री स्टॉल पर नहीं आया. वैसे, इसका असर हमारी बातचीत पर नहीं पड़ा. उसे भी पता था कि इतनी ठंड व रात में कोई ट्रेन से उतरनेवाला नहीं है.

तभी, जिस ट्रेन से मुङो जाना था उसकी घोषणा हुई. मैंने 50 का नोट उसकी तरफ बढ़ाया, तो उसने लेने से मना कर दिया. मुङो हैरत हुई कि स्टेशनों पर सामान बेचनेवाले 50 पैसे तक नहीं छोड़ते, उन्हीं में से एक 40 रुपये छोड़ रहा है. मेरे बार-बार के आग्रह पर वह हाथ जोड़ लेता मानो कि वह मेरा कजर्दार हो.

आखिर चंद पलों में उसका मुझसे क्या रिश्ता जुड़ गया, जो मुझसे पैसे लेने से इनकार कर रहा था? इस सर्दी में मुङो देख कर क्या उसे अपने बच्चों की याद आ गयी? जो भी हो, आज जब रिश्तों से बड़ा पैसा हो गया है, उस अनजान शख्स की याद हमेशा दिल में रहेगी और बताती रहेगी कि पैसे से बढ़ कर होते हैं इनसानी रिश्ते.

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