जैसे-जैसे विश्व कप करीब पहुंचता जा रहा है भारतीय टीम का प्रदर्शन गिरता जा रहा है. चाहे बल्लेबाज हों या गेंदबाज सभी ने निराश किया है. लगभग दो माह से टीम इंडिया ऑस्ट्रेलियाई धरती में है और यहीं विश्व कप 2015 का मुकाबला खेला जाना है, लिहाजा भारत के लिए यह काफी अच्छा मौका है विश्व चैंपियन बनने का. लेकिन हालिया प्रदर्शन से ऐसा नहीं लगता कि विश्व कप में भारतीय टीम विरोधियों को टक्कर दे पाएगी और दोबारा कप जीत पायेगी.
पिछले दो माह से भारतीय टीम को एक भी जीत नसीब नहीं हुई है. एक जीत के लिए टीम इंडिया तरस रही है. महेंद्र सिंह धौनी की चोट के कारण टेस्ट टीम में पहली बार कप्तानी कर रहे विराट कोहली के आने से लगा कि टीम में नयी जान आ गयी है अब तो टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया को उसी की धरती में हराकर रिकार्ड बनायेगी. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और चार मैचों की श्रृंखला में करारी हार का सामना करना पड़ा.
चोट के बाद मैदान में लंबे समय के बाद वापसी करने वाले करिश्मायी कप्तान महेंद्र सिंह धौनी के आने से लगा कि टीम इंडिया एक बार फिर से जीत के ट्रैक पर वापसी करेगी. लेकिन धौनी की अगुवाई में मौजूदा त्रिकोणीय श्रृंखला में भी लगातार दो हार ने टीम इंडिया को विश्व कप से पहले अपने प्रदर्शन पर सोचने को मजबूर कर दिया है.
लगातार गिरते प्रदर्शन ने न केवल टीम इंडिया को सोचने पर मजबूर किया है, बल्कि एक बार फिर से कप्तान धौनी के नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठने लगा है. ऐसा माना जा रहा है कि धौनी की धार कुंद पड़ गयी है. उन्होंने टीम इंडिया को शिखर पर पहुंचा था, दो-दो विश्व कप दिलाये. लिहाजा इस बार भी उनपर विश्वास किया गया और टीम का भार उनके कंधों पर रख दिया गया. लेकिन न जाने क्यों धौनी लगातार असफल होते जा रहे हैं. धौनी की असफलता के पीछे क्या कारण हो सकता है. यह किसी को समझ में नहीं आ रहा है.
धौनी ने टेस्ट क्रिकेट से अचानक संन्यास लेकर सबको चौका दिया. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बीच श्रृंखला में संन्यास लेने से धौनी काफी विवादों में भी रहे. कई पूर्व क्रिकेटरों ने धौनी के इस फैसले पर नाराजगी जाहिर की. हालांकि धौनी ने इस तरह से संन्यास की घोषणा क्यों की यह अब भी साफ नहीं हो पायी है.
ऐसा माना जा रहा था कि धौनी ने विश्व कप को ध्यान में रख कर ऐसा फैसला किया है, लेकिन त्रिकोणीय श्रृंखला में दो हार ने धौनी के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाया है. कैप्टन कूल के नाम से मशहूर धौनी अब मैदान में उतने आक्रामक भी नहीं दिखते हैं. उनके फैसले भी उलटा साबित हो रहे हैं. पिछले दोनों मैचों में भारत ने टॉस जीता लेकिन कप्तान का फैसला टीम के लिए घातक ही साबित हुआ.
इस बार विश्व कप के लिए चुनी गयी टीम में भी ऐसी क्षमता दिखायी नहीं पड़ा रही है. अधिकांश खिलाड़ी पहली बार विश्व कप में शामिल किये गये हैं. टीम चयन में कप्तान की अहम भूमिका रहती है. तो सवाल है कि धौनी की मौजूदगी में ऐसी कमजोर टीम को विश्व कप में भेजा जाना क्या साबित करता है. कहीं धौनी का चुनाव टीम इंडिया के लिए घातक न बन जाये.