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भारतीय समाज, राजनीति और गांधी
रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार गांधी का ‘इस्तेमाल’ मोदी ने बाद में किया. अस्सी के बाद संघ भी गांधी के प्रति कुछ नरम हुआ. भूमि अधिग्रहण संशोधन एक प्रकार से लार्ड कार्नवालिस की वापसी है. विकास का संपूर्ण नजरिया किसान-विरोधी, ग्राम-विरोधी है. लगभग 22 वर्ष दक्षिण अफ्रीका में रहने, अप्रवासी भारतीयों के नेता-नायक बनने के बाद 9 […]
रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
गांधी का ‘इस्तेमाल’ मोदी ने बाद में किया. अस्सी के बाद संघ भी गांधी के प्रति कुछ नरम हुआ. भूमि अधिग्रहण संशोधन एक प्रकार से लार्ड कार्नवालिस की वापसी है. विकास का संपूर्ण नजरिया किसान-विरोधी, ग्राम-विरोधी है.
लगभग 22 वर्ष दक्षिण अफ्रीका में रहने, अप्रवासी भारतीयों के नेता-नायक बनने के बाद 9 जनवरी, 1915 को भारत-आगमन के बाद गांधी भारतीयों के ‘बापू’ बने. ‘राष्ट्रपिता’ बने. महात्मा गांधी के भारत आगमन की शताब्दी के अवसर पर देश में बहुत कम आयोजन हुए हैं. मुंबई में मुंबई सर्वोदय मंडल, मणिभवन गांधी संग्रहालय, भारतीय विद्याभवन, सद्भावना संघ, मुंबई गांधी स्मारक निधि आश्रम प्रतिष्ठान, सेवाग्राम और गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति ने संयुक्त रूप से इसे याद किया.
9 जनवरी से 13 जनवरी तक जो कार्यक्रम हुए, उनमें सुप्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा और ‘पहला गिरमिटिया’ के उपन्यासकार गिरिराज किशोर के भाषण थे. ये व्याख्यान ‘समाज और गांधी’, ‘गांधी और समाज’ विषय पर थे. 13 जनवरी को गांधी ने मुंबई के जिस ‘सेठ हिराचंद गुमान जी धर्मशाला’ (हिराबाग) में भाषण दिया था, वहीं 13 जनवरी, 2015 को गिरिराज किशोर ने अपने विचार रखे. उन्होंने और बांबे हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज चंद्रशेखर धर्माधिकारी ने आज के भारत को केंद्र में रख कर महत्वपूर्ण बातें कहीं.
गांधी पर पुस्तकों और लेखों का अंबार है. गांधी का आज जिस प्रकार स्मरण किया जाता है, वह मात्र औपचारिकता है. गांधी के साथ औपचारिक संबंध-स्थापन नहीं किया जा सकता. आज का भारत अमेरिकोन्मुख है. गांधी के हत्यारे की पूजा की जा रही है. राज्य-राष्ट्र बनने के बाद भारत का साथ छोड़ चुका है. आज का ‘इंडियन ओपिनियन’ क्या है? गांधी सदैव ‘अहिंसा’ और सत्य के साथ रहे. आज हिंसा और झूठ का माहौल है. देश की आजादी के समय ही गांधी ने गांधी को भूल जाने की बात कही थी. खंडित भारत के साथ ही उनका भारतीय स्वप्न मिट गया.
1945 में गांधी ने नेहरू को भारत के गांवों के बारे में खत लिखे थे. उनकी चिंता में किसान और गांव थे. 1991, जिसे कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र, विधि एवं अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर, आर्थिक उदारीकरण और मुक्त व्यापार के प्रबल समर्थक जगदीश भगवती ‘पहली आर्थिक क्रांति’ कहते हैं, के बाद बड़ी संख्या में किसानों ने आत्महत्या की. भगवती पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सराहना करते हैं, जिन्होंने 1991 में वित्त मंत्री के रूप में भारतीय अर्थव्यवस्था को खोलते हुए (उदारवादी अर्थव्यवस्था) ‘प्रथम आर्थिक क्रांति’ की थी. अब वे नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए, हाल के एक इंटरव्यू में उन्हें दस में नौ अंक देते हुए, अर्थव्यवस्था में ‘दूसरी क्रांति’ की बात कह रहे हैं. मोदी, मनमोहन सिंह के बृहद संस्करण हैं.
भारत आने के पहले गांधी लंदन में गोखले से मिले थे. गोखले ने उन्हें एक साल देशभर की यात्र करने और देश को समझने को कहा था. भारतीय राजनीति पर भाषण देने से मना किया था. एक वर्ष बाद जनवरी, 1916 में बीएचयू के स्थापना-समारोह में गांधी आमंत्रित थे.
4 फरवरी, 1916 से 8 फ रवरी, 1916 तक आयोजित इस समारोह में प्रभावशाली राजा-महाराजा थे. भारत आगमन के बाद गांधी का यह पहला उल्लेखनीय भाषण है. 6 फरवरी, 1916 को एनी बेसेंट के बाद गांधी ने जो भाषण दिया, उसका सर्वप्रमुख अंश विश्वविद्यालय के मुख्य संरक्षकों से जुड़ा था. रामचंद्र गुहा ने अपने एक लेख ‘बैटल फील्ड बनारस’ (आउटलुक 19 जनवरी, 2015) में इसकी विस्तार से चर्चा की है. गांधी ने वहां उन लाखों भारतीयों की बात कही, जो वहां अनुपस्थित थे. भारत की मुक्ति के लिए उन्होंने ब्रिटिश शासक प्रदत्त उन ‘आभूषणों’ को उतारने की बात कही, जो राजाओं-महाराजाओं को दिये गये थे. उनकी चिंता थी कि बीएचयू के जन साधारण से अलग होने का खतरा है.
सामान्य जन के भोजन-वस्त्र की बात करते हुए उन्होंने छात्रों को यह बताया कि विश्वविद्यालय में जन-जीवन और ग्राम-जीवन को नहीं जाना सकता. अलवर के महाराजा मंच से उठ कर चले गये. उसने बनारस के कमिश्नर को गांधी के ‘पागल’ होने की बात कही. गांधी ने विश्वनाथ मंदिर की गंदगी की आलोचना की. एनी बेसेंट ने गांधी से मंच पर पीछे से दो बार चुप रहने (स्टॉप) को कहा. मंच से कई राजकुमार-महाराज उठ कर जाने लगे. छात्र गांधी से भाषण जारी रखने को कहते रहे. भाषण के बीच ही अध्यक्ष ने बैठक की समाप्ति की घोषणा की.
गांधी की यह ‘स्पीच’ काफी विवादास्पद रही. अगले दिन (7 फरवरी, 1916) को गांधी ने दरभंगा महाराजा को सभी प्रकार की हिंसा और अराजकता के विरुद्ध अपने विचार लिखे. 7 फरवरी को दरभंगा महाराज ने ‘पब्लिक लेर’ की अध्यक्षता करते हुए गांधी के विचारों को अस्वीकृत किया था. भाषण में गांधी ने विभिन्न समूहों के बीच की असमानता, महाराजाओं की विलासितापूर्ण जीवन-शैली के साथ गरीबों के प्रति जिस दायित्वपूर्ण दृष्टि की बात कही थी, वह आज भी कायम है. गांधी की चिंता में श्रमिक, किसान, शोषित, गरीब और वंचित थे. ‘हिंदुइज्म’ के प्रति उनका रुख आलोचनात्मक था. वे उदारवादी हिंदू थे.
आज शासक वर्ग की चिंता में गांव नहीं हैं. गांधी ने जिस हिंदू-मुसलिम एकता के लिए अपने को उत्सर्ग किया, स्वतंत्र भारत में सत्ता पाने के लिए उसको बार-बार तोड़ा गया. आज का भारतीय समाज और राजनीति वह नहीं है, जिसकी गांधी ने कल्पना की थी. 1916 और 1942 के बीच बनारस में गांधी के दिये भाषणों का आज स्मरण इसलिए जरूरी है, क्योंकि वहां के सांसद भारत के प्रधानमंत्री हैं. गांवों, भारतीय समाज, हिंदू-मुसलमान एकता के संबंध में नरेंद्र मोदी के विचारों से सभी कमोवेश अवगत हैं.
बनारस आज भी हिंदू समाज और संस्कृति का प्रमुख केंद्र है. ‘सौ स्मार्ट सिटी’ का गांवों के विकास-उन्नयन से क्या सचमुच कोई संबंध है? गांधी का ‘इस्तेमाल’ मोदी ने बाद में किया. अस्सी के बाद संघ भी गांधी के प्रति कुछ नरम हुआ. भूमि अधिग्रहण संशोधन एक प्रकार से लार्ड कार्नवालिस की वापसी है. विकास का संपूर्ण नजरिया किसान-विरोधी, ग्राम-विरोधी है. प्रणब वर्धन के एक लेख का शीर्षक है ‘भोगवते एंड भगवती’ (मोहन भागवत एवं जगदीश भगवती) (आउटलुक, 19 जनवरी, 2015). जगदीश भगवती और अरविंद पनगढ़िया को गांवों की चिंता कितनी है?
गांवों की चिंता गांधी को थी. भगवती भारत को ‘एक छोटी मानसिकता का बड़ा देश’ कहते हैं. किसानों की मानसिकता छोटी नहीं थी. आज प्रत्येक सांसद को एक गांव गोद लेने की सलाह दी जा रही है. जो हमारे अपने हैं क्या? हम उन्हें गोद लेते हैं? या तो उनकी गोद में बैठते थे या उन्हें गोद में बैठाते थे. गांधी भी अब अपने नहीं रहे. अपने आज दूसरे हैं. वे अपने होते तो राष्ट्रीय स्तर पर सर्वत्र दक्षिण अफ्रीका से भारत आगमन की शताब्दी को हम दिलो-दिमाग से याद करते.
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