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असफल व्यवस्था बना रही नक्सली

सिंहभूम जिले (कोल्हान प्रमंडल) में तांत अथवा पान लोग निवास करते हैं. इनके जीविकोपाजर्न का मुख्य पेशा हस्तकरघा से तीन हाथ का गमछा बुनना है. सामाजिक स्तर पर अन्य समुदायों द्वारा इन जातियों के साथ छुआछूत के बावजूद, इन्हें अपने काम से मतलब है. लेकिन अब यह चिंता का विषय बन गया है कि इसी […]

सिंहभूम जिले (कोल्हान प्रमंडल) में तांत अथवा पान लोग निवास करते हैं. इनके जीविकोपाजर्न का मुख्य पेशा हस्तकरघा से तीन हाथ का गमछा बुनना है. सामाजिक स्तर पर अन्य समुदायों द्वारा इन जातियों के साथ छुआछूत के बावजूद, इन्हें अपने काम से मतलब है.
लेकिन अब यह चिंता का विषय बन गया है कि इसी समुदाय के युवक नक्सली बन रहे हैं. सवाल यह पैदा होता है कि आखिर ये नक्सली कैसे और क्यों बन रहे हैं?
दरअसल, अस्सी के दशक तक यह समुदाय अपने पुश्तैनी धंधे से परिवार का पालन-पोषण कर रहा था. मंगलवार को लगनेवाले साप्ताहिक बाजारों में इन गमछों को बेचा जाता था और उससे होनेवाली आमदनी से इस समुदाय के लोग परिवार चलाते थे. धीरे-धीरे ये बाजार बंद होते गये. लोगों ने गमछे का प्रयोग कम कर दिया और बाजारवाद ने जोर पकड़ लिया. उसके बाद इस क्षेत्र में यह धंधा मंदा पड़ गया और उनके सामने परिवार के भरण-पोषण की समस्या पैदा हो गयी. इस समुदाय के युवक बेराजगार होने की स्थिति में गांव से पलायन करने लगे.
आर्थिक विपन्नता के कारण लोग अपने बच्चों को ढंग से साक्षर भी नहीं कर पा रहे हैं. स्थिति यह कि सामाजिक और प्रशासनिक अव्यवस्था के कारण उन्हें जाति प्रमाण पत्र देने से भी वंचित रखा जा रहा है. सामाजिक और प्रशासनिक अव्यवस्था के कारण इस समुदाय के युवकों ने आपराधिक राह को अख्तियार कर लिया. आज प्रशासनिक और सामाजिक अव्यवस्था का ही परिणाम है कि इस समुदाय के लोग नक्सली बन रहे हैं. सरकार अगर चाहे, तो इस समुदाय के युवकों को समाज की मुख्यधारा में लाने की दिशा में ठोस कदम उठा सकते हैं.
एच भंज, सिंहभूम

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