मुंबई: कारपोरेट जगत पर उंची लागत का बोझ और फंसे कर्ज की वजह से बैंकों पर दबाव रहने से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का ‘दायित्व’ एक बार फिर सरकार पर आ पडा है. हालांकि, सरकार की वित्तीय स्थिति भी उतने ही दबाव में है. एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है.
एचएसबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए खर्च बढाने व अटकी परियोजनाओं को शुरु करने का दायित्व सरकार का है. वित्त मंत्रालय के आंकडों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही में सकल पूंजी निर्माण शून्य रहा, जबकि इस मामले में इसका दस साल का औसत नौ प्रतिशत रहा है. इसमें कहा गया है कि सकल घरेलू उत्पाद के समक्ष सकल पूंजी निर्माण पिछले पांच साल में चार प्रतिशत से अधिक घट चुका है.
इस दौरान सरकार अथवा कंपनी जगत की तरफ से मुश्किल से ही कोई पूंजीगत खर्च किया गया. एचएसबीसी इंडिया के पूंजी बाजार खंड के मुख्य अर्थशास्त्री प्रांजल भंडारी ने एक नोट में कहा, ‘‘सरकार तीन तरीके से निजी निवेश लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. सरकार यह काम -रकी परियोजनाओं को शुरु करके, पूंजीगत खर्च बढाकर व सार्वजनिक निजी भागीदारी के लिए एक नया व्यावहारिक मॉडल तैयार करके यह काम कर सकती है.’’ रिपोर्ट में कहा गया है कि अटकी पडी योजनायें, दबाव में उंची लागत के बोझ तले दबी कंपनियां और बैंक परिसंपत्तियों की मौजूदा परिस्थिति के चलते अर्थव्यवस्था कमजोर बनी हुई है. इससे सरकार पर खर्च बढाकर और अटकी परियोजनाओं पर काम शुरु कर वृद्धि में तेजी लाने का दबाव बढ गया है.
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