बिना तुम्हारे अपने केंद्र को पाये, तुम्हें इस संसार में किसी प्रकार की संतुष्टि संभव नहीं है. तुम खोजते चले जा सकते हो और जीवन में तुम बहुत सारी चीजें पा भी लोगे, लेकिन वे सब कुछ भी तुम्हें संतुष्ट नहीं करेंगी. जब इच्छा पूरी होती है, तब क्षण भर के लिए भ्रम होता है.
क्षण भर के लिए तुम्हें अच्छा लगता है, लेकिन क्षण भर के लिए. जैसे ही एक इच्छा पूरी होती है, दस इच्छाएं उसकी जगह ले लेती हैं. फिर से सारी बैचेनी शुरू हो जाती है, फिर से सारा जंजाल शुरू हो जाता है. और यह एक अंतहीन प्रक्रिया है.
सिर्फ अपने केंद्र को पा लेने पर ही यह प्रक्रिया रुकती है, तब फिर चक्र नहीं चलता. अपने केंद्र पर, घर आ जाने पर, सारी इच्छाएं विदा हो जाती हैं- तुम पूरी तरह से, और हमेशा के लिए संतुष्ट हो जाते हो. तब यह क्षणिक संतुष्टि नहीं होती. यह संतोष है, यह परम संतोष है. अपने भीतर घर आ जाना संतुष्ट करता है, वास्तव में संतुष्ट करता है. जीवन में बाकी सारी चीजें वादे हैं, लेकिन वे सब के सब झूठे वादे हैं.
कभी कुछ मिलता-जुलता नहीं. धन वादे करता है कि यदि तुम्हारे पास यह होगा, तुम्हें मदद मिलेगी. लेकिन लोग अधिक से अधिक धनी होते चले जाते हैं, फिर भी उन लोगों को कोई प्रसन्नता कभी भी नहीं मिल पाती है. यह तो हमेशा से ही दूर है, एक क्षितिज की तरह- बहुत दुष्प्राप्य. रिश्ता यह भ्रम देता है कि हर चीज अच्छी होगी और तुम हमेशा के लिए प्रसन्न जीवन जीओगे, लेकिन ऐसा कभी नहीं होता. सिर्फ अपने केंद्र को पा लेने से संतुष्टि घटतीहै.
आचार्य रजनीश ‘ओशो’