मुंबई : अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरते दाम इस समय वर्ष 2009 में आयी आर्थिक मंदी के बाद से भी निचले स्तर पर पहुंच गया है. उम्मीद यह भी जाहिर की जा रही है कि आनेवाले दिनों में यह गिर कर 40 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे पहुंच सकता है. बाजार में गिरते कच्चे तेल के दाम का अहम कारण आपूर्ति और मांग में अंतर है.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में संयुक्त राज्य का घरेलू उत्पादन पिछले छह सालों में दोगुना हो गया. इससे अमेरिका में तेल आयात जबरदस्त तरीके से घटा और तेल निर्यातक देश दूसरा ठिकाना तलाशने को मजबूर हो गये. सऊदी अरब, नाइजीरिया और अल्जीरिया आदि अमेरिका को तेल निर्यात किया करते थे. अचानक उनकी स्पर्धा एशियाई बाजारों से शुरू हो गयी. इस कारण उन्हें तेल की कीमतों में कमी करनी पड़ी. इसका दूसरा कारण यूरोप और दुनिया के विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था में सुस्ती आना भी है. अब गाड़ियां कम ऊर्जा खपत करनेवाली बन रही हैं, इससे तेल की मांग में कमी आयी.
किसे मिल रहा है गिरावट का फायदा
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में गिरावट आने से डीजल, हीटिंग ऑयल और प्राकृतिक गैस की कीमत में काफी कमी आयी है. दामों में आयी गिरावट के बाद टैक्स कटौती में काफी बढ़ोतरी की गयी है. सरकार ने बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमत घटाने के बजाय तेल, विमानन और वाहन उत्पादन कंपनियों को उत्पाद शुल्क में मिल रियायत को समाप्त कर दिया. इस वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में आयी गिरावट से प्रत्येक भारतीय परिवार की जेब में पहुंचनेवाली सालाना करीब 63 हजार रुपये की राशि तेल कंपनियों के खाते में पहुंच रही है.
तेल के दामों का गिरना भारत के लिए वरदान
रिजर्व बैंक डिप्टी गवर्नर अजिर्त पटेल ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में नाटकीय ढंग से जिस तरह गिरावट आयी है, वह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वरदान है. इससे तेल आयात बिल में 50 अरब डॉलर की बचत करने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि तेल के दाम घटने से व्यय करने योग्य आय में बढ़ोतरी होगी. कारोबार के लिए कच्चे माल की लागत नीचे आयेगी और ऊर्जा सब्सिडी बोझ कम होगा. पटेल ने कहा कि हमारा पेट्रोलियम, तेल और लुब्रीकेंट्स का आयात सालाना 160 अरब डॉलर का होता है. कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से यह करीब एक तिहाई कम हो जायेगा. इससे निश्चित रूप से हमारी बाह्य स्थिति में सुधार होगा.
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