7.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

शंकर बिगहा नरसंहार : पीड़ित परिजन पूछ रहे सवाल – आखिर 23 लोगों का हत्यारा कौन ?

बथानी टोला, नगरी, लक्ष्मणपुर बाथे व मियांपुर जनसंहार के बाद अब शंकर बिगहा जनसंहार के सभी आरोपितों को अदालत ने बरी कर दिया है. पुलिस ने जिन गवाहों को पेश किया था, उन्होंने अभियुक्तों को पहचानने से इनकार कर दिया. इस फैसले के बाद पीड़ित परिजनों ने निराशा जतायी. सवाल किया -ये सभी आरोपित निर्दोष […]

बथानी टोला, नगरी, लक्ष्मणपुर बाथे व मियांपुर जनसंहार के बाद अब शंकर बिगहा जनसंहार के सभी आरोपितों को अदालत ने बरी कर दिया है. पुलिस ने जिन गवाहों को पेश किया था, उन्होंने अभियुक्तों को पहचानने से इनकार कर दिया. इस फैसले के बाद पीड़ित परिजनों ने निराशा जतायी. सवाल किया -ये सभी आरोपित निर्दोष हैं, तो आखिरकार 23 लोगों की हत्या किसने की?
जहानाबाद: जिला अदालत ने बहुचर्चित शंकर बिगहा नरसंहार के सभी 24 आरोपितों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है. 25 जनवरी, 1999 की रात रणवीर सेना के सशस्त्र लोगों ने अरवल जिले के शंकर बिगहा (तत्कालीन जहानाबाद जिला) में हमला कर 23 लोगों को मार डाला था. मारे गये सभी लोग दलित और कमजोर जातियों के थे. अदालत में ट्रायल के दौरान सभी गवाहों ने आरोपितों को पहचानने से इनकार कर दिया था. स्थानीय व्यवहार न्यायालय के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम की अदालत में इस मामले की सुनवाई चल रही थी. इस दौरान करीब 24 अलग-अलग ट्रायल चल रहे थे. न्यायाधीश राघवेंद्र कुमार सिंह ने अपने फैसले का आधार आरोपितों के खिलाफ साक्ष्य का अभाव बताया. मामले में पुलिस की ओर से 49 गवाह थे और सभी गवाहों ने आरोपितों को पहचानने से इनकार कर दिया था. इस कांड में 24 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, जिनमें धोबी बिगहा के 21 लोग थे. रणवीर सेना के हमले में 14 लोग बुरी तरह घायल हो गये थे.
इस मामले में सूचक प्रकाश राजवंशी के बयान पर महेंदिया थाने में कांड संख्या 5/99 के तहत मामला दर्ज हुआ था. जिसमें हत्या का आरोप तथाकथित उग्रवादी संगठन रणवीर सेना पर लगा था. रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया को प्रमुख अभियुक्त बनाया गया था. कांड से संबंधित दो अलग-अलग चाजर्शीट 26 फरवरी, 2000 और 15 अगस्त, 2003 को दायर किये गये थे.
पुलिस ने अभियुक्तों को गिरफ्तार किया और लंबी न्यायिक प्रक्रिया का दौर चला और अभियुक्तों की बेल पर रिहाई भी हुई. लेकिन, बाद में ट्रायल चला. इस जनसंहार की गूंज देश भर में सुनायी पड़ी थी. देश भर में इसकी निंदा की गयी थी. तब भाजपा और समता पार्टी ने तत्कालीन राबड़ी देवी सरकार को बरखास्त करने की मांग करते हुए बिहार बंद कराया था. भाकपा माले और भाकपा ने भी आंदोलन किया था.
इधर नरसंहार में घायल प्रभावती कुमारी समेत अन्य का कहना है कि इस मामले में न्यायालय का जो फैसला आया है, उससे न्यायिक प्रक्रिया पर से भरोसा कम होने लगा है. नरसंहार में मारे गये परिवार और नरसंहार में अपाहिज की जिंदगी काट रहे लोग मायूस है.
बरी किये गये लोग
1. बूटन सिंह 2. कौशल कुमार 3. भगवान सिंह 4. वीरेंद्र सिंह 5. मनोज सिंह 6. बबन सिंह 7. गोपाल शर्मा 8. नवल किशोर 9. नवल सिंह 10. सहेंद्र कुमार शर्मा 11. अशोक कुमार 12. उमेश शर्मा 13. राधा रमण 14. ओम प्रकाश 15. धर्मेद्र शर्मा 16. मरेंद्र शर्मा 17. शिव शर्मा 18. गौरी शर्मा 19. मंटू शर्मा 20. मंटू कुमार 21. बिहारी शर्मा 22. विजेंद्र शर्मा 23. धर्मा शर्मा 24. गोविंद शर्मा.
फ्लैश बैक
10 माह के बच्चे को भी मार दी थी गोली
पटना: वह 26 जनवरी की सर्द भरी सुबह थी. झंडे-पताकों से सजे स्कूलों व सरकारी भवनों में झंडोतोलन की तैयारी थी. लाउडस्पीकर पर देशभक्ति गीत गूंज रहे थे – ऐ मेरे वतन के लोगों…
इधर, 50वें गणतंत्र दिवस की चहल-पहल से अलहदा शंकर बिगहा की गलियों में ‘गम’ था, तो उससे कहीं अधिक ‘गुस्सा’ था. ठीक एक दिन पहले 25 जनवरी (साल 1999) की रात रणवीर सेना ने दलितों और अति पिछड़ों की बहुलतावाले इस गांव के 23 लोगों को गोलियों से भून दिया था. इस घटना की खबर देर रात पटना पहुंची थी और दूसरे दिन अहले सुबह (26 जनवरी को) पत्रकारों की अलग-अलग टोलियां इस घटना के कवरेज के लिए शंकर बिगहा के रास्ते थीं. तब सूचना और संचार के माध्यम आज की तरह अत्याधुनिक नहीं थे. टीवी चैनल भी कम थे. ‘प्रभात खबर’ की ओर से कवरेज के लिए मुङो भेजा गया था.
पटना से औरंगाबाद जानेवाली सड़क पर वलिदाद के नजदीक एक छोटी नहर के उस पार शंकर बिगहा जाने के लिए हमलोगों को कुछ दूर पैदल भी चलना पड़ा. यह गांव रणवीर सेना की सामंती क्रूरता की दुखद कहानी कह रहा था. एक झोंपड़ी में चार शव पड़े थे और उनके बीच एक नन्ही बच्ची (करीब चार साल की) अल्युमिनियम की थकुचायी थाली में भात खा रही थी. शायद मौत के पहले रात में मां ने अपने बच्चों के लिए थाली में भात परोसा था. परिवार में कोई नहीं बचा था. यह दृश्य देख हम और हमारे साथी पत्रकार अंदर से कांप गये. डबडबायी आंखों से सब एक-दूसरे की ओर देख रहे थे, लेकिन मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा था. वह बच्ची कभी कैमरे की ओर देखती, तो कभी अपनी थाली की ओर.
इस घटना में जो 23 लोग मारे गये थे, उनमें पांच महिलाएं और सात बच्चे थे. यह वहशीपन की पराकाष्ठा थी कि 10 माह के एक बच्चे और तीन साल के उसके भाई को भी नहीं बख्शा गया.
हम सब आगे बढ़े, तो एक जगह चार-पांच शव खटिया पर रखे हुए थे- लाल झंडे से लिपटे हुए. भाकपा माले के नेता रामजतन शर्मा, रामेश्वर प्रसाद, संतोष, महानंद समेत कई अन्य सुबह में ही पहुंच चुके थे. मुख्यमंत्री (तत्कालीन) राबड़ी देवी और लालू प्रसाद गांव में पहुंचे, तो शवों की दूसरी तरफ खड़े लोगों ने नारे लगाने शुरू कर दिये- रणवीर सेना मुरदाबाद. मुआवजा नहीं, हथियार दो. लालू प्रसाद ने समझाने की गरज से कुछ कहा, तो शोर और बढ़ने लगा. तब तक राबड़ी देवी ने एक महिला को बुलाया और उससे कुछ पूछना चाहा. गुस्से से तमतमायी उस महिला के शब्द अब तक मैं नहीं भूल पाया हूं. उसने कहा – हमको आपका पैसा नहीं चाहिए. हमलोगों को हथियार दीजिए, निबट लेंगे. तब तक हल्ला हुआ कि पुलिस ने बबन सिंह नामक व्यक्ति को पकड़ा है. गांव के लोग उसे सुपुर्द करने की मांग करने लगे. बोले, हम खुद सजा दे देंगे. डीएस-एसपी ने बड़ी मुश्किल से लोगों को शांत किया. मौके पर लालू प्रसाद व राबड़ी देवी ने विशेष कोर्ट का गठन कर छह माह में अपराधियों को सजा दिलाने का एलान किया था.
गांव के एक व्यक्ति रामनाथ ने हमें बताया था कि यदि बगल के धेवई और रूपसागर बिगहा के लोगों ने गोहार (हल्ला) नहीं किया होता, तो मरनेवालों की संख्या और भी ज्यादा होती. शंकर बिगहा के पूरब में धोबी बिगहा गांव है, जहां के 21 लोग इस जनसंहार में अभियुक्त बनाये गये थे. पूरे गांव में एक को छोड़ बाकी सभी मकान कच्चे या फूस के थे, जो यह बता रहा था कि मारे गये सभी गरीब और भूमिहीन थे. आततायी ललन साव का दरवाजा नहीं तोड़ पाये, क्योंकि एकमात्र उनका ही मकान ईंट का था, जिसके दरवाजे मजबूत थे. उन्होंने पत्रकारों को बताया था – मैंने तीन बार सिटी की आवाज सुनी और फिर रणवीर बाबा की जय नारा लगाते सुना.
घटना के बाद ऐसी चर्चा रही किशंकर बिगहा में नक्सलवादी संगठन पार्टी यूनिटी का कामकाज था, इसीलिए रणवीर सेना ने इसे निशाना बनाया. एक चर्चा यह भी थी कि यह नवल सिंह, जो मेन बरसिम्हा हत्याकांड का अभियुक्त था, की हत्या का बदला था. वह दौर मध्य बिहार के इतिहास का एक दुखद व काला अध्याय था, जिसमें राज्य ने शंकर बिगहा के पहले और बाद में भी कई जनसंहारों का दर्द ङोला. दिसंबर, 1997 को लक्ष्मणपुर बाथे और नौ फरवरी, 1999 को नारायणपुर जनसंहार हुआ. इसके पहले 1996 में भोजपुर के बथानी टोला में 23 लोग मारे गये थे. सभी कांडों को अंजाम देने का आरोप रणवीर सेना पर लगा था. लेकिन, बाथे और बथानी टोला के अभियुक्तों को हाइकोर्ट ने बरी कर दिया, जबकि शंकर बिगहा कांड के आरोपित निचली अदालत से ही बरी कर दिये गये. अदालत ने माना कि आरोपितों के खिलाफ साक्ष्य नहीं थे. अदालत का फैसला तो आ गया, लेकिन यह सवाल अनुत्तरित रहा कि फिर शंकर बिगहा में 25 जनवरी, 1999 की रात जिन 23 लोगों के हत्यारे कौन थे? क्या वे कभी पकड़ में आ पायेंगे? आखिर यह जवाबदेही कौन लेगा? ठीक यही सवाल बाथे और बथानी टोला जनसंहार के पीड़ित पहले पूछ चुके हैं, जिनका जवाब अब तक उन्हें नहीं मिला है.
तब राष्ट्रपति भी हुए थे गंभीर
पटना. तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने घटना पर गंभीरता जताते हुए तत्कालीन बिहार सरकार को कड़ी व तत्काल कार्रवाई करने को कहा था. उन्होंने बाजाप्ता प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा था कि कानून लागू करनेवाली एजेंसियों को यह देखना होगा कि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो.
राष्ट्रपति शासन का बना था आधार
तब बिहार के राज्यपाल सुंदर सिंह भंडारी ने इस कांड को लेकर केंद्र की तत्कालीन सरकार को कड़ी रिपोर्ट में भेजी थी, जिसमें कहा गया था कि बिहार में अराजकता कायम हो गया है. भाजपा, समता पार्टी व जनता दल ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की थी, जबकि वाम दलों ने 30 जनवरी को बिहार बंद कराया था. बाद में नारायणपुर जनसंहार होने पर बिहार में 12 फरवरी, 1999 को राष्ट्रपति शासन लागू किया गया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें