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‘मोदी के गुजरात’ में निवेशकों का मेला
वाइब्रेंट गुजरात में प्रधानमंत्री की उपस्थिति ने इसे लेकर पूरी दुनिया में एक जबरदस्त उत्साह पैदा किया. इसे मोदी का करिश्मा कहा जा सकता है. सवाल बस इतना-सा है कि क्या मोदी अपने इस करिश्मे का लाभ अन्य राज्यों को भी देंगे? आजकल मोदी विरोधी नेताओं ने यह चुटकी लेनी शुरू कर दी है कि […]
वाइब्रेंट गुजरात में प्रधानमंत्री की उपस्थिति ने इसे लेकर पूरी दुनिया में एक जबरदस्त उत्साह पैदा किया. इसे मोदी का करिश्मा कहा जा सकता है. सवाल बस इतना-सा है कि क्या मोदी अपने इस करिश्मे का लाभ अन्य राज्यों को भी देंगे?
आजकल मोदी विरोधी नेताओं ने यह चुटकी लेनी शुरू कर दी है कि मोदी जिस भी राज्य में किसी कार्यक्रम या सभा-समारोह में जाते हैं, वहां वे उस राज्य को नंबर वन बनाने का सपना दिखाने लगते हैं. मोदी विरोधी नेता पूछते हैं कि मोदी कितने राज्यों को देश में नंबर वन बनानेवाले हैं! लेकिन, इस प्रहार के जवाब में मोदी खेमे का कहना है कि राज्यों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा चलनी चाहिए और नरेंद्र मोदी इसी प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दे रहे हैं.
यहां अहम सवाल यह है कि राज्यों की इस प्रतिस्पर्धा में देश के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की भूमिका सभी खिलाड़ियों को समान प्रोत्साहन देनेवाले प्रशिक्षक की होनी चाहिए, या उन्हें किसी एक राज्य की टीम के साथ जुड़ कर खेलते हुए दिखना चाहिए? सातवें वाइब्रेंट गुजरात समिट में मोदी की व्यक्तिगत रुचि के साथ प्रभावी उपस्थिति यह सवाल खड़ा करती है. इस सवाल को गलत समङो जाने का खतरा है, इसलिए जरा स्पष्ट कर दूं. सवाल इस बात पर नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी ने किसी एक राज्य के कार्यक्रम में हिस्सा क्यों लिया. लेकिन अगर कहीं यह संदेश जाये कि प्रधानमंत्री का गृह-राज्य होने के कारण गुजरात को देशी-विदेशी निवेशकों की निवेश योजनाओं में पहले से ज्यादा प्रमुखता मिलने लगी है, तो यह गलत होगा. अगर कहीं यह संदेश जाये कि प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत दिलचस्पी के कारण गुजरात को अन्य राज्यों की तुलना में विशेष लाभ मिल रहा है, तो यह भी गलत होगा.
अगर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून और अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी ने वाइब्रेंट गुजरात में भाग लिया, तो इसका श्रेय गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल को दिया जाये, या इसके हकदार स्वयं प्रधानमंत्री मोदी हैं? बेशक, द्विवार्षिक वाइब्रेंट गुजरात समिट शुरू करने और वैश्विक निवेशकों को इसकी ओर आकर्षित करने में नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर विशेष सफलता हासिल की. अन्य राज्यों ने भी ऐसे कार्यक्रम कराये हैं, मगर पहले से ही इसमें जितनी सफलता गुजरात को मिलती रही है, उतनी अन्य राज्यों को नहीं मिली.
वैसे, यह सवाल जरूर उठता रहा है कि ऐसे सम्मेलनों में (चाहे गुजरात में हो या किसी अन्य राज्य में) की जानेवाली निवेश घोषणाओं पर अमल होने का प्रतिशत बेहद कम क्यों है? पिछले साल- दो साल के अंदर ही विभिन्न राज्यों के निवेशक सम्मेलनों में किये गये वादों पर निगाह डालें, तो 2013 के वाइब्रेंट गुजरात में 12 लाख करोड़ रुपये की निवेश संबंधी घोषणाएं हुई थीं. कर्नाटक के ग्लोबल इन्वेस्टर मीट में 2012 में सात लाख करोड़ रुपये की निवेश घोषणाएं की गयीं. मध्य प्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के सम्मेलनों में भी बड़े-बड़े आंकड़े पेश किये गये. लेकिन, इन घोषणाओं के हकीकत में बदलने का अनुपात बेहद कम रहा है. फिर भी, यह कहा जा सकता है कि निवेशकों की दिलचस्पी जगाने के स्तर पर वाइब्रेंट गुजरात 2003 से ही लगातार एक सफल कार्यक्रम रहा है. इसका पूरा श्रेय गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी द्वारा किये प्रयासों को जाता है. मगर अब उन्हें ‘मेरे गुजरात में’ वाले जुमले से ऊपर उठने की जरूरत है. चुनावी अभियान की तैयारी में उन्होंने इस जुमले को खूब भुनाया. उन्हें इसका फायदा भी मिला. लेकिन, अब देश की जनता आशा करती है कि प्रधानमंत्री के रूप में वे हर राज्य को एक नजर से देखेंगे.
गांधीनगर में 11 जनवरी से आरंभ सातवें वाइब्रेंट गुजरात समिट को अब तक का सबसे सफल वाइब्रेंट गुजरात समिट कहा जा सकता है. इस सम्मेलन में अमेरिका, कनाडा और जापान सहित आठ देश पहली बार भागीदार देश के तौर पर जुड़े हैं. इसमें बान की मून और जॉन केरी तो मुख्य आकर्षण बने ही हैं, साथ ही यूरोप, जापान और कनाडा के कई मंत्रियों ने भी हिस्सा लिया. इसमें भारतीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की बड़ी कंपनियों के 50 से अधिक मुख्य कार्यकारी अधिकारी शामिल हुए.
खबरों के मुताबिक, इस बार वाइब्रेंट गुजरात में कुल 21,000 एमओयू पर दस्तखत हुए हैं, जिनमें रिकॉर्डतोड़ 25 लाख करोड़ रुपये के निवेश के वादे किये गये हैं. साल 2013 के वाइब्रेंट गुजरात में इसके आधे निवेश के लिए एमओयू किये गये थे. तो क्या हम यह समङों कि आनंदी बेन पटेल ने मुख्यमंत्री के तौर पर निवेश आकर्षित करने में पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बुरी तरह से पछाड़ दिया है! या, हम इसे नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने का ही असर समङों?
कुछ मित्र कहेंगे कि वाइब्रेंट गुजरात में शामिल होने भर से मोदी पर यह आरोप अनुचित होगा कि वे गुजरात को ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं. मगर कई बातें कागजी तौर पर प्रमाणित नहीं होतीं, भावात्मक रूप से महसूस की जाती हैं. काम के साथ उसके संदेश की अहमियत को स्वयं मोदी से बेहतर कौन समझ सकता है! जनता से संवाद में उनका एक-एक वाक्य नपा-तुला होता है. ऐसे में यह उम्मीद करना गलत नहीं कि ‘मेरे गुजरात में’ वाले जुमले और उस छवि के साथ अटके रहने के खतरों को मोदी समर्थकों से कहीं ज्यादा स्वयं मोदी महसूस सकते हैं.
मोदी ने स्वयं कई बार विभिन्न मंचों से यह कहा है कि पूर्वी भारत का भी वैसा ही विकास होना चाहिए, जैसा पश्चिमी भारत का हुआ है. असंतुलित विकास की विडंबना पर उनकी नजर है. इसलिए क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि झारखंड में निवेश आकर्षित करने के लिए भी मोदी वैसी ही व्यक्तिगत दिलचस्पी लेंगे और अपने प्रभाव का इस्तेमाल करेंगे, जैसा गुजरात के लिए होता दिख रहा है? उन्हें बताना चाहिए कि बिहार के विकास के लिए उनकी योजना क्या है? बिहार सरकार के साथ राजनीतिक कारणों से टकराव के चलते शायद यह आसान न हो. वैसी ही स्थिति बंगाल सरकार के साथ भी है. लेकिन झारखंड में अभी-अभी भाजपा की सरकार बनी है. झारखंड पर विशेष ध्यान देकर क्या वे गुजरात मॉडल की तरह ही पूर्वी भारत के लिए भी एक झारखंड मॉडल बना सकते हैं? क्या ओड़िशा में विकास के लिए विशेष प्रयास करके वे कोई ओड़िशा मॉडल तैयार कर सकते हैं?
मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने वाइब्रेंट गुजरात में 25 लाख करोड़ रुपये के निवेश के लिए समझौतों की घोषणा करते हुए जिक्र किया कि इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री की उपस्थिति ने इसे लेकर पूरी दुनिया में एक जबरदस्त उत्साह (हाइप) पैदा किया. इसे मोदी के करिश्मे का नतीजा कहा जा सकता है. सवाल बस इतना-सा है कि क्या मोदी अपने इस करिश्मे का लाभ आनेवाले समय में अन्य राज्यों को भी देंगे?
राजीव रंजन झा
संपादक, शेयर मंथन
Rajeev@sharemanthan.com
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