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6 साल में एक भी मामले का नहीं हुआ निष्पादन
मनोज कुमार चाईबासा : समाहरणालय परिसर स्थित कोल्हान टाइटल सूट कोर्ट से वर्ष 2008 के बाद से एक भी मामले का निष्पादन नहीं हुआ है. यहां जो चार-पांच मामलों का निबटारा भी हुआ, उनका निर्णय इसलिए नहीं हो सका क्योंकि ये मामले पिछले कई सालों से चल रहे थे. इस कोर्ट में लगभग 350 से […]
मनोज कुमार
चाईबासा : समाहरणालय परिसर स्थित कोल्हान टाइटल सूट कोर्ट से वर्ष 2008 के बाद से एक भी मामले का निष्पादन नहीं हुआ है. यहां जो चार-पांच मामलों का निबटारा भी हुआ, उनका निर्णय इसलिए नहीं हो सका क्योंकि ये मामले पिछले कई सालों से चल रहे थे.
इस कोर्ट में लगभग 350 से अधिक जमीन विवाद के मामले दर्ज हैं. यहां पचास वर्ष से भी अधिक लंबे समय से मामले पेंडिंग चल रहे हैं. वर्ष 2009-10 तक दो साल अपर उपायुक्त को कोर्ट चलाने संबंधी अधिकार नहीं रहने के कारण कोर्ट का संचालन नहीं हो सका. इस कोर्ट में एडीसी सुनवाई करते हैं.
मानकी-मुंडा का अहम रोल
कोल्हान टाइटल सूट कोर्ट वर्षो से चली आ रही व्यवस्था है. विल्किंशन एक्ट के तहत कोर्ट की स्थापना हुई थी. यहां आने वाले वादों पर मानकी-मुंडा से रिपोर्ट ली जाती है. फिर सुनवाई की कार्रवाई की जाती है. मानकी-मुंडा की रिपोर्ट का इस कोर्ट के फैसले में कानूनी मान्यता होती है.
कई बार मानकी-मुंडा की ओर से भी रिपोर्ट नहीं भेजे जाने की बात सामने आते रही है. कई मामले में इनके रिपोर्ट पर फैसला देने से विवाद बढ़ा भी है और मामला अन्य न्यायालयों में चला गया है.
कोल्हान टाइटिल सूट कोर्ट अपने आप में अलग तरह का न्यायालय है जो, पूरे राज्य में सिर्फ पश्चिमी सिंहभूम में स्थापित है. यहां अपर उपायुक्त (एडीसी) को कोर्ट संचालन की न्यायिक शक्ति मिली हुई है.
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