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क्यों नहीं सुधर रही शिक्षा की गुणवत्ता?

हमारे देश में सरकारी विद्यालयों की शिक्षा की गिरती गुणवत्ता चिंता का विषय है. इन विद्यालयों में पढ़नेवाले बच्चे पिछड़ रहे हैं. उन्हें उचित शिक्षा के अभाव में रोजगार तलाशने में काफी परेशानी हो रही है. इन विद्यालयों से उत्तीर्ण छात्र सिपाही एवं सेना में निचले स्तर के पदों के अलावा किसी अच्छे पदे पर […]

हमारे देश में सरकारी विद्यालयों की शिक्षा की गिरती गुणवत्ता चिंता का विषय है. इन विद्यालयों में पढ़नेवाले बच्चे पिछड़ रहे हैं. उन्हें उचित शिक्षा के अभाव में रोजगार तलाशने में काफी परेशानी हो रही है.
इन विद्यालयों से उत्तीर्ण छात्र सिपाही एवं सेना में निचले स्तर के पदों के अलावा किसी अच्छे पदे पर आसीन नहीं हो पाते. जो बच्चे सरकारी अथवा निजी संस्थानों में नौकरी पाते हैं, उनकी संख्या बहुत कम है.
आम तौर पर यह माना जाता है कि सरकारी विद्यालयों में गरीब व पिछड़े तबके के बच्चे पढ़ते हैं, इसीलिए इनके स्तर पर भी सरकार का ध्यान नहीं जा रहा है. ऐसे में यदि कोई गैर सरकारी संस्था शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने की दिशा में पहल करती है, तो वह अमृत के समान दिखायी देता है.
हाल ही में, झारखंड के खूंटी और कर्नाटक के एक जिले में रतन टाटा ट्रस्ट की ओर से बहुत ही उपयोगी योजना चलायी गयी है. इसके तहत सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले दूसरी और तीसरी कक्षा के विद्यार्थियों को गोद लेकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जा रही है. ट्रस्ट की ओर से 20 से 25 बच्चों पर एक शिक्षक की नियुक्ति की गयी है. ये सभी प्रशिक्षित शिक्षक हैं. इसके अलावा ट्रस्ट की ओर से आठवीं से 10वीं कक्षा के छात्रों को विज्ञान और गणित के साथ अच्छी अंग्रेजी की भी शिक्षा दी जा रही है.
यह संस्था की ओर से उठाया गया सराहनीय कदम है. सवाल यह भी पैदा होता है कि आखिर सरकार शिक्षा की गुणवत्ता के प्रति ध्यान क्यों नहीं दे रही है? यदि गैर सरकारी संस्था और अन्य निजी संस्थान बेहतर शिक्षा प्रदान कर सकते हैं, तो सभी संसाधनों से युक्त होने के बाद सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार क्यों नहीं हो सकता? आखिर सरकार इसमें सुधार क्यों नहीं कर रही है?
सुजीत मांझी, खूंटी

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