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दहेज प्रथा को समूल खत्म करना होगा

राजाराम मोहन राय द्वारा चलाये गये अभियान के बाद बाल विवाह तथा सती प्रथा पर तो बहुत हद तक विराम लग गया है, लेकिन दहेज प्रथा आज भी सामाजिक कुरीतियों में शामिल है. हमारे देश में दहेजरहित शादी की कल्पना करना असंभव है. दहेज का लेन-देन अक्सर मध्यम व निम्नवर्गीय परिवारों में ही होता है. […]

राजाराम मोहन राय द्वारा चलाये गये अभियान के बाद बाल विवाह तथा सती प्रथा पर तो बहुत हद तक विराम लग गया है, लेकिन दहेज प्रथा आज भी सामाजिक कुरीतियों में शामिल है.
हमारे देश में दहेजरहित शादी की कल्पना करना असंभव है. दहेज का लेन-देन अक्सर मध्यम व निम्नवर्गीय परिवारों में ही होता है. इन परिवारों में बेटे का मतलब लाखों का चेक और बेटी का मतलब बोझ होता है. आज भारत में हर रोज बेटियां दहेजलोभियों के हत्थे चढ़ अपनी जान गंवा रही है.
इन दहेजलोभियों को कड़े कानून का भी भय नहीं है. दहेज प्रथा एक ऐसा कलंक है, जिसकी वजह से कोई भी गरीब लड़की डॉक्टर या इंजीनियर लड़के से शादी के सपने भी नहीं देख सकती. हमारे देश में एक बार फिर राजाराम मोहन राय की तरह मुहिम चला कर इस कुरीति को हर हाल में समाप्त करना होगा.
चंदा साहू, देवघर

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