झारखंड में विधानसभा चुनाव के समय सभी दलों के नेताओं का बस एक ही नारा था कि उनकी सरकार बनेगी, तो वे राज्य का समुचित विकास करायेंगे. अब सूबे में सरकार बन गयी है, तब भी लोगों को यह पता नहीं चल पा रहा है कि यह विकास कैसा होगा और किसके लिए होगा? यहां के दलित, शोषित वर्ग के लोग बीपीएल का चावल, लाल कार्ड, पीला कार्ड चाहते हैं.
बड़े-छोटे व्यवसायी सहज तरीके से कच्च माल चाहते हैं. छोटे नेता स्थानीयता के नाम पर रंगदारी चाहते हैं. बुजुर्ग जन और विधवाएं पेंशन पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं. मनरेगाकर्मी और पारा शिक्षकों को वेतन वृद्धि के लिए सरकारी घोषणाओं का इंतजार करना पड़ रहा है. क्षेत्रीय पार्टियां अपना बहुमत ही सबके लिए रामबाण बताती हैं. वह दावा करती हैं कि उनके बहुमत के बाद ही राज्य का विकास संभव है. यह सब तो ठीक है, लेकिन किसी ने अभी तक यह साफ क्यों नहीं किया है कि उनके द्वारा कराये जानेवाले विकास कार्यो का लाभ किसे मिलेगा?
आज स्थिति यह है कि आजादी के छह दशकों में ही राज्य की हजारों एकड़ जमीन से वनों को उजाड़ दिया गया. छोटे-बड़े पहाड़ों और टोंगरियों के पत्थर, नदी के बालू, जमीन के अंदर छिपे खनिज पदार्थ बेच दिये गये. छोटे कल-कारखानों को बंद करके मजदूरों को उजाड़ दिया गया. बड़े उद्योगों ने हजारों लोगों को विस्थापन के लिए मजबूर कर दिया. गैर उत्पादक वर्ग के चयन ने एक नये चतुर चालाक वर्ग को जन्म दिया, जो शोषकों और लुटेरों के लिए मार्गदर्शक का काम कर रहा है. आदिवासियों के नेता हवाई जहाज में सफर कर रहे हैं. ऐसे में भला राज्य का कैसे और किसके लिए विकास होगा, नेता जरा स्पष्ट करें.
बीरेंद्र प्रसाद शर्मा, धनबाद