नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक निश्चित समय सीमा के भीतर एकाग्रचित्त होकर गंगा के प्रदूषण को समाप्त करने का आह्वान किया. उन्होंने इस पवित्र नदी के किनारे पर्यावरण के अनुकूल आधुनिक श्मशानघाट बनाने तथा अपशिष्ट जल का प्रवाह करने वाले उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई करने के सुझाव दिए.
उन्होंने ‘नमामी गंगे परियोजना’ पर आज एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता करते हुए उक्त सुझावों के साथ कहा कि इस परियोजना को प्रदूषण के स्रोत पर ही नियंत्रण लाने के लिए मुख्यत: दो बातों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए. प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार मोदी ने कहा कि,’ गंगा को गंदा ना करें. इसके लिए प्रदूषण के दो प्रमुख स्रोतों को नियंत्रित करने के लिए मुख्यत: दो क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करना होगा. ये हैं: शहरी जलमल और औद्योगिक अपशिष्ट.’
उन्होंने औद्योगिक अपशिष्ट जल की रीसाइक्लिंग (पुनर्चकरण) पर खास जोर दिया. उन्होंने कहा,’ औद्योगिक इकाइयों को प्रदूषण रोकने के लिए प्रेरित करना चाहिए और ऐसा नहीं करने वालों के विरुद्ध वर्तमान कानूनों के तहत कार्रवाई करनी होगी.’
भारत की इस प्रमुख नदी का प्रदूषण सामाप्त करने में मदद के लिए ‘गंगा वाहिनी’ नामक स्वयंसेवियों का नेटवर्क बनाने को भी मंजूरी दी गई. इस नेटवर्क को कामकाजी बनाने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं. ऐसी 118 स्थानीय निकाय इकाइयों की पहचान की गई है जिन्हें पांच साल के भीतर प्रदूषण समाप्त करने के लिए सक्रिय किया जाएगा.
इस उच्च स्तरीय बैठक में प्रधानमंत्री को बताया गया कि गंगा को सबसे अधिक प्रदूषित करने वाले मुख्य कारक कौन से हैं. उन्हें बताया गया कि गंगा के आसपास के शहरों से प्रतिदिन निकलने वाले अपशिष्ट और उसे रिसाइक्लिंग करने की क्षमता में बहुत अधिक अंतर है.
गंगा के आस पास की ऐसी 764 औद्योगिक इकाइयों की शिनाख्त की गई जो नदी को प्रदूषित करती हैं. इनमें तीन-चौथाई चमड़ा, लुगदी एवं कागज तथा चीनी से संबंधित उद्योग हैं.बैठक में केंद्रीय मंत्रियों में एम वेंकैया नायडू, नितिन गडकरी, उमा भारती और प्रकाश जावडेकर के अलावा वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित हुए. वहीं प्रधानमंत्री को गंगा के पास सीवेज व्यवस्था बेहतर करने और नदी के किनारे सुंदरीकरण परियोजनाओं की प्रगति की भी जानकारी दी गई.