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कहीं लोग त्योहारों से डरने न लगें!
भारत पर्व-त्योहारों, उत्सवों का देश है. यहां इतने जाति-धर्म, समुदाय, विचारों, भाषाओं के लोग रहते हैं कि आये दिन कुछ न कुछ आयोजन होता ही रहता है. रविवार को, इसलाम की नींव रखनेवाले पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्मदिन पूरे उल्लास के साथ मनाया गया. लेकिन इस पाक मौके पर गिरिडीह में जो बलवा हुआ, वह […]
भारत पर्व-त्योहारों, उत्सवों का देश है. यहां इतने जाति-धर्म, समुदाय, विचारों, भाषाओं के लोग रहते हैं कि आये दिन कुछ न कुछ आयोजन होता ही रहता है. रविवार को, इसलाम की नींव रखनेवाले पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्मदिन पूरे उल्लास के साथ मनाया गया. लेकिन इस पाक मौके पर गिरिडीह में जो बलवा हुआ, वह शर्मसार करनेवाला है. भारत की ‘विविधता में एकता’ की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है.
झारखंड की संस्कृति तो और ज्यादा बहुरंगी और मिलजुल कर रहने की है. लेकिन, अब ये बातें सिर्फ किताबी लगने लगी हैं. झारखंड के सामाजिक ताने-बाने में बिखराव साफ दिखने लगा है. राज्य में ऐसी कई ताकतें सक्रिय हैं, जो मौका खोजती रहती हैं कि कैसे छोटे-मोटे मसलों को हिंदू-मुसलिम, सरना-ईसाई, आदिवासी-गैर आदिवासी, बाहरी-भीतरी के टकराव में बदल दिया जाये.
इन लोगों ने विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास की खाई गहरी कर दी है. ऐसे में आग लगाने के लिए एक चिनगारी ही काफी होती है. गिरिडीह में ईद मिलाद-उन-नबी के जुलूस के दौरान भी यही हुआ. एक मामूली सी झड़प ने सांप्रदायिक दंगे का रूप ले लिया. यह इकलौती घटना नहीं है. हालत यह हो गयी है कि हर त्योहार शांति-भंग की आशंका के साथ आता है. ईद हो या बकरीद, सरस्वती पूजा हो या दुर्गा पूजा, बवाल होने का डर लगा ही रहता है.
आज हर समुदाय में एक कुप्रवृत्ति बढ़ी है, सड़क पर त्योहार मनाने की. जुलूसों की संख्या और आकार बढ़ते ही जा रहे हैं. राजनीतिक जुलूसों के लिए बीसों पाबंदियां हैं, लेकिन धार्मिक जुलूसों में मनमानी चलती है. कोई रोकनेवाला नहीं, कोई टोकनेवाला नहीं. और, अगर कोई रोक -टोक करे, तो धर्म के ठेकेदार इसे अपनी आस्था पर हमला बता कर गोलबंदी शुरू कर देते हैं. अब वक्त आ गया है कि त्योहारों को सड़कों से दूर रखने के लिए सरकार सख्त कदम उठाने शुरू करे. उत्सव मने, पर दूसरों को असुविधा में डाल कर नहीं.
गिरिडीह में हुए बवाल के लिए दोषियों को चिह्न्ति कर उनके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाये. अक्सर सामूहिक उपद्रव में गुनहगार बच निकलते हैं. समाज को भी सांप्रदायिक विद्वेष फैलानी वाली ताकतों के खिलाफ वैचारिक लड़ाई लड़नी होगी.
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