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सरकार ने बताया अवैध विवि ने कर दिया नियमित

शिक्षा में गोलमाल अकसर शिक्षा में गिरावट की बात होती है. प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय तक की शिक्षा में किस तरह से घुन लगा है उसकी बानगी हम आज आपके सामने पेश कर रहे है. पहला मामला विवि से जुड़ा है. जहां सरकार के उस पत्र को आधार बनाकर 67 कर्मचारियों का नियमित कर दिया […]

शिक्षा में गोलमाल
अकसर शिक्षा में गिरावट की बात होती है. प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय तक की शिक्षा में किस तरह से घुन लगा है उसकी बानगी हम आज आपके सामने पेश कर रहे है. पहला मामला विवि से जुड़ा है. जहां सरकार के उस पत्र को आधार बनाकर 67 कर्मचारियों का नियमित कर दिया गया है. जिसमें सरकार ने नियुक्ति के मानक तय किये थे. जो इन नियुक्तियों के खिलाफ है. दूसरा मामला प्राइमरी शिक्षा से जुड़ा है जहां बिना स्कूल के 10 लाख रुपये जारी कर दिये गये.
कुणाल
मुजफ्फरपुर : बीआरए बिहार विवि में 2011 व 2012 में 67 कर्मचारियों को नियमित किया गया था. इसमें से चौदह कर्मचारियों को नियमित करने का फैसला सरकार के जिस पत्र का हवाला देकर किया गया, उसमें उनकी नियुक्ति को ही अवैध बताया गया था. सेवा नियमित होने के पहले दो वर्ष बाद भी जब कर्मचारियों को वेतन भुगतान नहीं हुआ, तो वे हाइकोर्ट में गये.
सुनवाई के दौरान पिछले साल कोर्ट को ‘स्टेटमेंट ऑफ फैक्ट’ देने में भी गड़बड़ी हुई. इसके कारण हाइकोर्ट ने गत दिसंबर माह में कर्मचारियों के दावे को सही मानते हुए उनके वेतन भुगतान का आदेश विवि को दिया है. अब विवि की मुश्किल है कि आखिर वह इन कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करें, तो कहां से! ऐसे में अब उसने खुद हाइकोर्ट में याचिका दायर करने का फैसला लिया है. इसके लिए लीगल सेक्शन को पेपर तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है, हालांकि इस पूरे मामले ने विवि प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठा दिया है.
सूबे के विवि में 1980 से पूर्व कार्य कर रहे कर्मचारियों को कॉलेजों में रिक्त पद रहने की स्थिति में नियमित करने का प्रावधान था. इस आधार पर राम प्रसाद सिंह कॉलेज चकियाज (महनार, वैशाली) के तेरह कर्मचारियों ने खुद को नियमित करने के लिए 2011 में हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाइकोर्ट के निर्देश पर राज्य सरकार ने मामले की जांच की जिम्मेदारी विवि प्रशासन को दी. जांच कमेटी ने उन कर्मचारियों की नियुक्ति में नियमों का पालन नहीं होने व 1980 से पूर्व नियमित रू प से कॉलेज में कार्य करने का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं होने की रिपोर्ट दी.
इसके आधार पर राज्य सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग के प्रधान सचिव अंजनी कुमार सिंह ने उक्त कर्मियों की नियुक्ति को जन्मजात अवैध बताते हुए पत्रंक 3055 के माध्यम से कोर्ट को रिपोर्ट सौंपी. बाद में कुलपति डॉ विमल कुमार ने उसी पत्रंक का हवाला देते हुए कॉलेज के चौदह कर्मचारियों को नियमित कर दिया. इसमें दस क्लर्क व चार अनुसेवक शामिल हैं. इन सभी को एक माह वेतन का भी भुगतान किया गया, हालांकि सरकार ने इन सभी के वेतन के लिए राशि मुहैया नहीं करायी. इसके बाद उनका वेतन बंद कर दिया.
सरकार नहीं दे रही पैसा
2014 में जब इन कर्मचारियों ने वेतन भुगतान के लिए फिर हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तो कोर्ट ने विवि को स्टेटमेंट ऑफ फैक्ट देने को कहा. इसके जवाब में विवि ने जो हलफनामा दायर किया, उसमें वेतन भुगतान नहीं होने की वजह सरकार से पैसा नहीं मिलना बताया गया. कोर्ट ने उसकी इस दलील को मानने से इनकार कर दिया व सभी कर्मचारियों को 30 नवंबर 2011 से वेतन भुगतान का आदेश दिया.
सरकार से भी मिली फटकार
हाइकोर्ट के आदेश के बाद विवि प्रशासन ने सरकार से नियमित हुए कर्मचारियों के वेतन भुगतान के लिए गुहार लगायी, लेकिन सरकार के प्रतिनिधियों ने उन्हें 2011 में प्रधान सचिव की ओर से जारी पत्र 3055 की कॉपी देखने को कहा. काफी खोजबीन के बाद जब पत्र की कॉपी मिली जो अधिकारी अवाक रह गये. अब अपनी गरदन बचाने के लिए उन्होंने मामले में हाइकोर्ट में याचिका दायर करने का फैसला लिया है.
कोर्ट::
आरपीएस कॉलेज चकियाज के चौदह कर्मचारियों की सेवा नियमित करने के लिए सरकार के जिस पत्र को आधार बनाया गया था, उसमें उनकी नियुक्ति को ही अवैध बताया गया है. पूर्व में इस पत्र की कोई जानकारी नहीं थी. अब जब यह सामने आ गया है तो इस संबंध में हाइकोर्ट में याचिका दायर करने का फैसला लिया गया है. इसके लिए लीगल सेक्शन को संचिका तैयार करने की जिम्मेदारी भी सौंप दीगयी है.
डॉ विवेकानंद शुक्ला, कुलसचिव

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