हमारा देश दर्शन, धर्म, आचरण, मधुरता, कोमलता और प्रेम की मातृभूमि है. ये सब चीजें अभी भी भारत में विद्यमान हैं. मुझे दुनिया के संबंध में जो जानकारी है, उसके बल से मैं दृढ़तापूर्वक कह सकता हूं कि इन बातों में पृथ्वी के अन्य देशों की अपेक्षा भारत अब भी श्रेष्ठ है. त्याग भारत के आदर्शो में अब भी सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च है.
यह बुद्ध की भूमि, रामानुज की भूमि, रामकृष्ण परमहंस की भूमि, वह भूमि जहां प्राचीन काल से कर्मकांड के विरुद्ध प्रतिवाद किया गया और जहां आज भी ऐसे सैकड़ों महापुरुष हैं, जिन्होंने सब विषयों का त्याग कर दिया और जीवमुक्त बने बैठे हैं- क्या वह भूमि अपने आदर्श को छोड़ देगी? कदापि नहीं! यहां ऐसे मनुष्य रह सकते हैं, जिनका मस्तिष्क पश्चिमी विलासिता के आदर्श से विकृत हो गया है.
यहां ऐसे हजारों नहीं, लाखों मनुष्य रह सकते हैं, जो विलास-मद में चूर हो रहे हैं. किंतु इतने पर भी हमारी मातृभूमि में हजारों ऐसे भी होंगे, जिनके लिए धर्म शाश्वत सत्य है- और जो जरूरत पड़ने पर फलाफल का विचार किये बिना ही सब कुछ त्याग देने के लिए तैयार हो जायेंगे. हम अपनी संपूर्ण बुराइयों के बावजूद नीति एवं अध्यात्म में दूसरे राष्ट्रों से बहुत ऊंचे हैं, एवं उसके निस्वार्थी सुपुत्रों की समुचित सावधानी, प्रयास एवं संघर्ष के द्वारा पाश्चात्य देशों के वीरोचित तत्वों को हिंदुओं के शांत गुणों के साथ मिलाते हुए एक ऐसे मानव-समुदाय की सृष्टि की जा सकती है, जो इस संसार में अब तक पैदा हुई किसी भी जाति से महान होगा.
स्वामी विवेकानंद