11.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नीति आयोग के गठन के मायने

नये वर्ष के पहले दिन मोदी सरकार द्वारा 65 वर्ष पुराने ‘योजना आयोग’ की जगह ‘नीति आयोग’ (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिग इंडिया) की स्थापना की घोषणा की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस संबोधन के बाद पिछले वर्ष अगस्त में सरकार ने मार्च, 1950 के उस कैबिनेट प्रस्ताव को रद्द कर दिया था, जिसके […]

नये वर्ष के पहले दिन मोदी सरकार द्वारा 65 वर्ष पुराने ‘योजना आयोग’ की जगह ‘नीति आयोग’ (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिग इंडिया) की स्थापना की घोषणा की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस संबोधन के बाद पिछले वर्ष अगस्त में सरकार ने मार्च, 1950 के उस कैबिनेट प्रस्ताव को रद्द कर दिया था, जिसके तहत योजना आयोग का गठन हुआ था.
केंद्रीकृत योजना बनाने की जगह भारत की विविधता और राज्यों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए सहकारी संघीय ढांचे को मजबूत करने और राज्यों की केंद्र पर निर्भरता को कम करने का नीति आयोग का उद्देश्य निश्चित रूप से सराहनीय है. व्यावहारिक रूप से योजना आयोग की हैसियत केंद्रीय कैबिनेट के समकक्ष हो गयी थी और राज्यों को केंद्रीय सहायता के आवंटन तथा केंद्र सरकार के खर्च के अनुमोदन के विशिष्ट अधिकारों के कारण राज्य सरकारें और विभिन्न सरकारी विभाग अकसर असंतुष्ट रहते थे. कई मुख्यमंत्रियों ने तो यहां तक कह दिया था कि आयोग से आवंटन का अनुरोध करना भीख के लिए गिड़गिड़ाने जैसा है.
आयोग के इस पुनर्गठन के बाद अब राज्यों का सीधा प्रतिनिधित्व मिलेगा. औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में सरकार की भूमिका में भी कमी का प्रस्ताव है और अब उसका मुख्य ध्यान विधान और नीतियां बनाने तथा नियमन पर होगा. देश की बदलती आर्थिक स्थिति के अनुरूप लंबे समय से योजना आयोग में सुधार की जरूरत महसूस की जा रही थी. लेकिन नयी संस्था को योजना आयोग के नीतिगत और बौद्धिक योगदान तथा ऐतिहासिक अनुभवों को भी ध्यान में रखना चाहिए तथा उसके सकारात्मक पहलुओं को अंगीकार करने में संकोच नहीं करना चाहिए.
राज्यों व राजनीतिक दलों समेत नागरिकों को भी नये आयोग को लेकर सचेत रहना चाहिए, क्योंकि इसे न सिर्फ देश के संघीय ढांचे के अनुरूप काम करना है और निरंतर विकेंद्रीकरण की ओर बढ़ना है, बल्कि इसे दीर्घजीवी भी बनना है. साथ ही, विभिन्न दलों और विशेषज्ञों की इस चिंता को भी ध्यान में रखना होगा कि कहीं सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे सामाजिक क्षेत्रों में और गरीबी निवारण के उपायों पर खर्च में कटौती और निजी क्षेत्र के प्रवेश का रास्ता तो तैयार नहीं कर रही है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें