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मेटाबॉलिज्म को प्रभावित करता है थायरॉयड

थायरॉयड एंडोक्राइन सिस्टम का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो मेटाबॉलिज्म को सुचारू रखता है. इसी की मदद से शरीर भोजन से ऊर्जा प्राप्त करता है. शरीर यह निर्धारित करता है कि इससे कितनी एनर्जी प्राप्त करनी है. इसी कारण कुछ लोगों का मेटाबॉलिज्म तेज और किसी में धीमा होता है. थायरॉयड यह कार्य थायरॉक्सिन हॉर्मोन की […]

थायरॉयड एंडोक्राइन सिस्टम का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो मेटाबॉलिज्म को सुचारू रखता है. इसी की मदद से शरीर भोजन से ऊर्जा प्राप्त करता है. शरीर यह निर्धारित करता है कि इससे कितनी एनर्जी प्राप्त करनी है. इसी कारण कुछ लोगों का मेटाबॉलिज्म तेज और किसी में धीमा होता है. थायरॉयड यह कार्य थायरॉक्सिन हॉर्मोन की मदद से करता है. इसी हॉर्मोन की कमी या अधिकता से कई प्रकार के रोग होते हैं.
त्वचा, बाल व नाखून पर भी असर
हाइपो और हाइपर थायरॉयडिज्म दोनों अवस्थाओं में त्वचा, नाखून और बाल प्रभावित होते हैं. हाइपो थायरॉयडिज्म से होनेवाली समस्याएं :
ड्राइ स्किन (7ी12्र2) : पसीने और तेल की ग्रंथी से स्नव कम या बंद हो जाता है. इससे ड्राइ स्किन की समस्या होती है. ठंड में यह समस्या और बढ़ जाती है और जिरोटिक एग्जिमा का खतरा रहता है. इसमें डॉक्टर की सलाह से नियमित मॉश्च्युराइजर जैसे-एलोवेरा, विटामिन इ क्रीम लगाएं.
टीलोजेन इफ्ल्यूवियम : इसमें सफेद बालों की संख्या बढ़ जाती है. बाल रूखे-सूखे, कमजोर एवं बेजान हो जाते हैं. हल्की कंघी करने से भी ये गिर जाते हैं. 70-100 बाल रोज गिरना सामान्य है. इस रोग में यह संख्या बढ़ कर 200-300 हो जाती है. कभी-कभी अधिक गिरने से पूर्ण या आंशिक गंजेपन का खतरा होता है. ऐसी स्थिति में तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए. इसमें डॉक्टर मिनोक्सिडिल सोलो सन सिर में लगाने के लिए और बायोटिन नामक विटामिन की गोली खाने के लिए देते हैं. इससे बाल झड़ने रुक जाते हैं और वे मजबूत होने लगते हैं. ड्राइ स्किन में रूसी अधिक होती है. कीटो कोनाजॉल एवं जिंक पाइरोथ्रोन युक्त शैंपू बालों की जड़ों में लगा केधोएं.
ब्रिट्ल नेल : इसमें नाखून सूखा और आगे से उठ जाता है. इलाज नहीं होने पर फंगल इन्फेक्शन हो जाता है. इसमें नेल केराटोलाइटिस, एंटी फंगल टेबलेट व बायोटिन, जिंक एवं सल्फर युक्त एमीनो एसिड दिया जाता है.
क्रॉनिक आइडोपैथिक अर्टिकेरिया : क्रॉनिक अर्टिकेरिया या जूरपित्ती की समस्या भी होती है. शरीर में लाल चकत्ते हो जाते हैं. आंखों, होंठों में सूजन आ जाती है. इसमें एंटी एलजिर्क गोली फेक्सोफेनाडाइन देते हैं.
विटिलिगो : इसे सफेद दाग की समस्या भी कहते हैं. इसमें रंग बनाने की कोशिकाएं रंग बनाना बंद कर देती हैं. यह कई कारणों से होता है. कुछ में इसका कारण हाइपोथायरॉयज्मिड को माना गया है. हॉर्मोन की सही मात्र के प्रयोग से यह भी ठीक होने लगता है.
त्नडॉ क्रांति, (चर्म रोग) आइजीआइएमएस त्नबातचीत व आलेख : अजय कुमार
थायरॉयड ग्लैंड को जानें
थायरॉयड ग्लैंड एडम्स एप्पल और कॉलर बोन के बीच में स्थित होता है. यह ळ3 और ळ4 हॉर्मोन का स्नव करता है, जो एड्रेनेलाइन, एपीनेफ्राइन और डोपामाइन को रेगुलेट करता है. ये तीनों रसायन मस्तिष्क में सक्रिय रहते हैं. इससे निकलनेवाले अन्य हॉर्मोन मेटाबॉलिज्म को कंट्रोल करते हैं. थायरॉयड के सही तरीके से कार्य न कर पाने की स्थिति में शरीर प्रोटीन को तोड़ नहीं पाता है. काबरेहाइड्रेट और विटामिन की प्रक्रिया में भी कमी आती है. इससे वजन तेजी से
बढ़ता है.
हाइपरथायरॉयडिज्म : इस अवस्था में हॉर्मोन की मात्र ज्यादा निकलती है.
क्या हैं कारण : त्नग्रेव्स डिजीज त्नटॉक्सिक मल्टीनॉड्यूलर ग्वाइटर
टॉक्सिक एडिनोमा थायरॉयडाइटिस त्नग्रंथी में सूजन त्नकुछ दवाओं के कारण त्नब्रेन ट्यूमर त्नथायरॉयड कैंसर
क्या हैं लक्षण : हॉर्मोन की अधिकता से थायरोटॉक्सिकोसिस के लक्षण दिखाई पड़ते हैं. इसमें घबराहट, उत्तेजना, शरीर का वजन कम होना, गले का फूल जाना, गरमी ज्यादा लगना, पसीना ज्यादा आना, बार बार दस्त होना, धड़कन बढ़ जाना, बुखार जैसा लगना, हाथों में कंपन होना, पलकों का खिंच जाना, मांसपेशियों में कमजोरी, मासिक में अनियमतता.
उपचार : हॉर्मोन का स्नव कम करने के लिए थायोनामाइड दी जाती है. धड़कन कम करने के लिए बीटा ब्लॉकर ड्रग्स का इस्तेमाल होता है. थायरॉयडायटिस में स्वत: भी ठीक हो जाता है. कभी-कभी इसके इलाज में रेडियोएक्टिव आयोडीन एवं सजर्री की आवश्यकता पड़ती है.
थायरॉयड कैंसर : थायरॉयड कैंसर में, थायरॉयड ग्लैंड में कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़नी शुरू हो जाती हैं. पता प्रारंभिक स्तर पर आसानी से चल जाता है. ट्रीटमेंट संभव है मगर दोबारा होने की आशंका भी है. प्रमुख लक्षण : त्नगरदन में सूजन त्नगरदन और कानों में दर्द त्नसांस लेने में दिक्कत आवाज बदलना कॉमन रिस्क :त्नअधिक उम्र में त्नमहिलाओं को अधिक त्नथायरॉयड मरीज में त्नफैमिली हिस्ट्री रहा हो. इलाज : इसका इलाज सर्जरी से संभव है. रेडिएशन थेरेपी और कीमोथेरेपी से भी इलाज होता है. इलाज का तरीका उम्र और कैंसर की अवस्था पर निर्भर. लक्षण दिखे, तो तुरंत इलाज शुरू कराएं.
बातचीत : कुलदीप तोमर
ये हैं प्रमुख जांच
थायरॉयड संबंधित रोगों की जानकारी हेतु साधारणत: ये जांच करवायी जाती हैं- त्नटी3, टी4, टीएसएच की जांच त्नएंटी टीपीओ की जांच त्नथायरॉयड ग्रंथी का अल्ट्रासाउंड त्नथायरॉयड ग्रंथी की एफएनएसी त्नरेडियो आयोडिन अपटेक टेस्ट
होमियोपैथी में क्या है उपचार
हाइपरथायरॉयडिज्म में निम्‍न उपचार हैं –
थायरॉयडिनम : खून की कमी, कमजोरी, सिर दर्द, हाथ-पैर कांपना, अधिक पसीना आना, धड़कन बढ़ना, हाथ-पैर ठंडे रहना. थायरॉयडिनम सीएम शक्ति की दवा चार बूंद महीने में एक बार लें. आयोडियम 30 : ज्यादा भूख रहने के बावजूद शरीर सूख रहा हो. थोड़ा श्रम करने पर भी धड़कन तेज हो जाये, तो आयोडियम चार बूंद रोज सुबह एक बार लें.
एस्पॉन्जिया 30 : अधिक थकावट, धड़कन बढ़ने से सीधा न लेट पाना. नींद में बेचैनी बढ़ना. चार बूंद रोज सुबह खाली पेट लें.
एग्जोप्थैलमस ग्वाइटर : इसमें थायरॉयड ग्लैंड की सक्रियता बढ़ जाने से दोनों आंखें बाहर निकली हुई लगती हैं.
लाइकोपस वर्ज 30 : आंखें बाहर निकली हों, हृदय की धड़कन बढ़ी हो, कपाल में दर्द हो तो चार बूंद रोज सुबह लें.
इफेड्रा वल्गेरिस 30 : उपयरुक्त लक्षणों में यह भी दी जा सकती है.
डॉ एस चंद्रा, होमियोपैथी विशेषज्ञ
आयुर्वेद में उपचार
फास्ट फूड न खाएं. बंदगोभी, फूलगोभी, सोयाबीन, चुकंदर, बीन्स, पालक थायरॉयड रोग को बढ़ावा देते हैं. आयोडीन युक्त नमक लें. जाै की रोटी, मखाना, सहजन, कंचनार की फली, तुलसी, सिंघाड़ा भी फायदेमंद है. दवा का प्रयोग चिकित्सक के अनुसार ही करें. इसमें कंचनार गुगुल, आरोग्यवर्धनी वटी, अश्वगंधा, प्रवाल एवं पुनर्वादी गुगुल लाभ करता है. तनावमुक्त रहें एवं अपना मनोबल बढ़ा कर रखें.
डॉ कमलेश प्रसाद, आयुर्वेद विशेषज्ञ

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