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जीएसटी बैठक में राज्यों ने की उनके हितों की रक्षा की मांग
नयी दिल्ली : केंद्र द्वारा ऐतिहासिक वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक को संसद में पेश किए जाने के कुछ दिन बाद आज राज्यों ने प्रस्तावित नई प्रणाली में राजस्व हानि को लेकर अपनी चिंताओं को शीघ्र दूर किए जाने की मांग की. राज्य सरकारें यह भी चाहती हैं कि उन्हें और अधिक धन जारी […]
नयी दिल्ली : केंद्र द्वारा ऐतिहासिक वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक को संसद में पेश किए जाने के कुछ दिन बाद आज राज्यों ने प्रस्तावित नई प्रणाली में राजस्व हानि को लेकर अपनी चिंताओं को शीघ्र दूर किए जाने की मांग की. राज्य सरकारें यह भी चाहती हैं कि उन्हें और अधिक धन जारी किया जाए तथा केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं के क्रियान्वयन में उनकी भी बात सुनी जाए.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज यहां राज्यों के वित्त मंत्रियों के साथ बजट बैठक की. बैठक में राज्यों ने केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) के विकेंद्रीकरण की मांग भी उठाई. राज्यों का यह भी कहना था कि उन्हें बाजार से ऋण जुटाने का अधिक अधिकार मिले ताकि वे बुनियादी ढांचा विकास के वित्तपोषण के लिए धन आसानी से जुटा सकें.
चार घंटे तक चली बैठक के बाद जेटली ने संवाददाताओं से कहा, बजट के लिए नीतियां बनाते वक्त हम इन सभी सुझावों पर विचार करेंगे. राज्यों ने यह भी मांग उठायी कि जीएसटी के जल्द से जल्द कार्यान्वयन के लिए 2015-16 के बजट में केंद्रीय बिक्री कर (सीएसटी) संबंधी मुआवजे के लिए धन का समुचित प्रावधान किए जाना चाहिए.
जीएसटी के लिए संविधान संशोधन विधेयक पिछले सप्ताह लोकसभा में पेश किया गया. राज्यों के वित्त मंत्रियों ने सुझाव दिया कि एफआरबीएम कानून के तहत उनके लिए कर्ज जुटाने की सीमा में उंची की जानी चाहिए, जिससे वे बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के लिए धन जुटा सकें.
अन्नाद्रमुक शासित राज्य तमिलनाडु ने राजस्व निरपेक्ष दर, दरों में घट-बढ का दायरा (बैंड) और राजस्व हानि के लिए मुआवजे के तौर तरीके तथा सीमा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति के बिना जीएसटी विधेयक को लागू करने का विरोध किया. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम ने कहा, यह हमें स्वीकार्य नहीं है. हम यह सुझाव देना चाहते हैं कि भारत सरकार राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति को इन मुद्दों पर निर्णय करने की अनुमति दे और उसके बाद ही इस विधेयक को लागू किया जाए. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सहयोगी तेलुगूदेशम पार्टी (टीडीपी) की सत्ता वाले तेलंगाना ने सीएसटी में कमी की वजह से राज्यों को होने वाले राजस्व नुकसान की भरपाई करने के लिए बजट में इसका प्रावधान करने की मांग की.
केरल के वित्त मंत्री के एम मणि ने कहा कि राज्यों की चिंता को जल्द से जल्द दूर किया जाना चाहिए. भाजपा शासित गुजरात ने मांग की कि जीएसटी दरों से ऊपर एक प्रतिशत कर की व्यवस्था को तब तक जारी रखा जाना चाहिए, जब तक राज्य इसको हटाने का सुझाव न दें.
बैठक में जेटली ने कहा कि देश के समक्ष सबसे बडी चुनौती वृद्धि दर को बढाने की है, क्योंकि इससे न केवल आर्थिक गतिविधियां बढेंगी बल्कि राजस्व संग्रहण में भी इजाफा होगा.
वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि विभिन्न अनुमानों के अनुसार 2015-16 में हमारी वृद्धि दर 6 से 6.5 प्रतिशत के बीच रहेगी. उन्होंने कहा कि सेवा क्षेत्र में अच्छी वृद्धि दिखाई दे रही है, हालांकि विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि कुछ गड़बड़ है.
चालू वित्त वर्ष में देश की वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है. 2013-14 में यह 4.7 प्रतिशत रही थी. बैठक में हुए विचार विमर्श की जानकारी संवाददाताओं को देते हुए जेटली ने कहा कि केंद्र के जीएसटी प्रस्ताव को जोरदार समर्थन मिल रहा है. इस प्रस्ताव को राज्यों के साथ विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है. हालांकि, राज्य इस बात को लेकर जरुर बेचैन हैं कि सीएसटी का मुआवजा उन्हें जल्दी दिया जाना चाहिए. बैठक में जनधन योजना व स्वच्छ भारत अभियान पर भी चर्चा हुई.
वित्त मंत्री ने कहा, बैठक में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर काफी विचार-विमर्श हुआ. मौजूदा स्थिति में देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए धन की जरुरत है. यह धन उचित ब्याज दर पर उपलब्ध होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों ने तो यहां तक इस साल एफआरबीएम सीमा को बढाने का सुझाव तक दे डाला, जिससे बाजारों में तरलता आ सके. जेटली ने कहा कि ज्यादातर राज्य केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) का विकेंद्रीकरण भी चाहते हैं, जिससे ये राज्य की जरुरतों के साथ ताल मेल बढे. कई राज्यों ने विशेष रुप से खुद से संबंधित मुद्दों पर भी सुझाव दिए.
कई राज्यों ने अटकी पड़ी परियोजनाओं, अपर्याप्त केंद्रीय अनुदान, सीएसएस के कार्यान्वयन में अपनी मामूली या कोई भूमिका नहीं होने के मुद्दे उठाए. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पास वित्त मंत्रलय का भी प्रभार है. उन्होंने केंद्र को जल्दबाजी में संविधान संशोधन को आगे बढाने के प्रति आगाह करते कहा कि इसका राज्य की वित्तीय स्वायत्तता तथा राजस्व स्थिति पर गंभीर दीर्घकालिक असर होगा.
तेलंगाना के वित्त मंत्री इताला राजेंद्र ने रिण लेने की सीमा को बढाकर राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का तीन से चार प्रतिशत करने की मांग की. उन्होंने कहा कि अनुदान को किसी शर्त के साथ सम्बद्ध करने की मौजूदा व्यवस्था से राज्यों की वित्तीय आजादी प्रभावित होती है.
गुजरात के वित्त मंत्री सौरभभाई पटेल ने कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढाने की मांग की जिससे राज्यों में संकट में फंसे किसानों को राहत मिल सके. उन्होंने चीन से विटरीफाइड टाइल्स के आयात पर डंपिंग रोधी शुल्क लगाने की मांग की. इसके साथ ही उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र की ओएनजीसी द्वारा कच्चे तेल पर किए जाने वाले रायल्टी भुगतान के मुद्दे को भी हल करने की मांग उठाई.
केरल के वित्त मंत्री के एम मणि ने उंचे डंपिंग रोधी शुल्क के जरिये चीन से आयातित उत्पादों पर अंकुश लगाने की मांग की जिससे घरेलू विनिर्माताओं का संरक्षण किया जा सके.
भाजपा शासित राजस्थान ने केंद्र प्रायोजित योजनाओं की संख्या को 10 तक सीमित किया जाना चाहिए. इसके बजाय राज्य विशेष से जुड़ी योजनाएं बनाई जानी चाहिए. उसने कहा कि सीएसटी के समाप्त होने के बाद राज्यों को होने वाले राजस्व नुकसान के मुआवजे को लेकर विश्वास की कमी को फौरन दूर किया जाना चाहिए.
वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि जेटली ने राज्यों के वित्त मंत्रियों से कहा है कि सरकार के समक्ष तात्कालिक चुनौती वृद्धि दर को बढावा देने की है, क्योंकि कि इससे आर्थिक गतिविधियां बढेंगी और राजस्व संग्रहण में भी इजाफा हो सकेगा.
उन्होंने देश को फिर से ऊंची वृद्धि दर की राह पर लाने के लिए राज्यों को केंद्र के साथ मिलकर काम करने को कहा. जेटली ने प्रधानमंत्री के फार्मूले का उल्लेख करते हुए कहा कि संघीय ढांचे में केंद्र व राज्य मिलकर ‘टीम इंडिया’ बनते हैं. उन्होंने कहा कि जब राज्य आगे बढ़ेंगे, तो देश आगे बढेगा. वित्त मंत्री ने कहा कि कुछ सक्रिय सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं और आगामी महीनों में इस तरह के कुछ और कदम देखने को मिलेंगे.
राज्य सरकारों ने राज्यों को सीधे कोष आवंटन, राज्यों में निवेश बढाने के लिए कर अवकाश आदि पर सुझाव दिए. इसके अलावा खनिजों वाले राज्यों ने लौह अयस्क पर निर्यात शुल्क हटाने की मांग की.
कुछ राज्यों ने शहरी नवीकरण मिशन के लिए जेएनएनयूआरएम के तहत अधिक धन की मांग की. साथ ही उन्होंने लघु एवं मझोले उद्यमों को प्रोत्साहन देने की बात भी उठाई.
वित्त मंत्री ने कहा कि राजकोषीय अनुशासन व आर्थिक वृद्धि के संतुलन से समझौता नहीं किया जा सकता. इस सरकार की वित्तीय प्रबंधन की पहल सहयोगपूर्ण संघवाद है. बैठक में अपने अपने राज्य के वित्त मंत्रालय का भी प्रभार संभाल रहे तीन मुख्यमंत्रियों, 13 वित्त मंत्रियों या उनके प्रतिनिधि मंत्रियों, दिल्ली के उपराज्यपाल और विभिन्न राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया.
वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा, वित्त सचिव राजीव महर्षि, राजस्व सचिव शक्तिकांत दास, मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन और वित्त मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकार भी बैठक में मौजूद थे.
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