नयी दिल्ली : लगातार हार से जूझ रही कांग्रेस का मनोबल ऐतिहासिक रूप से मौजूदा दौर में निचले स्तर पर है. पार्टी कार्यकर्ताओं में घोर निराशा है. अघोषित रूप से कांग्रेस की कमान संभाल चुके पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए चुनौतियों से पार पाना बेहद मुश्किल नजर आ रहा है. हालांकि राहुल अपने स्तर पर कोशिश कर रहे हैं.
अपनी छवि को बदलने व पार्टी की दशा सुधारने की वे हर मुमकीन कोशिश कर रहे हैं. पर, उनकी अपनी समस्याएं व सीमाएं हैं. राष्ट्रवादी आंदोलन में तपा कांग्रेस जैसा पार्टी संगठन धीरे-धीरे परिवारवाद की जकडन में आ गया और राहुल उसी के प्रतीक हैं. कांग्रेस की राजनीति में चटुकारिता की शैली भी हावी रही है. पर राहुल इन दोनों को खत्म करना चाहते हैं. याद कीजिए परिवारवाद का प्रतीक होने के बावजूद राहुल ने कहा था कि वे राजनीति से परिवारवाद को खत्म कर देंगे.
बहरहाल, कांग्रेस की हालिया समीक्षा में जो चीजें सामने उभर कर आ रही है उसके हवाले से यह खबर आ रही है कि क्या अल्पसंख्यक पूर्वाग्रह ही कांग्रेस के पतन का कारण है ?
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कल गुरुवार को ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारणों को जानने और उसे दुबारा उठाने के लिए पार्टी पदाधिकारियों से बातचीत कर सुझाव मांगा. उन्होंने पार्टी महासचिवों, राज्य के प्रभारियों और जिला कार्यकर्ताओं से लगातार संपर्क में है और इन कारणों की पड़ताल कर रहे हैं कि आखिर 129 साल पुरानी कांग्रेस को फिर वही मुकाम में लाने के लिए क्या किया जा सकता है.
मीडिया में यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस की हिंदू विरोधी छवि उनकी हासिये में जाने का कारण है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस बयान को भी गौर करने की जरुरत है जिसमें उन्होंने कहा था कि देश के संसाधनों में पहला हक अल्पसंख्यकों का है. उन्होंने कहा था कि राज्य एवं केंद्र की नौकरियों में अल्पसंख्यकों की अधिक से अधिक भागीदारी हो. कांग्रेस के लोकसभा में हार के बाद तत्कालिक रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने भी यह बयान दिया था कि अल्पसंख्यकों की ओर ज्यादा झुकाव के कारण कांग्रेस हारी.
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव 2014 के ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जामा मस्जिद के शाही इमाम बुखारी से मुलाकात की थी. चुनाव के पहले हुई इस मुलाकात को मीडिया व देश में चुनाव से जोडकर देखा गया. गृह मंत्री के रूप में सुशील कुमार शिंदे के हिंदूवादी संगठनों पर हमले वाले बयान की भी चर्चा होती है.
कांग्रेस की इन बारीक कमजोरियों को भाजपा ने बेहतर ढंग से समझा और भुनाया. अब कांग्रेस हाईकमान खुद इन सवालों का समाधान तलाश रहा है. कांग्रेस जिसकी छवि आजादी के पूर्व आंशिक रूप से दक्षिणपंथी थी आज उसकी छवि जनमानस में कुछ और या तो हो गयी है या बना दी गयी है.
अब राहुल गांधी को यह समझना होगा कि यह छवि उनकी हो गयी है या सिर्फ उनके राजनीतिक विरोधीयों ने ऐसी बना दी है. या फिर इन दोनों अलग-अलग पक्षों में कोई तारतम्य है. अगर है, तो इसका हल ढूंढना ही कांग्रेस के लिए सबसे सुखद परिणाम होगा और राहुल की सबसे बडी उपलब्धि होगी.