इ-कॉमर्स भले ही एकबारगी समझ में नहीं आये, लेकिन फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, अमेजन जैसे नाम से अब शायद ही कोई अपरिचित हो. वर्ष 2014 ऑनलाइन बाजार के फलने-फूलने और विस्तार का साल रहा. ऑनलाइन सामान बेचने वाली कंपनियों ने क्वालिटी के साथ कम कीमत का ऐसा पासा फेंका है कि उपभोक्ता खिंचे चले आ रहे हैं.
इस साल छह अक्टूबर को इ-कॉमर्स ने इतिहास रचा. इ-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट का दावा रहा कि उसने इस दिन दस घंटे में छह सौ करोड़ रु पये का कारोबार किया. ऑनलाइन कंपनी फ्लिपकार्ट का मेगा सेल सुबह आठ बजे शुरू हुआ और कुछ ही मिनटों में ज्यादातर सामान आउट ऑफ स्टॉक हो गये. यह उदाहरण यह बताने के लिए काफी है कि भारत में ऑनलाइन कारोबार का किस तरह विस्तार हो चुका है.
इ-कॉमर्स का इस्तेमाल इ-मेल की तर्ज पर शुरू हुआ. इसका मतलब है-कम्प्युटर, मोबाइल, इंटरनेट जैसे इलेक्ट्रॉनिक साधनों के जरिय व्यापार करना. 1972 में पहली बार आइबीएम ने इस टर्म का इस्तेमाल शुरू किया. 1973 में अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के बीच पहली बार इसके जरिय सफल लेन-देन किया गया. 1990 के दशक में इंटरनेट के व्यावसायिक इस्तेमाल के बाद यह बड़े पैमाने पर लोकप्रिय हुआ. 1990 के दशक के अंत तक विकसित देशों में यह अपने ढलान पर जाने लगा और अमेरिका में इंटरनेट बाजार ध्वस्त हो गया, जिसे ‘डॉट कॉम बबल’ का फटना भी कहा जाता है. इस धंधे में बड़े पैमाने पर धन लगा हुआ था. इसलिए इसे बचाने के लिए इसके विस्तार की जरूरत थी. वर्ष 2000 के शुरुआती दौर में ही डब्ल्ययूटीओ और यूएनडीपी ने विकासशील देशों में इसकी व्यापक संभावनाओं से संबंधित अपनी रिपोर्ट जारी की. इन देशों में इसके विस्तार में एक बड़ी बाधा इससे संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव था. इसलिए इन बाजारों में इसके विस्तार में थोड़ा वक्त लगा.
भारत जैसे देश में ग्राहक जोखिम उठाने के पक्ष में नहीं रहते हैं. इसलिए इ-कॉमर्स के क्षेत्र में सबसे पहले जरूरी था, ग्राहकों में विश्वास का निर्माण करना. इस सिलसिले में पहली बार बड़े पैमाने पर फ्लिपकार्ट ने किताबों की बिक्री शुरू की. आज वह इस क्षेत्र में भारत में सबसे बड़ा खिलाड़ी है. हालांकि अब भी भारत में इ-कॉमर्स का क्षेत्र खरीदारी के मामले में सिमटा हुआ है. इसकी जद में अभी भी अपेक्षाकृत बड़े शहर ही हैं.
बड़े पैमाने पर इसके विस्तार के लिए अभी भी पर्याप्त लॉजिस्टिक्स नहीं है, ताकि इसका विस्तार और इलाकों में हो. अभी भी भारत में इ-कॉमर्स के क्षेत्र में कुल लेन-देन का लगभग 70 फीसदी यात्र से जुड़े हुए लेन-देन हैं. इसके अलावा भारत में इसके तेजी से विस्तार की एक वजह इस क्षेत्र में भारी पैमाने पर मुनाफा है. इस मुनाफे के पीछे एक वजह तो यह है कि यह व्यापार में शामिल बिचौलियांे को समाप्त करता है. इस बाजार के प्रति आम लोगों के आकर्षण के पीछे इस बाजार में वस्तुओं का अपेक्षाकृत सस्ता होना भी है. लेकिन, इसकी दूसरी वजह अभी विकासशील देशों में इस व्यापार की निगरानी से जुड़े तंत्र का पूरी तरह विकसित नहीं होना भी है. अभी भी ऑनलाइन व्यापार की निगरानी से जुड़ा हुआ तंत्र इतना हल्का है कि सारी इ-कॉमर्स कंपनियां इसका फायदा उठा रही हैं. इस बाजार में कई वस्तुएं ग्रे मार्केट की होती हैं, जो कर की चोरी करते हैं. कई इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद कंपनियों ने तो इन बाजारों से खरीदे गये वस्तुओं पर सेवा नहीं प्रदान करने की घोषणा कर दी है. इस तरह कानून में खामियों का फायदा भी ये कंपनियां उठा रहीं हैं.
2006 में भारत ने पहली बार थोक व्यापार और सिंगल ब्रांड में एफडीआइ की अनुमति दी. भारत में अभी भी खुदरा मल्टीब्रांड के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति नहीं है. लेकिन तमाम इ-कॉमर्स कंपनियों में बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश लगे हुए हैं. फ्लिपकार्ट, स्नैपडील सहित कई अन्य कंपनियों को रिटेलर के रूप में जाना जाता है, लेकिन ये वास्तव में यहां थोक व्यापार के नाम पर पंजीकृत हैं और भारी पैमाने पर विदेशी निवेश ले रही हैं. रिटेल व्यापार के लिए सबने एक डमी संगठन बनाया हुआ है, जिसके शेयर होल्डर्स से लेकर मैनेजमेंट तक कॉमन हैं. इन इ-कॉमर्स कंपनियों को होने वाले भारी घाटे का राज भी इसी प्रक्रिया में छुपा हुआ है.
एक अखबार के मुताबिक, 31 अक्तूबर को दाखिल किये गये रिटर्न के मुताबिक फ्लिपकार्ट और अमेजन दोनों को इस वर्ष भारी घाटा हुआ है. अमेजन ने जहां 321 करोड़ का घाटा दिखाया है, वहीं फ्लिपकार्ट ने 400 करोड़ का घाटा दिखाया है. हालांकि इस दौरान इनके राजस्व में लगभग दोगुनी वृद्घि हुई है. इ-कॉमर्स ने जो सबसे महत्वपूर्ण काम किया है कि इसने ग्राहकों और विक्रेताओं के बीच दूरी को लगभग खत्म कर दिया है. खरीदारी करने वालों को सहूलियत हुई है. उन्हें कहीं आने-जाने, दुकान में हील-हुज्जत करने से छुटकारा मिल गया है. लेकिन, इसका एक पक्ष यह भी है कि खुदरा क्षेत्र को इसका असर ङोलना पड़ेगा. इ-कॉमर्स के क्षेत्र में भी एकाधिकारी प्रवृति बढ़ रही है. प्रतियोगिता में बने रहने के लिए विलय और अधिग्रहण की शुरुआत भी हो गयी है. इसका खामियाजा एक समय के बाद ग्राहकों को उठाना पड़ेगा. निवेश बैंक एलेग्रो के सलाहकार का कहना है कि 2012 के अंत तक ‘वेंचर कैपिटल’ में 70 करोड़ डॉलर की उगाही करने वाली 52 इ-कॉमर्स कंपनियों में से महज 18 कंपनियां ही पिछले साल निवेश पर लाभ प्रदान करने में कामयाब रहीं. इसका मतलब है कि कंपनियों का एक बड़ा हिस्सा बाजार से बाहर होने की हालत में है.
इंटरनेट की दुनिया में संकेन्द्रण की हालत यह है कि गुगल सर्च इंजन के बाजार का लगभग 70 फीसदी नियंत्रित करता है. इस क्षेत्र को माइक्रोसॉफट, इंटेल, अमेजन, इ-बे, फेसबुक, सिस्को जैसी मुट्ठी भर कंपनियां नियंत्रित करती हैं. पूरे वाइ-फाइ चिपशेट के बाजार में लगभग दो कंपनियों का नियंत्रण है, जिनमें दोनों ने पूरे बाजार का लगभग 80 फीसदी हिस्सा आपस में बांट लिया है. इस पूरे व्यापार में विकासशील देश के लोग महज एक उपभोक्ता ही हैं. इस पूरे व्यापार की तकनीक कंप्यूटर से लेकर पेमेंट गेटवे तक का मालिकाना और नियंत्रण विकसित देशों के हाथों में है. इसका परिणाम यह होगा कि जो लोग खुदरा व्यापार से बाहर कर दिये जायेंगे, उनका फायदा जितना देश के लोगों को मिलेगा, उससे ज्यादा उन कंपनियों को मिलेगा, जिनका इसके तकनीक पर नियंत्रण है.
इसके अलावा भारत में आय की भारी असमानता के मद्देनजर यह भी कहा जा सकता है कि इ-कॉमर्स बाजार को एक हद से ज्यादा बढ़ाना संभव नहीं होगा. ऐसे भारतीय डाक विभाग ने भी खुद को इ-कॉमर्स के क्षेत्र से जोड़ने की घोषणा की है. इसका फायदा इ-कॉमर्स कंपनियों को भी होगा, क्योंकि डाक विभाग के पास तमाम इलाकों में अपना एक विकसित नेटवर्क है. इसके साथ-साथ भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘डिजिटल रिवोल्यूशन’ भी इ-कॉमर्स के बाजार को बड़ा करेगा. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारत में इ-कॉमर्स ने खरीदारों और एक हद तक बड़ी पूंजीवालों के लिए संभावना पैदा की है. यह अभी उभरता हुआ बाजार है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम के बारे में अभी बात किया जाना बाकी है.
(लेखक पटना विवि के अर्थशास्त्र विभाग में शोधार्थी हैं)