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विस्थापन और पलायन ही है नियति

खनिज संसाधनों से भरा झारखंड अपने स्थापना काल से ही कई मूलभूत समस्याओं से ग्रसित है. राज्य की जनता को इनसे मुक्ति मिलने के बजाय ये समस्याएं उत्तरोत्तर विकट होती जा रही हैं. पिछले 14 वर्षो में वह सब नहीं हो सका, जिसके लिए राज्य के हजारों लोगों ने आंदोलन किया था. राज्य गठन के […]

खनिज संसाधनों से भरा झारखंड अपने स्थापना काल से ही कई मूलभूत समस्याओं से ग्रसित है. राज्य की जनता को इनसे मुक्ति मिलने के बजाय ये समस्याएं उत्तरोत्तर विकट होती जा रही हैं. पिछले 14 वर्षो में वह सब नहीं हो सका, जिसके लिए राज्य के हजारों लोगों ने आंदोलन किया था. राज्य गठन के पहले भी दक्षिणी छोटानागपुर से मानव तस्करी और रोजगार की तलाश में लोगों का पलायन होता था और आज भी हो रहा है. विस्थापन और पलायन यहां की नियति ही बन गये हैं.

अब मानव तस्करी और लोगों का पलायन पहले की अपेक्षा और अधिक बढ़ गया है. ये दोनों समस्याएं नित नये-नये कीर्तिमान स्थापित करते जा रही हैं. यह स्थिति हमें सोचने को बाध्य करती है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ या फिर क्यों हो रहा है? इसके कई कारण देखे जा सकते हैं. इसमें मुख्य कारण अभी तक एक भी सरकार का स्थायी व पूर्णकालिक न होना है. इससे भी बड़ी बात यह कि एक भी सरकार का गठन इन समस्याओं की वेदी पर नहीं हुआ.

अब तक जो भी सरकार बनी, उसने राज्य की जनता को छलने का ही काम किया. राज्य में एक से बड़े एक कल कारखाने स्थापित किये गये हैं, लेकिन उनसे यहां के लोगों का विकास होने के बजाय निर्वासन ही हुआ है. एचइसी रांची से लेकर बीएसएल बोकारो तक के विस्थापितों को अभी भी न्याय नहीं मिला है. नये उद्योगों में विस्थापितों की स्थिति और भी बदतर हुई है. हाल ही में बीसीसीएल द्वारा 6650 एकड़ जमीन के अधिग्रहण की अधिसूचना जारी हुई, जिसमें करीब पचीस गांव उजड़ेंगे, पर उनके पुनर्वास के लिए कंपनी ने बिना मास्टर प्लान के ही नोटिस जारी कर दिया. क्या नयी सरकार इसके प्रति संवेदनशील होगी?

महादेव महतो, बोकारो

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