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संसद को उचित महत्व दे सरकार

संसद के शीत सत्र की समाप्ति के अगले ही दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अध्यादेशों के जरिये बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा 49 फीसदी तक बढ़ाने और 24 कोयला खदानों की नीलामी की प्रक्रिया शुरू करने के लिए जरूरी दिशा-निर्देश जारी करने पर सवाल उठना स्वाभाविक है. इस संबंधी विधेयक राज्यसभा में लंबित हैं. […]

संसद के शीत सत्र की समाप्ति के अगले ही दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अध्यादेशों के जरिये बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा 49 फीसदी तक बढ़ाने और 24 कोयला खदानों की नीलामी की प्रक्रिया शुरू करने के लिए जरूरी दिशा-निर्देश जारी करने पर सवाल उठना स्वाभाविक है.

इस संबंधी विधेयक राज्यसभा में लंबित हैं. धर्मातरण विवाद पर गतिरोध के कारण सदन में इन पर चर्चा नहीं हो सकी थी. संविधान के अनुच्छेद 123 में स्पष्ट निर्देश है कि अगर कोई सदन सत्र में न हो और किसी महत्वपूर्ण मसले पर तुरंत निर्णय लेने की जरूरत हो, तभी राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकते हैं. प्रथम दृष्ट्या, ये दोनों ही मामले इस श्रेणी में नहीं आते हैं. जरूरी है कि विधायिका और कार्यपालिका के बीच शक्ति-संतुलन बना रहे. विशेष परिस्थितियों के अलावा सरकार का संसद के ऊपर हावी होना लोकतंत्र के लिए अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती है.

सवाल सिर्फ सरकार के निर्णय पर ही नहीं है, उसके रवैये पर भी है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कैबिनेट के निर्णय की घोषणा करते हुए कहा कि सुधारों की दिशा में आगे बढ़ने के लिए ‘देश अब और इंतजार नहीं कर सकता है, भले ही कोई सदन अपना काम करने के लिए अनिश्चित काल तक इंतजार करने के लिए तैयार बैठा हो’. अध्यादेश को लेकर सरकार अपना पक्ष रख सकती है, लेकिन संसद पर ऐसी टिप्पणी संसदीय प्रणाली के लिए शुभ संकेत नहीं है. जब यूपीए सरकार अध्यादेश के जरिये कोई निर्णय लेती थी, तब भाजपा उसकी आलोचना करते हुए कहा करती थी कि संसद को सुचारु रूप से चलाना सरकार की जिम्मेवारी है.

अब सत्तासीन भाजपा को यह देश को बताना चाहिए कि उसने सदन में विपक्ष को भरोसे में लेने के लिए क्या गंभीर प्रयास किये और उसकी सरकार का रवैया यूपीए सरकार से किस प्रकार भिन्न है. अध्यादेश के बावजूद सरकार को इन निर्णयों की मंजूरी राज्यसभा से अगले सत्र में लेनी होगी. वह संसद का संयुक्त सत्र भी बुला सकती है. लेकिन, उसे यह समझना चाहिए कि हर मसले पर ऐसा करना संभव नहीं होगा. ऐसे में सरकार के पास संसद में विपक्ष के साथ बेहतर संवाद स्थापित करने के प्रयास करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

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