झारखंड अलग राज्य को बने 15वें साल की शुरुआत हो गयी है. बिहार के साथ जब झारखंड जुटा हुआ था, तो सौतेले व्यवहार के कारण अपनी पहचान खोता जा रहा था. इसी सौतेले व्यवहार के कारण यहां के निवासियों को अलग राज्य की मांग करनी पड़ी. अंतत: जनता की मांग पर सन 2000 में अलग झारखंड राज्य बना.
राज्य गठन के साथ ही यहां के निवासियों में चहुंमुखी विकास, रोजगार के अवसर, बेहतर शिक्षा, चिकित्सा, बिजली आदि की उम्मीद थी. इसके बावजूद आज 15वें साल में प्रवेश करने के बाद भी लोगों को उम्मीद के अनुरूप जीवन नहीं मिल सका. हालांकि, इस राज्य के पास खनिज संपदा की कमी नहीं है, लेकिन नेताओं की नीतियों की वजह से आज तक लोगों का समुचित विकास नहीं हो सका. विधानसभा में भेजे गये नेता गर्त में गिरते जा रहे हैं. उनकी राजनीति का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता ही जा रहा है. नेता जनता के हित में विकास कार्य कराने के बजाय खुद का विकास करने में जुटे हैं.
जो मतदाता उन्हें विधानसभा भेजने में अहम भूमिका निभाता है, चुनाव जीतने के बाद वे उन्हें अपना चेहरा भी नहीं दिखाते. आज भी फिर नयी सरकार के गठन की बारी आ गयी है. राज्य के मतदाताओं ने बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभायी है. अब नेताओं की अपना वादा निभाने की बारी है, मतदाताओं की उम्मीदों पर खरा उतरने की बारी है. मतदाताओं ने उन्हें बेहतर नतीजा देकर विधानसभा में भेजा है, तो उन्हें भी बेहतरीन विकास कार्य करवा कर अपने वादे को निभाना होगा. जनप्रतिनिधि का मतलब यह कि वह चुनाव जीत कर जनता का मालिक बन जाए. जनप्रतिनिधि का मतलब जनता का सेवक होना है.
परमेश्वर झा, दुमका