डुमरा कोर्ट : थाना या कोर्ट में प्राथमिकी या मुकदमा किये जाने पर कोर्ट में सुनवाई होती है और फैसले में आरोपित को सजा या बरी कर दिया जाता है. वैसे अब झूठा मुकदमा करने वालों की खैर नहीं. एक मामले की सुनवाई के बाद फैसले में कोर्ट को आरोपित को बरी कर देना पड़ा है. कोर्ट ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद पाया है कि झूठे मुकदमा किया गया था.
अपने ऐतिहासिक फैसले में तदर्थ सत्र न्यायाधीश ने एसपी को झूठा मुकदमा करने वाली महिला के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है. वही इस मुकदमे में आरोपित को निदरेष करार देने के साथ ही उसे क्षति पूर्ति के लिए वाद दायर कर सकता है. कहा जा रहा है कि पहली बार इस तरह का फैसले सामने आया है. हर कोई फैसले की तारीफ कर रहा है. लोगों का कहना है कि फैसले का दूरगामी असर पड़ेगा. वहीं झूठे मुकदमा करने वालों के दिल में कार्रवाई का खौफ पैदा होगा.
कोर्ट की टिप्पणी
लोक अभियोजक अरूण कुमार सिंह ने तदर्थ सत्र न्यायाधीश मो अली द्वारा दिये गये फैसले में की गयी टिप्पणी से अवगत कराया है. फैसले में न्यायाधीश ने कहा है कि सभी गवाहों के साक्ष्य से यह स्पष्ट होता है कि मामला पूरी तरह झूठा है. वही पीड़िता के परिजनों के साक्ष्य से यह पाया गया है कि पीड़िता की शादी पांच वर्ष पूर्व ही पुपरी थाना क्षेत्र के अंसारीपुर मुहल्ला के मुमताज से हुई थी. उसे तीन वर्ष का एक पुत्र व पांच माह की एक पुत्री है. आइओ ने अपने साक्ष्य में कहा है कि न तो वह गवाहों का साक्ष्य कांड दैनिकी में दर्ज किया और न ही घटना स्थल का निरीक्षण किया. बावजूद मामले को सत्य करार दे आरोप पत्र कोर्ट में समर्पित कर दिया. कोर्ट ने आरोपित मो इस्तेखार को बरी कर दिया है और कहा है कि इस्तेखार क्षतिपूर्ति के लिए दावा कर सकता है, क्योंकि वह बेकसूर होते हुए दो माह तक जेल में रहा. वही एसपी को उक्त महिला के खिलाफ मामला दर्ज कर आरोप पत्र समर्पित करने का आदेश दिया गया है. कोर्ट ने एसपी से इस आशय का मंतव्य मांगा है कि झूठा मुकदमा दर्ज कराने को लेकर क्यों ने सूचिका सहाना खातून से कारण पृच्छा किया जाये.