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चुनाव का पांचवां चरण : संताल परगना में मचा है घमसान
महत्वपूर्ण है यह अंतिम चरण, 16 सीटों के सहारे सत्ता की लड़ाई 20 दिसंबर को संताल परगना की 16 सीटों पर मतदान होना है. इन सीटों पर विभिन्न दलों के कुल 208 उम्मीदवारों के माथे पर पसीना दिख रहा है. विधानसभा चुनाव का यह अंतिम दौर निर्णायक मोड़ पर है. हर दल संताल से होकर […]
महत्वपूर्ण है यह अंतिम चरण, 16 सीटों के सहारे सत्ता की लड़ाई
20 दिसंबर को संताल परगना की 16 सीटों पर मतदान होना है. इन सीटों पर विभिन्न दलों के कुल 208 उम्मीदवारों के माथे पर पसीना दिख रहा है. विधानसभा चुनाव का यह अंतिम दौर निर्णायक मोड़ पर है. हर दल संताल से होकर सत्ता तक पहुंचने की कवायद में लगा है. संताल की सभी सीटों पर कांटे की टक्कर है. सभी दल अपने-अपने हिसाब से दावं-पेंच खेल रहे हैं. अंतिम चरण के इस चुनाव में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, स्पीकर शशांक शेखर भोक्ता, मंत्री लोबिन हेंब्रम, झाविमो विधायक दल के नेता प्रदीप यादव जैसे दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दावं पर है. इसके अलावा हर दल के दिग्गज भी चुनाव मैदान में हैं. इन सीटों की ताजा राजनीतिक हालात पर देवघर से संजीत मंडल की रिपोर्ट.
संघर्ष कांटे का, जोर लगा रहे प्रत्याशी
राजमहल विधानसभा सीट पर कांटे की टक्कर है. त्रिकोणीय संघर्ष में सीट फंसी है. भाजपा और कांग्रेस के बीच से झामुमो रास्ता निकालने में जुटा है. भाजपा ने सिटिंग विधायक अरुण मंडल का टिकट काट दिया. श्री मंडल इस बार राजद की टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. भाजपा ने इस बार अनंत ओझा को उम्मीदवार बनाया है, जबकि झामुमो ने एमटी राजा को मैदान में उतारा है. झाविमो ने कृष्णा महतो को उतारा है. झारखंड बनने के दौरान भाजपा के अरुण मंडल विधायक थे. दूसरे नंबर पर झामुमो के नजरूल इसलाम थे. 2005 में अरुण मंडल ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और दूसरे नंबर पर रहे. तब कांग्रेस के थॉमस हांसदा चुनाव जीते थे. 2009 में भाजपा की टिकट पर अरुण मंडल चुनाव जीत गये. इस बार दूसरे नंबर फिर झामुमो उम्मीदवार मो तजाउद्दीन रहे.
परंपरागत वोट बैंक से उम्मीद
बोरियो विधानसभा संताल परगना का अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है. यह झामुमो की जमीन रही है. शुरू के 1977 के चुनाव को छोड़ दें, तो शेष सभी चुनाव में झामुमो का पलड़ा भारी रहा है. इस सीट पर चुनाव के नतीजे यह बताते हैं कि श्री हेम्ब्रम ने पार्टी से चुनाव लड़ा या निर्दलीय, वे जीते. इस सीट पर कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में रही. कांग्रेस के जॉन हेंब्रम 1980 और 1985 दो टर्म विधायक रहे. बोरियो सीट पर भाजपा ने सिर्फ एक बार ही चुनाव जीता है. उसके उम्मीदवार ताला मरांडी 2005 के चुनाव में जीते थे. 2005 के बाद से झामुमो की टक्कर भाजपा से ही होती रही है. इस बार भाजपा और झामुमो फिर आमने-सामने है. भाजपा ने ताला मरांडी को उम्मीदवार बनाया है, वहीं लोबिन एक बार फिर भाजपा के सामने होंगे. इस सीट पर भाजपा और झामुमो के बीच सीधी टक्कर है. वहीं झाविमो और कांग्रेस चुनाव में नया समीकरण बनाने में जुटे हैं.
हाई प्रोफाइल सीट, दिलचस्प मुकाबला
साहेबगंज जिला अंतर्गत बरहेट विधानसभा क्षेत्र में मुकाबला दिलचस्प हो गया है. इस हाइ प्रोफाइल सीट पर सबकी नजर है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. कभी झामुमो के साथी रहे हेमलाल मुरमू भाजपा की टिकट लेकर सामने खड़े हैं. यहां झामुमो का झंडा बुलंद रहा है. यहां 1990 से झामुमो के उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं. झामुमो प्रत्याशी के रूप में हेमलाल मुमरू पांचवीं बार बरहेट विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. इससे पहले कांग्रेस का दबदबा इस सीट पर था. भाजपा ने बरहेट में सिर्फ अपना पांव ही जमाया है. भाजपा की टिकट पर 2005 में साइमन मालतो चुनाव लड़ी थीं और दूसरे नंबर पर थी. 2009 के चुनाव में भाजपा बरहेट सीट से तीसरे नंबर पर रही थी. वहीं 2004 के चुनाव में भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े सोम मरांडी तीसरे नंबर पर रहे थे.
त्रिकोण में फंसी है सीट
अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व लिट्टीपाड़ा विधानसभा सीट का अपना इतिहास रहा है. इस सीट पर एक ही परिवार का दबदबा रहा है. 1977 से 2009 तक चार बार साइमन मरांडी और चार बार सुशीला हांसदा ने चुनाव जीता. दल की बात करें, तो सिर्फ एक बार निर्दलीय उम्मीदवार ने चुनाव जीता है, वह हैं साइमन मरांडी. 1977 में पहली बार विधानसभा गये. इस बार साइमन मरांडी भाजपा की टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. उनका मुकाबला झामुमो प्रत्याशी डॉ अनिल मुमरू से होगा. डॉ अनिल मुमरू 2009 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन वे दूसरे नंबर पर रहे थे. वहीं झाविमो उम्मीदवार सीमॉन मालतो भी दमदार उम्मीदवार साबित हो सकती हैं. इस सीट से सोम मरांडी भी एक बार चुनाव हार चुके हैं.
झाविमो को जमीन बचाने की चुनौती
महेशपुर विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व है. इस सीट पर झामुमो-कांग्रेस व भाजपा के बीच टक्कर होती रही है, लेकिन 2009 के चुनाव में इस विधानसभा सीट का मिजाज बदल गया. बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली पार्टी झाविमो ने महेशपुर सीेट भाजपा से छीन ली. झाविमो की टिकट पर मिस्त्री सोरेन विधानसभा पहुंचे. महेशपुर से झामुमो ने स्टीफन मरांडी को उतारा है, इसलिए अब यहां त्रिकोणीय संघर्ष के आसार बन गये हैं. झाविमो के सिटिंग विधायक मिस्त्री सोरेन की टक्कर स्टीफन और 2009 में दूसरे नंबर पर रहे भाजपा के उम्मीदवार देवीधन टुडू से होगी. 1980 और 1985 के चुनाव में देवीधन बेसरा दो बार झामुमो की टिकट पर विधायक बने, 2000 में एक बार वे भाजपा की टिकट पर विधायक बने. झाविमो को जमीन बचाने की चुनौती है.
जमीन बचाने और छिनने की लड़ाई
जामताड़ा विधानसभा सीट अभी झामुमो की झोली में है. विष्णु भैया यहां के विधायक हैं. वे भाजपा की टिकट पर 2005 में भी चुनाव जीते थे. इस बार झामुमो की टक्कर इस सीट पर भाजपा के वीरेंद्र मंडल और कांग्रेस के डॉ इरफान अंसारी से है. 1985 से लेकर 2000 तक चार चुनावों में जामताड़ा सीट पर कांग्रेस के फुरकान अंसारी का दबदबा रहा. वे चार बार विधायक रहे, लेकिन झारखंड बनने के बाद 2005 के चुनाव में फुरकान की जगह उनके बेटे इरफान अंसारी को टिकट मिला. वे अपने पिता के गढ़ को बचा नहीं पाये थे. 2009 के चुनाव में भाजपा ने बेबी सरकार को टिकट दिया था. कुल मिला कर इस सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष का समीकरण बन रहा है. अब यहां की जनता किसके सिह पर जीत का ताज रखती है, इसका खुलासा 23 दिसंबर को ही होगा.
झाविमो के किले को फतह करना चुनौती
पौड़याहाट में झाविमो का मजबूत खूंटा है. इस सीट को बचाना झाविमो के लिए चुनौती है. विधायक दल के नेता प्रदीप यादव के सहारे पार्टी की साख है. इस सीट पर 1980 से ही झामुमो का कब्जा रहा है. यह सीट 1951, 1962 व 1972 में कांग्रेस के कब्जे में था. पहले कांग्रेस की गढ़ पर झामुमो ने फतह किया. बाद में 1995 के बाद से झामुमो की गढ़ पर पहले भाजपा और 2009 के चुनाव में झाविमो ने कब्जा किया. इस सीट पर सूरज मंडल और प्रदीप यादव ने भी हैट्रिक लगायी है. जब तक प्रदीप यादव भाजपा में थे, भाजपा की टक्कर झामुमो से होती रही. 2009 के चुनाव में प्रदीप यादव ने पार्टी छोड़ी और झाविमो में चले गये. तब से इस सीट पर झाविमो की टक्कर अन्य दलों से हुई है. इस बार प्रदीप यादव की टक्कर भाजपा के देवेंद्र नाथ सिंह, राजद के संजय कुमार सिंह और झामुमो के अशोक कुमार से है.
चार कोण में फंसी है सीट
जरमुंडी विधानसभा सीट पर शुरू से ही निर्दलीयों का कब्जा रहा है. वर्तमान में भी विधायक हरिनारायण राय निर्दलीय ही जीते, लेकिन इस बार श्री राय झामुमो की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. 1985 में भाजपा की टिकट पर अभयकांत प्रसाद चुनाव लड़े और जीते. 1995 में देवेंद्र कुंवर झामुमो के लिए सीट जीते. लेकिन, 2000 के चुनाव में उन्होंने दल बदला और भाजपा की टिकट पर चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे. 2005 व पुन: 2009 के चुनाव में निर्दलीय विधायक के रूप में हरिनारायण राय विधानसभा पहुंचे. इस बार झामुमो के हरिनारायण को टक्कर देने के लिए भाजपा के अभयकांत प्रसाद, कांग्रेस के बादल और झाविमो से देवेंद्र कुंवर हैं. बादल को छोड़ दें, तो शेष सभी प्रत्याशी विधायक रहे हैं. इस बार जरमुंडी में कांटे की टक्कर इन चारों उम्मीदवारों के बीच होने वाली है.
चल रहा शह-मात का खेल
सारठ विधानसभा सीट पर झामुमो, कांग्रेस और राजद के बीच टक्कर है. भाजपा ने इस सीट पर कभी जीत दर्ज नहीं की है. इस चुनाव में झामुमो के विधायक सह स्पीकर शशांक शेखर भोक्ता के सामने भाजपा के उम्मीदवार उदय शंकर सिंह उर्फ चुन्ना सिंह, झाविमो के रणधीर सिंह, राजद के सुरेंद्र रवानी, झाविद के सूरज मंडल हैं. पिछले कई टर्म के चुनाव को देखें, तो यहां टक्कर शशांक शेखर भोक्ता और उदय शंकर सिंह के बीच रहा है. इस सीट पर मुकाबला रोचक रहा है. स्पीकर भोक्ता के चुनाव लड़ने के कारण इस सीट से झामुमो की साख जुड़ी है. 2009 के चुनाव में झाविमो के रणधीर सिंह मजबूत दावेदार के रूप में उभरे थे. इस बार भी वे मैदान में हैं. यहां मुकाबला रोचक होगा.
चार दिग्गजों के बीच घमसान
शिकारीपाड़ा विधानसभा भी अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व सीट है. इस सीट पर 2014 के चुनाव में पांच टर्म से विधायक रहे झामुमो प्रत्याशी नलिन सोरेन को कड़ी टक्कर मिलनेवाली है. लोजपा-भाजपा के संयुक्त उम्मीदवार शिवधन मुमरू, कांग्रेस के राजा मरांडी को और झाविमो के प्रत्याशी पारितोष सोरेन ने यहां ताकत झोंक दी है. कुल मिला कर शिकारीपाड़ा में चतुष्कोणीय मुकाबले के आसार हैं. 2009 तक के विधानसभा चुनाव में झामुमो का झंडा लहराया है. इस सीट पर झाविमो ने अपने पुराने प्रत्याशी पारितोष सोरेन पर दावं खेला है. 2009 के चुनाव में झाविमो के पारितोष ने नलिन को कड़ी टक्कर दी थी. लगभग एक प्रतिशत वोट से ही नलिन चुनाव जीते. पारितोष सोरेन और राजा मरांडी इस सीट के डिसाइडिंग फैक्टर साबित हो सकते हैं.
हॉट सीट पर राजनीति भी गरम
दुमका विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए लिए रिजर्व है. इस सीट पर सीएम हेमंत सोरेन चुनाव लड़ रहे हैं. उन्हें टक्कर देने के लिए भाजपा ने जहां डॉ लुइस मरांडी को उतारा है, वहीं झाविमो ने बबलू कुमार मुमरू और कांग्रेस के सागेन मुमरू को मैदान में उतारा है. झामुमो के लिए यह सीट साख का सवाल है, तो नरेंद्र मोदी ने भी सभा कर सीधी चुनौती दी है. झामुमो-भाजपा के बीच जबरदस्त टक्कर है. 1980 से 2005 तक हुए चुनावों में स्टीफन मरांडी ही चुनाव जीते हैं. 2009 के चुनाव में भाजपा की लुइस मरांडी ने हेमंत सोरेन को कड़ी टक्कर दी. इस चुनाव में हेमंत सोरेन को 35129 वोट (30.98}) मिले, जबकि लुइस मरांडी को 32460 वोट (28.63}) मिले. इस तरह श्री सोरेन 2009 का चुनाव महज 2.35} वोट से ही जीत पाये.
राजद के गढ़ पर फतह के लिए संघर्ष
कांग्रेस का गढ़ रहा गोड्डा विधानसभा सीट अब राजद के कब्जे में है. 2000 के चुनाव में गोड्डा विधानसभा सीट में समीकरण बदल गया और इस बार राजद के संजय प्रसाद यादव भाजपा के दुख मोचन चौधरी को हरा कर विधायक बने, लेकिन झारखंड बनने के बाद हुए 2005 के पहले चुनाव में भाजपा के मनोहर टेकरीवाल ने संजय यादव को हराया. इस तरह पहली बार भाजपा ने गोड्डा सीट फतह की. एक टर्म विधायक रहने के बाद पुन: 2009 के चुनाव में संजय यादव जीत गये. उन्होंने भाजपा के रघुनंदन मंडल को शिकस्त दी. इस बार यहां भी दिलचस्प मुकाबला है. राजद का मुकाबला यहां भाजपा के रघुनंदन मंडल, झामुमो के राजेश मंडल और झाविमो के संजीव आनंद के बीच है. अब फाइनली जनता किसे चुनती है, यह समय ही बतायेगा.
वोट बैंक में हो रही सेंधमारी
इस सीट पर कुल 15 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. अल्पसंख्यक बहुल इलाका होने के कारण सभी दलों की निगाहें अल्पसंख्यक वोट पर है. 1990 और 1995 को छोड़ दें, तो इस सीट पर अब तक अल्पसंख्यक ही जीतते आये हैं. सिर्फ दो बार बेनी प्रसाद गुप्ता भाजपा से विधायक रहे हैं. पाकुड़ विधानसभा सीट पहली बार 2009 के चुनाव में झामुमो के खाते में आयी. 2009 के चुनाव में एकाएक झामुमो ने गेन किया. पार्टी के उम्मीदवार अकील अख्तर ने पहली बार झामुमो को जीत दिलायी. श्री अख्तर ने दो बार के विजेता रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता आलमगीर आलम को शिकस्त दी. इस बार झामुमो की टक्कर भाजपा उम्मीदवार रंजीत तिवारी और कांग्रेस के आलमगीर आलम से है. वहीं झाविमो ने आसन आरा बानो को उम्मीदवार बनाया है. इस तरह से देखा जाये, तो इस सीट पर तीन बड़ी पार्टी के प्रत्याशी अल्पसंख्यक हैं. सभी प्रत्याशी इस वोट बैंक में सेंधमारी करने में लगे हैं. भाजपा की निगाह दूसरे वोट बैंक को गोलबंद करने में है. चुनाव में रोमांच भरपूर है.
अपने-अपने वोट बैंक पर निगाह
नाला विधानसभा सीट पर चुनाव दिलचस्प रहा है. इस विधानसभा सीट पर सीपीआइ ने जहां पांच बार जीत दर्ज की, वहीं कांग्रेस, भाजपा और झामुमो ने एक-एक बार चुनाव जीता है. इस सीट पर हुए चुनाव की खासियत यह रही है कि यह सीट शुरू से ही सीपीआइ का गढ़ रहा है. उनके उम्मीदवार विशेश्वर खां पांच बार चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे. इस सीट पर अभी भाजपा के सिटिंग विधायक सत्यानंद झा चुनाव लड़ रहे हैं. उनकी टक्कर झामुमो के रवींद्रनाथ महतो, सीपीआइ के कन्हाई चंद्र माल पहाड़िया और झाविमो के माधवचंद्र महतो से होगी. यह सामान्य सीट है. इस सीट पर संताल परगना में सबसे अधिक 18 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट पर सीपीआइ के उम्मीदवार डिसाइडिंग फैक्टर हैं. यहां लड़ाई आर-पार की है.
झामुमो की चुनौती, मिल रही टक्कर
2014 के चुनाव में जामा सीट पर झामुमो की सिटिंग विधायक सीता सोरेन के टक्कर में भाजपा ने सुरेश मुमरू को मैदान में उतारा है. जबकि कांग्रेस मार्शल मरांडी और झाविमो सुखलाल सोरेन को चुनाव लड़वा रहा है. इस सीट पर झामुमो को इन तीनों उम्मीदवारों से कड़ी टक्कर मिलेगी. जामा विधानसभा सीट पर अब तक हुए आठ चुनावों में एक बार कांग्रेस व एक बार भाजपा जीती है. शेष छह चुनाव में झामुमो ने ही परचम लहराया है, जबकि दूसरे नंबर पर कभी कांग्रेस, तो कभी भाजपा रही है. शिबू सोरेन भी 1985 में यहां से चुनाव लड़े और जीते. 1995 और 2000 में हुए दुर्गा सोरेन भी चुनाव जीते और उनके बाद 2009 सीता सोरेन चुनाव लड़ीं और जीतीं. 2005 के चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार सुनील सोरेन जीते.
खास वोट पर सबकी नजर
गोड्डा जिले का महगामा विधानसभा सीट पर कांग्रेस आठ बार जीत दर्ज कर चुकी है. सर्वाधिक चार टर्म कांग्रेस के अवधबिहारी सिंह महगामा सीट जीत कर विधानसभा गये. इस सीट पर सीपीआइ की स्थिति भी मजबूत रही है. सीपीआइ के उम्मीदवार सैयद अहमद चुनाव जीत भी चुके हैं. 2000 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार जीते. फिर 2005 के चुनाव में भी भाजपा के अशोक भगत ही जीते, लेकिन 2009 के चुनाव में भाजपा के हाथ से यह सीट कांग्रेस ने छीन ली. इस बार भी कांग्रेस उम्मीदवार राजेश रंजन की टक्कर भाजपा के अशोक कुमार, झामुमो के सुरेंद्र मोहन केशरी और झाविमो के शाहिद इकबाल से है. इस सीट पर अल्पसंख्यक और कुरमी का वोट निर्णायक साबित होगा. खास वोट बैंक पर सबकी नजर है.
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