लंबे अरसे से हमारे जवान नक्सलियों के खिलाफ कठिन लड़ाई लड़ रहे हैं. इसमें काफी सफलताएं हासिल हुईं, साथ ही कुछ जवान शहीद भी हो गये. झारखंड के निर्माण के साथ यह लड़ाई और भी बड़ी हो गयी. समूचे देश में झारखंड की नक्सली गतिविधियों पर नकेल कसने के प्रयासों और सफलताओं की सराहना होती है. चुनावों के दौरान जवानों की जवाबदेही थोड़ी बढ़ जाती है. हमें गर्व है कि हमारे जवान सफल चुनाव करा कर अपनी जिम्मेदारियों के निर्वन में कोई कसर नहीं छोड़ते.
वर्तमान चुनाव के समाप्त दो चरणों ने तो साफ कर दिया है कि इस बारे हमारे जवानों ने अपना ‘बेस्ट’ देने की ठान रखी है. कुछेक छिटपुट झड़पों को छोड़ दिया जाए, तो नक्सलियों को इस बार हमारे जवानों से ‘मुंह की खानी’ पड़ रही है. नक्सली संगठनों के ‘राजनीतिक गठजोड़’के प्रामाणिक मामलों का उदघाटन भी जवानों के हौसले बिखरा नहीं पाया. नक्सलियों को प्राप्त ‘परोक्ष ताकतों’ का भी सामना हमारे जवान बड़ी सहजता से कर रहे हैं. वे ‘सलाम’ के अधिकारी हैं, ‘नमन’ के योग्य हैं.
दूसरी तरफ, नक्सलियों को मुख्यधारा में शामिल करने के तमाम सरकारी प्रयास-प्रोत्साहन नाकाफी और नकारा साबित हो रहे हैं. नक्सली कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि एक ‘कायराना’ विचारधारा है, जिसे दो-चार नक्सलियों के ‘बंदूक त्याग’ से खत्म नहीं किया जा सकता. हमारा सरकारी तंत्र इसमें तब तक सफल नहीं हो सकता, जबं तक नक्सली बनने के कारणों का निदान न ढूंढ़ ले. नक्सली ‘रक्तबीज’ की तरह हैं. एक मरता है, सौ पैदा हो जाते हैं. हमें उस खून की बूंद को धरती पर गिरने से रोकना होगा, जो नक्सली पीढ़ी तैयार करते हैं.
मनोहर पांडेयर रुद्र, रांची