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भारत में उत्पन्न महान तत्व
कितने शास्त्रों का उद्गम भारतवर्ष में हुआ है. आज भी तुम लोग संस्कृत अंक गणना-पद्धति के अनुसार एक, दो, तीन इत्यादि शून्य तक गिनते हो और तुम्हें यह भी मालूम है कि बीजगणित का उदय भारत में ही हुआ. उसी तरह, न्यूटन का जन्म होने के हजारों वर्ष पूर्व ही भारतीयों को गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत […]
कितने शास्त्रों का उद्गम भारतवर्ष में हुआ है. आज भी तुम लोग संस्कृत अंक गणना-पद्धति के अनुसार एक, दो, तीन इत्यादि शून्य तक गिनते हो और तुम्हें यह भी मालूम है कि बीजगणित का उदय भारत में ही हुआ. उसी तरह, न्यूटन का जन्म होने के हजारों वर्ष पूर्व ही भारतीयों को गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत अवगत था.
जिस किसी के भी पैर इस पावन धरती पर पड़ते हैं वही-चाहे वह विदेशी हो, चाहे इसी धरती का पुत्र, यदि उसकी आत्मा जड़-पशुत्व की कोटि तक पतित नहीं हो गयी तो अपने आपको पृथ्वी के उन सर्वोत्कृष्ट पुत्रों के देवत्व तक पहुंचाने के लिए श्रम करता रहे. यहां की वायु भी आध्यात्मिक स्पंदनों से पूर्ण है. यह धरती दर्शनशास्त्र और आध्यात्मिकता के लिए उन सबके लिए जो पशु को बनाये रखने के हेतु चलनेवाले अविरत संघर्ष से मनुष्य को विश्रम देता है, उस समस्त शिक्षा-दीक्षा के लिए जिससे मनुष्य पशुता का जामा उतार फेंकता है और जन्म-मरणहीन सदानंद अमर आत्मा के रूप में आविर्भूत होता है.
जीवात्मा, परमात्मा और ब्रह्मांड के ये अपूर्व, अनंत, उदात्त और व्यापक धारणाओं में निहित महान तत्व भारत में ही उत्पन्न हुए हैं. भारत ही ऐसा देश है, जहां के लोगों ने अपने कबीले के छोटे-छोटे देवताओं के लिए यह कह कर लड़ाई नहीं की है कि ‘मेरा ईश्वर सच्च है, तुम्हारा झूठा है. आओ, हम दोनों लड़ कर इसका फैसला कर लें.’ देवताओं के लिए लड़ कर फैसला करने की बात यहां के लोगों के मुंह से कभी सुनाई नहीं दी.
स्वामी विवेकानंद
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