इस्लामाबाद : पाकिस्तान के एक पूर्व विदेश सचिव के मुताबिक पाकिस्तान के विदेश कार्यालय को वर्ष 2004 के उस भारत-पाक संयुक्त बयान का मसौदा तैयार करने के समय विश्वास में नहीं लिया गया था, जिसमें तत्कालीन सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ ने अटल बिहारी वाजपेयी को भरोसा दिलाया था कि पाक सरजमीं का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होगा. अटल बिहारी वाजपेयी उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री थे.
पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव शमशाद अहमद ने स्ट्रेटेजिक विजन इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में कहा कि विदेश कार्यालय 2004 के बयान का मसौदा तैयार करने में शामिल नहीं था. इस बयान के चलते ही भारत के साथ समग्र वार्ता शुरु हुई थी.
अहमद ने कहा कि मुशर्रफ और वाजपेयी के बीच एक बैठक के बाद छह जनवरी 2004 को जारी किए गए बयान के अनुसार पूर्व सैन्य शासक ने यह भरोसा दिलाया था कि वह पाकिस्तान के नियंत्रण वाली सरजमीं का इस्तेमाल किसी भी तरीके से आतंकवाद के लिए करने की इजाजत नहीं देंगे.
डॉन अखबार ने अहमद के हवाले से बताया है, ‘जनरल मुशर्रफ ने यह आश्वासन दिया था कि पाकिस्तान की ओर से सीमा पार कोई भी हरकत नहीं होगी. इसका मतलब यह स्वीकार करना हो सकता है कि अतीत में जो कुछ हुआ वह पाकिस्तान की गलती थी. वर्ष 1997 से 2000 तक पाकिस्तान के विदेश सचिव रह चुके अहमद ने स्मरण किया कि बयान पढते समय उन्हें इसकी भाषा के विदेश कार्यालय की भाषा होने पर संदेह हुआ था.
अहमद ने कहा, मैंने विदेश सचिव रियाज खोखर से पूछा कि क्या बयान का मसौदा विदेश कार्यालय ने तैयार किया है तो उन्होंने मुझे बताया कि मुशर्रफ के करीबी सहयोगी तारिक अजीज ने यह मसौदा उन्हें दिया है. अहमद ने कयास लगाया था कि यह बयान वाशिंगटन से आया होगा.
मौजूदा हालात के बारे में बात करते हुए उन्होंने पाकिस्तान सरकार को चेतावनी दी कि वह भारत के साथ शांति कायम करने में जल्दबाजी नहीं करे. अहमद ने कहा कि वे जो शांति चाहते हैं वह हमारी सैद्धांतिक स्थिति की कीमत पर नहीं आएगी.
पूर्व विदेश सचिव ने कहा कि भारत को अफगानिस्तान में पाकिस्तान के अहम हितों को जोखिम में डालने की इजाजत नहीं दी जा सकती.