बुदबुदाते हुए की गयी आधी-अधूरी निंदा के बावजूद नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बेतुके बयानों पर सहमति रहती है. यही कारण है कि बेहद आपत्तिजनक और खतरनाक बयान देनेवालों को वे अनिवार्य रूप से पुरस्कृत करते हैं.
पिछले दिनों हमने एक ऐसा मंत्री देखा, जिसकी नजर में भारतीय ‘रामजादा’ और ‘हरामजादा’ की श्रेणियों में बंटे हुए लोग हैं. उस महिला मंत्री के अनुसार, रामजादा वे लोग हैं, जो भारतीय जनता पार्टी को वोट देते हैं. साध्वी निरंजन ज्योति उन बहुत-सी अनपढ़ या मामूली पढ़ी हुई साध्वियों में से एक हैं, जो भाजपा में शामिल हैं. ऐसी ही दूसरी साध्वी हैं उमा भारती, जो लोकसभा में दी गयी जानकारी के अनुसार छठवीं कक्षा तक पढ़ी हैं. साध्वी निरंजन ज्योति शुरू में यह जान कर चकित थीं कि लोगों को उनके ये शब्द गलत लगे. उन्होंने कहा कि उनके द्वारा प्रयुक्त शब्द ‘रामजादा’ में दूसरे धर्मो के लोग भी शामिल हैं, जो भगवान राम में आस्था रखते हैं. यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का चिर-परिचित तरीका है, जिसमें वह लोगों को बांटनेवाले बयान में बाद में फेरबदल करके उसे अधिक समावेशी बनाने का प्रयास करता है. लेकिन, इस बार ‘हरामजादा’ वाले बयान पर परदा नहीं डाला जा सका और जब मीडिया ने आक्रामक तेवर अपनाया, तो साध्वी निरंजन ज्योति को खुद ही खेद प्रकट करना पड़ा.
भारतीय मीडिया अधिकतर मसलों पर बहुत उदारवादी है, लेकिन सामाजिक मामलों में उसका रुख वाममार्गी होता है. उसने अपशब्दों के प्रयोग के लिए मंत्री को आड़े हाथों लिया. इस तरह की अभद्र भाषा का प्रयोग हिंदुत्ववादी पार्टियां आमतौर पर करती हैं. इस पर मैं बाद में कभी चर्चा करूंगा. बहरहाल, जब मीडिया ने इस मुद्दे को उठाया, तो विपक्षी दल भी इसे संसद में ले आये.
अरुण जेटली भाजपा के उन नेताओं में से हैं, जो हिंदुत्व को लेकर सहज नहीं हैं. उन्होंने इस बयान से पल्ला झाड़ लिया. लेकिन, जेटली की राजनीतिक जड़ें मजबूत नहीं हैं और वह अपनी सीट भी नहीं जीत सकते. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदू जनाधार का मिजाज समझते हैं और यही वजह है कि उन्होंने तुरंत प्रतिक्रिया नहीं दी. उन्हें पता है कि ऐसे संकेत महत्वपूर्ण हैं. हालांकि, उन्होंने अपनी पसंदीदा एजेंसी (एएनआइ) के जरिये एक रिपोर्ट लीक करवा दी कि उन्होंने एक बैठक कर अपने मंत्रियों को चेतावनी दे दी है कि उन्हें बोलने से पहले ठीक से सोचना चाहिए. यह एक तरह से परोक्ष निंदा ही थी.
अंगरेजी दैनिक ‘द हिंदू’ ने अपने एक संपादकीय में लिखा है, ‘अगर प्रधानमंत्री को सचमुच साध्वी निरंजन ज्योति की भाषा बुरी लगी थी, तो सबको डपटने की शैली अपनाने के बजाय, उन्हें ऐसा साफ-साफ कहना चाहिए था. अगर वह अपने मंत्रियों और सांसदों को सीधा संदेश देना चाहते थे कि कोई बकवास नहीं चलेगी, तो उन्हें साध्वी निरंजन ज्योति को मंत्रिमंडल से हटा देना चाहिए था.’ इसमें आगे कहा गया है, ‘केवल आलोचना से कुछ विशेष हासिल नहीं होता. मंत्री का माफीनामा इस्तीफे की मांग कर रहे विपक्षी दलों के हमले की धार कुंद करने की कोशिश भर लगती है.’
विपक्षी दलों ने मोदी की गलती ताड़ ली और इसका फायदा उठाया. इसके बाद मोदी संसद में आये और कहा कि ऐसी बात किसी को भी नहीं कहनी चाहिए. इस बयान के बाद मीडिया इस मामले में शांत हो गया.
सवाल यह है कि हिंदुत्व के नाम पर लोग ऐसी बातें बोलते ही क्यों हैं और उनकी व्यापक निंदा क्यों नहीं होती? लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भाजपा के एक अनजाने उम्मीदवार गिरिराज सिंह यह कह कर चर्चा में आ गये थे कि ‘जो लोग नरेंद्र मोदी को रोकना चाहते हैं, वे पाकिस्तान की ओर देख रहे हैं. आनेवाले दिनों में ऐसे लोगों के लिए जगह हिंदुस्तान में नहीं, झारखंड में नहीं, बल्कि पाकिस्तान में होगी.’
करीब उसी समय विश्व हिंदू परिषद् के नेता प्रवीण तोगड़िया का गुजरात की एक सभा में दिये गये भाषण का वीडियो लीक हुआ था. वह हिंदू इलाके के लोगों को सलाह दे रहे थे. वहां एक दाऊदी बोहरा ने जायदाद खरीदी थी. गौरतलब है कि दाऊदी बोहरा भारत के सबसे शांतिप्रिय और संपन्न समुदायों में से एक है. बोहरा अकसर सुन्नी मुसलमानों में घुल-मिल नहीं पाते हैं. वे दूसरे मुसलिम समुदायों की अपेक्षा अधिक संपन्न होते हैं और हिंदू बहुल समृद्ध शहरी इलाकों में रहना पसंद करते हैं.
इलाके के जिन लोगों ने प्रवीण तोगड़िया को सलाह के लिए बुलाया था, वे नहीं चाहते थे कि बोहरा परिवार वहां रहे. तोगड़िया ने उन्हें सलाह दी कि वे दंगों का माहौल बनायें और उस परिवार को लेकर जो चाहे करें, ताकि वह उस जायदाद को छोड़ कर चले जायें, जिसे उन्होंने कानूनन खरीदा है. इस भाषण को रिकॉर्ड कर लिया गया. इसमें कोई संदेह नहीं कि वहां क्या योजना बनायी जा रही थी.
जैसा कि मैंने कहा, यह दोनों चीजें करीब एक ही समय में हुईं. मीडिया को इसकी भनक लग गयी थी. नरेंद्र मोदी ने इसका जवाब एक सामान्य ट्वीट करके दे दिया. मोदी ने लिखा, ‘भाजपा के हितैषी होने का दावा करनेवालों के छोटे बयान, चुनाव प्रचार को विकास और सुशासन के मुद्दे से भटका रहे हैं.’
लेकिन, बाद में नरेंद्र मोदी ने गिरिराज सिंह को मंत्री बना दिया, जिससे यह साफ हो गया कि उन्हें किस पर सही मायने में यकीन है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इसी तरह तोगड़िया के बारे में झूठ बोला, यह कहते हुए कि यह उन लोगों को गलतफहमी हो सकती है, जो गुजराती नहीं बोलते. (मैंने लाइवमिंट डॉट कॉम के लिए इस वीडियो का पूरा अनुवाद किया था और इसमें कही गयी बातें बिल्कुल स्पष्ट और शरारती हैं तथा इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है.)
प्रवीण तोगड़िया अब भी विश्व हिंदू परिषद् के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष बने हुए हैं. यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और नरेंद्र मोदी को ऐसी बातों से असहमति है, तो ऐसे बयान देनेवाले लोगों को हटाने के बजाय उन्हें पदोन्नति क्यों दी जाती है?
इसकी वजह यह है कि बुदबुदाते हुए की गयी आधी-अधूरी निंदा के बावजूद नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ऐसे बयानों पर सहमति रहती है. यही कारण है कि इस तरह के आपत्तिजनक और खतरनाक बयान देनेवालों को वे अनिवार्य रूप से पुरस्कृत करते हैं. यकीकन इसकी एक वजह यह भी है कि मीडिया के आक्रोश के बावजूद भारत का एक बड़ा हिस्सा इनका साथ देता है.
आकार पटेल
वरिष्ठ पत्रकार
aakar.patel@me.com