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चुनाव का तीसरा चरण : प्रचार वार ने बनाया मुकाबला रोचक, प्रमुख दलों की प्रतिष्ठा दावं पर

रांची. विधानसभा के 33 सीटों के लिए चुनाव हो चुके हैं. नौ दिसंबर को तीसरे चरण में 17 सीटों के लिए चुनाव होना है. रफ्ता-रफ्ता झारखंड विधानसभा का चुनाव आंकड़ों के लिहाज से निर्णायक मोड़ पर पहुंच रहा है. 17 सीटों पर उत्तरी और दक्षिणी छोटानागपुर की सीटों पर चुनाव होना है. इन सीटों पर […]

रांची. विधानसभा के 33 सीटों के लिए चुनाव हो चुके हैं. नौ दिसंबर को तीसरे चरण में 17 सीटों के लिए चुनाव होना है. रफ्ता-रफ्ता झारखंड विधानसभा का चुनाव आंकड़ों के लिहाज से निर्णायक मोड़ पर पहुंच रहा है. 17 सीटों पर उत्तरी और दक्षिणी छोटानागपुर की सीटों पर चुनाव होना है. इन सीटों पर राजनीतिक दल आखिरी दावं चल रहे हैं. शह-मात का खेल तेज हुआ है. राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों ने ताकत झोंकी है. घेराबंदी और किला ध्वस्त करने के लिए प्रत्याशी मशक्कत कर रहे हैं. इस चरण में सुदेश महतो, बाबूलाल जैसे नेताओं की प्रतिष्ठा दावं पर है. एनडीए को जमीन नापनी है, तो यूपीए नयी जमीन तलाशेगी. वहीं झामुमो भी मैदान में है. हर किसी के लिए यह चुनाव निर्णायक है. सत्ता तक पहुंचने के लिए रास्ता तैयार करेगा.

चुनौती है भाजपा को पटखनी देना

रांची विधानसभा सीट से भाजपा को पटखनी देना सभी दलों और प्रत्याशियों के लिए चुनौती है. निवर्तमान विधायक सीपी सिंह 1996 से लगातार हर चुनाव में जीतते रहे हैं. वह पांचवी बार विधायक बनने के लिए भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. बदलाव और स्थानीयता के तार छेड़ते हुए झामुमो इस सीट पर जगह बनाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है. झामुमो प्रत्याशी महुआ माजी अपनी जगह बनाने के लिए धुआंधार प्रचार का सहारा लिया है. शहरी वोट बैंक में जगह बनाने के लिए झामुमो ने दावं चला है. आदिवासी वोटों के साथ उनको कई समुदायों का वोट मिलने का भी भरोसा है. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह और झाविमो के टिकट पर चुनाव लड़ रहे चुन्नू मिश्र भी गली-गली घूम कर वोट मांग रहे हैं. अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंधमारी की रणनीति में लगे हैं. हालांकि, सीपी सिंह के सामने 16 प्रत्याशी टक्कर दे रहे हैं. वैसे, अपनी छवि के साथ-साथ सीपी सिंह को मोदी लहर पर भी पूरा भरोसा है. भाजपा वोटरों की गोलबंदी के लिए पूरा जोर लगाया है. परंपरागत ताना-बाना समेट कर चल रही है.

प्रतिष्ठा की है सीट

हटिया विधानसभा का चुनाव काफी रोचक है. हटिया के पूर्व विधायक नवीन जायसवाल आजसू छोड़ कर झाविमो के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. उनको चुनौती दे रही हैं भाजपा की सीमा शर्मा. इन दोनों के बीच कांग्रेस के आलोक दूबे जीत का रास्ता तलाशने की कोशिश कर रहे हैं. झामुमो के जावेद अहमद भी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. कांटे की टक्कर है. दंगल में 25 और भी प्रत्याशी हैं. सीमा शर्मा नमो लहर पर सवार है. शहर और गांव के वोटरों पर भरोसा है. वहीं नवीन रास्ता काटने के लिए घेराबंदी कर रहे हैं. अल्पसंख्यक वोटरों पर कांग्रेस और झाविमो की भी नजर है. प्रत्याशी समीकरण पक्ष में लगे हैं. निर्दलियों ने भी ताकत झोंकी है. शहरी और ग्रामीण वोटरों का मिजाज नहीं मिला, तो फिर रोमांच उफान पर होगा. चुनावी रास्ते हर किसी के लिए मुश्किल है.

खिलाड़ी नये, पर दावं पुराने

खिजरी में नये खिलाड़ियों ने दावं लगाया है. सभी 25 प्रत्याशी पहली बार विधानसभा पहुंचने के लिए जूझ रहे हैं. भाजपा के रामकुमार पाहन मोदी लहर के सहारे नैया पार लगाने के प्रयास में हैं. पाहन पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं. तब कांग्रेस के सावना लकड़ा से पटखनी मिली थी. इधर, जिला परिषद के चुनाव में जीत का स्वाद चख चुकी कांग्रेस प्रत्याशी सुंदरी कुमारी (तिर्की) पर पार्टी की सीट बचाने का जिम्मा है. झामुमो प्रत्याशी अंतु तिर्की संग्राम को त्रिकोणीय बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. खिलाड़ी नये हैं, लेकिन राजनीति का दावं वही पुराना है. परंपरागत वोट बैंक के सहारे प्रत्याशी है. तृणमूल कांग्रेस के प्रकाश लकड़ा सावना की विरासत का हवाला दे रहे हैं. विकास का चुनावी हो-हल्ला तो हैं, लेकिन अंदरखाने जातीय गोलबंदी की कोशिश है.

दिलचस्प हुआ मुकाबला

कोडरमा में इस बार मुकाबला दिलचस्प है. चार बार विधायक रह चुकी मंत्री अन्नपूर्णा देवी के सामने भाजपा ने जिप उपाध्यक्ष डॉ नीरा यादव को उतार एक साथ दो-दो कार्ड खेला. एक महिला उम्मीदवार, तो दूसरा यादव वोट बैंक में सेंधमारी. अन्नपूर्णा ने राजद के किला को बचाये रखने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. अब तक अन्नपूर्णा के लिए खास वोट बैंक बंटता हुआ दिख रहा है. चुनाव में लोगों के मिजाज को भांपना मुश्किल है. गांव का मिजाज अलग है. झाविमो से भीम साहू के मैदान में होने से भाजपा का वोट भी बंटा है. ऐसे में यहां राजद-भाजपा की टक्कर में झाविमो त्रिकोणीय संघर्ष बनाता दिख रहा है. देखना यह है कि पहली बार चुनाव मैदान में उतरी डॉ नीरा राजद के किले को ध्वस्त कर पाती हैं या नहीं. या फिर झाविमो के भीम साहू के पक्ष में परिणाम जाता है. यह भी हो सकता है कि अन्नपूर्णा सीट बचाने में सफल हो जायें. यहां कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. सपा, बसपा व अन्य दलों के उम्मीदवार के साथ निर्दलीय प्रत्याशियों का भी अपने-अपने क्षेत्र में प्रभाव है. अल्पसंख्यक उम्मीदवार की बात करें, तो इस बार बसपा से सईद नसीम, बीएमपी से वासिफ बख्तवार खान व निर्दलीय मो दानिश मैदान में हैं. वहीं भाकपा माले से रामधन यादव ताल ठोक रहे हैं.

जगह-जगह बदल रहा समीकरण

बड़कागांव से 20 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. इस सीट पर पहली बार भाजपा उम्मीदवार की अनुपस्थिति में चुनाव हो रहा है. क्षेत्र के चार प्रखंड पतरातू, केरेडारी, बड़कागांव व टंडवा में सियासी हलचल तेज है. मुकाबला कड़ा है. हवा का रुख अभी से भांपना आसान नहीं है. कोयलांचल और ग्रामीण इलाकों की हर पंचायत में मतदाताओं के बीच अलग-अलग उम्मीदवार बढ़त बनाते दिख रहे हैं. चुनावी समीकरण अलग-अलग है. किसी भी प्रखंड से कोई एक उम्मीदवार क्लीन स्वीप करने की स्थिति में नहीं है. मुकाबले में पांच उम्मीदवार कांग्रेस की निर्मला देवी, झाविमो के शिवलाल महतो, आजसू पार्टी के रोशनलाल चौधरी, सीपीआइ के रमेंद्र कुमार व झामुमो के संजीव बेदिया भी मुकाबले में हैं. मतदाताओं की गोलबंदी भी इन्हीं उम्मीदवारों के इर्द-गिर्द दिख रही है.

बाबूलाल की साख दावं पर खेल तगड़ा

धनवार सीट पर पूरे राज्य की नजर है. झाविमो अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की साख दावं पर लगी है. बाबूलाल गृह क्षेत्र में चुनाव लड़ कर वह आगे बढ़ना चाहते हैं. वहीं माले और भाजपा ने जोरदार घेराबंदी की है. माले का यहां अपना जनाधार है. लोकसभा चुनाव में इस विधानसभा में बढ़त बना कर माले ने अपनी ताकत दिखायी थी. माले के प्रत्याशी राजकुमार यादव लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं. उधर भाजपा के उम्मीदवार लक्ष्मण सिंह मोदी की लहर पर सवार हैं. पूर्व आइपीएस अधिकारी लक्ष्मण सिंह जातीय गोलबंदी के फिराक में हैं. निर्दलीय उम्मीदवार शफीक अंसारी का झामुमो ने समर्थन कर दिया है. इससे मुकाबला रोचक हो गया है. मुसलिम वोट बैंक पर सबकी नजर है. मुसलिम वोट बैंक में सेंधमारी को लेकर हलचल है. धनवार सीट पर बनते-बिगड़ते समीकरण के बीच हवा का रुख भांपना बहुत आसान नहीं है.

मांडू : परंपरागत वोट बैंक में सेंधमारी

परंपरागत वोट बैंक में जबरदस्त सेंधमारी है. यहां भाजपा के कुमार महेश सिंह, झामुमो के जयप्रकाश भाई पटेल, झाविमो के चंद्रनाथ भाई पटेल और जदयू के खीरू महतो जैसे दिग्गज खिलाड़ी मैदान में हैं. 12 अन्य उम्मीदवार भी हवा अपने पक्ष में बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं. इस सीट पर भाजपा-जदयू गंठबंधन 20 वर्षो बाद टूटा है. झामुमो की इस परंपरागत सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार की अनुपस्थिति और भाजपा उम्मीदवार के चुनाव मैदान में आने से मुकाबला रोचक बना है. कुरमी बहुल क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण भी मतदाताओं के बीच अहम स्थान बनाया है. चुनाव प्रचार में ग्रामीण और कोयलांचल बहुल इलाकों में मतदाताओं के मुद्दे अलग-अलग दिखे. राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल के बीच मतदाता गोलबंद हुए. उम्मीदवारों की बढ़त क्षेत्रवार बनता दिख रहा है. मतदाताओं का धुव्रीकरण राष्ट्रीय मुद्दे, क्षेत्रीय मुद्दे, जातीय मुद्दे और उम्मीदवारों के बीच होगा. ध्रुवीकरण का यह समीकरण जिसके पक्ष में बैठेगा उसी उम्मीदवार के माथे पर सेहरा बंधेगा. झामुमो प्रत्याशी जयप्रकाश भाई पटेल को स्व टेकलाल महतो के बनाये सामाजिक समीकरण पर भरोसा है. वहीं भाजपा प्रत्याशी कुमार महेश सिंह पुराने समीकरण के साथ-साथ नरेंद्र मोदी की लहर में नैया पार करना चाहते हैं. झाविमो प्रत्याशी चंद्रनाथ भाई पटेल एक मौका मांग रहे हैं. जदयू उम्मीदवार खीरू महतो को गंठबंधन की राजनीति से उम्मीद जगी है.

चार कोण में फंसी सीट

बरही सीट पर पहली बार चतुष्कोणीय मुकाबला होगा. 1995 से 2009 तक सीधा मुकाबला हुआ है. मुकाबला कांग्रेस के मनोज कुमार यादव, झामुमो के साबी देवी, भाजपा के उमाशंकर अकेला और झाविमो के योगेंद्र प्रताप सिंह के बीच है. अन्य 10 उम्मीदवारों ने भी जोर लगा रहे हैं. यादव, मुसलिम, वैश्य और अन्य जातियों के बीच राजनीतिक समीकरण बना कर बढ़त का दावा हो रहा है. चारों उम्मीदवारों के पक्ष में मतदाताओं के गोलबंदी के भी अलग-अलग कारण दिख रहे हैं. जातीय समीकरण राजनीतिक मुद्दों पर उम्मीदवारों का व्यक्तित्व भारी पड़ता दिख रहा है. मतदाताओं को रिझाने व अपने पक्ष में करने में कोई उम्मीदवार पीछे नहीं हैं. नये समीकरण में उम्मीदवार ही उम्मीदवार का खेल बिगाड़ेंगे. किसको फायदा, किसको नुकसान होगा, यह भविष्य के गर्त में है.

पांच के बीच टक्कर, लगायी ताकत

बरकट्ठा में मुकाबला रोचक है. मुख्य मुकाबला झाविमो के जानकी यादव, भाजपा के अमित यादव, जदयू के बटेश्वर मेहता, झामुमो के दिगंबर प्रसाद और झापा के राजेंद्र प्रसाद के बीच है. अन्य आठ उम्मीदवार भी मैदान में हैं. पिछले विधानसभा चुनाव अमित यादव और जानकी यादव के बीच कांटे का मुकाबला हुआ था. इस बार भी दोनों उम्मीदवार एक दूसरे को चुनौती दे रहे हैं. लेकिन इस बार कांग्रेस, जदयू और राजद महागंठबंधन के उम्मीदवार बटेश्वर मेहता और झामुमो से दिगंबर मेहता के चुनाव मैदान में आने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है. वहीं झारखंड पार्टी के राजेंद्र प्रसाद भी मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर अलग कोण बना रहे हैं. मतदाताओं के बीच प्रत्याशी की छवि निर्णायक हो सकती है. जातीय गोलबंदी को प्रत्याशी अपने पक्ष में करने में लगे हैं. मुकाबले में संघर्ष, लंबी राजनीति और वर्तमान राजनीतिक हालात की दुहाई के बल पर सेहरा बांधने की तैयारी हो रही है.

चुनावी राह में कांटे, लगा रहे हैं जोर

सिल्ली के चुनावी राह में प्रत्याशी कांटे बिछा रहे हैं. यहां सुदेश कुमार महतो को अपनी साख बचानी है. भाजपा-आजसू गंठबंधन की प्रतिष्ठा इस सीट से जुड़ी है. झामुमो के प्रत्याशी अमित महतो घेराबंदी में लगे हैं. तीन बार के विधायक रहे सुदेश कुमार महतो को भी पसीना बहाना पड़ रहा है. भाजपा के बड़े नेताओं का साथ मिल रहा है इन्हें. दोनों ही प्रत्याशी वोटरों की गोलबंदी में लगे हैं. झामुमो ने पूरी ताकत लगा दी है. महतो वोट बैंक को शिफ्ट कराने की रणनीति है. इसके साथ ही आदिवासी वोट बैंक को झामुमो आधार मान कर चल रहा है. उधर आजसू अपने परंपरागत वोट को समेटने में लगा है. महिला वोटर बड़ी ताकत है. आजसू को भाजपा के साथ गंठबंधन के बाद नये समीकरण पर भरोसा है. आजसू सुदेश विरोधियों की खेमाबंदी में लगी है. इधर कांग्रेस के दिनेश साहू भी ताकत लगा रहे हैं.

समीकरण बनाने-बिगाड़ने का खेल

सिमरिया विस क्षेत्र से 13 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैं़ इस क्षेत्र में मुख्य मुकाबला भाजपा के सुजीत भारती, झाविमो के गणोश गंझू, राजद के मनोज चंद्रा, भाकपा के विनोद बिहारी पासवान के बीच होने की संभावना है़ सभी प्रत्याशियों ने क्षेत्र में चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंकी है़ लोगों को तरह-तरह के वादे कर लुभाने का प्रयास किया है़ विस क्षेत्र के सभी गांव-गली में घूम-घूम कर मतदाताओं से मिल अपने पक्ष में वोट करने की अपील की़ भाजपा, जेवीएम, राजद व झामुमो के कई स्टार प्रचारक यहां आकर अपने-अपने पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में वोट मांगें. अब जनता की बारी है़ जातीय समीकरण बनाने-बिगाड़ने का खेल चल रहा है. जातीय गोलबंदी के सहारे उम्मीदवार चुनावी जंग जीतने की कोशिश कर रहे हैं.

तीन कोण में फंसी सीट, सेंधमारी

ईचागढ़ में चुनावी रंजिश उफान पर है. हर तरफ लड़ाई तेज है. ईचागढ़ की सीट तीन कोणों में फंसती नजर आ रही है. हर तरफ वोट बैंक में सेंधमारी है. विधायक अरविंद सिंह उर्फ मलखान सिंह का रास्ता रोकने के लिए प्रत्याशियों ने दम लगा दिया है. अरविंद सिंह को अपने पुराने वोअ बैंक पर भरोसा है. वह जातीय वोट बैंक के बिखराव का फायदा लेने के जोड़-तोड़ कर रहे हैं. भाजपा के साधु चरण पूरे दमखम से मैदान में है. मोदी लहर का भी भरोसा है. भाजपा ने जातीय गोलबंदी का भी कार्ड खेला है. उधर झामुमो की सविता महतो अपने स्व पति सुधीर महतो की विरासत लेकर मैदान में उतरी है. झामुमो अपनी खोयी जमीन वापस लेने के लिए जोर लगा रहा है. झामुमो अपने पक्ष में अल्पसंख्यक वोटरों को करने में जुटी है. कांग्रेस प्रत्याशी हिकिम महतो ने भी ताकत झोंक दी है. कांग्रेस को अपने परंपरागत वोट बैंक पर भरोसा है.

शहरी मतदाताओं के भरोसे प्रत्याशी

कांके विधानसभा क्षेत्र का परिणाम शहरी मतदाताओं पर निर्भर है. कांके चौक से शहर वाले वोटरों पर इस बार भी पूरा परिणाम निर्भर करता है. ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा, कांग्रेस और झामुमो के प्रत्याशियों ने पूरी मेहनत की है. भाजपा ने इस बार डॉ जीतू चरण राम तथा कांग्रेस ने सुरेश बैठा को उम्मीदवार बनाया है. झामुमो के डॉ अशोक कुमार नाग भी रेस में शामिल होने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. पिछली बार भी भाजपा और कांग्रेस को ग्रामीण क्षेत्रों में बराबर मत मिला था. कहीं भाजपा तो कहीं कांग्रेस प्रत्याशी आगे थे. शहर में मिले समर्थन के कारण भाजपा जीत गयी थी. इस बार शहरी मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए कांग्रेस और झामुमो ने भी एड़ी-चोटी लगाया है. भाजपा को उम्मीद है कि शहरी मतदाता पारंपरिक रूप से साथ देंगे. भाजपा प्रत्याशी बदल कर इस सीट पर छठी बार कब्जा करना चाहती है. वहीं कांग्रेस, झामुमो सहित 13 अन्य दल भाजपा का रास्ता रोकना चाह रहे हैं. इन दलों ने भाजपा की घेराबंदी के लिए पसीना बहाया है.

बाहरी-भीतरी की घेराबंदी में सीट

बेरमो सीट का नेतृत्व कांग्रेस के राजेंद्र सिंह कर रहे हैं. यहां भाजपा और भाकपा घेराबंदी कर रहे हैं. भाजपा ने योगेश्वर महतो को प्रत्याशी बनाया है. भाकपा के आफताब आलम को पिछली बार 21 हजार मत मिले थे. इनके मत पर सभी दलों की नजर है. भाजपा को मोदी का सहारा है. कोलियरी क्षेत्र होने के कारण यहां बड़ी आबादी दूसरे राज्यों से आकर बसे लोगों की है. करीब 15 हजार के आसपास ऐसे मतदाता है. इनको अपनी ओर करने का प्रयास भी किया जा रहा है. ये निर्णायक हैं. योगेश्वर महतो प्रयास कर रहे हैं ग्रामीण आबादी का समर्थन मिले. राजेंद्र सिंह को कोयला यूनियन से संबद्ध होने का फायदा-नुकसान भी हो सकता है. वह हाल के दिनों में कोयला कामगारों के लिए किये गये कार्यो को जनता के बीच लेकर गये हैं. झाविमो ने काशीनाथ सिंह को उम्मीदवार बनाया है. वह बाबूलाल मरांडी की छवि और अपनी पहचान के साथ मैदान में डटे हैं.

गोमिया : माधवलाल की राह में योगेंद्र

भाजपा प्रत्याशी माधवलाल सिंह की राह में इस बार कई रोड़े हैं. झारखंड मुक्ति मोरचा ने योगेंद्र प्रसाद को प्रत्याशी बनाया है. श्री महतो चुनाव से पहले आजसू में थे. श्री सिंह कांग्रेस के विधायक थे. दोनों दल बदल कर मैदान में हैं. जनता कंफ्यूज्ड है. जो पिछली बार पंजा के लिए वोट मांग रहे थे, वह आज कमल के लिए वोट मांग रहे हैं. जो पिछले कई सालों से केला छाप के साथ जनता के बीच थे, वह तीर धनुष के पक्ष में मत मांग रहे हैं. श्री सिंह को अपनी साफ सुथरी छवि के साथ पुराने साथियों पर भी भरोसा है. उम्मीद है कि उनका साथ मिलेगा. वहीं योगेंद्र महतो, मांझी और मुसलमान समीकरण को अपनी ओर कर चुनावी बाजी जीतने का प्रयास कर रहे हैं. पिछली चुनाव में वह मात्र सात हजार मतों से हार गये थे. झाविमो ने इस बार मैदान में 14 प्रत्याशी मैदान में है.

चंद्रप्रकाश को रोकने की जुगत

रामगढ़ विधानसभा सीट के लिए सभी प्रमुख दलों के प्रत्याशी पूरे दमखम से मैदान में हैं. विधायक चंद्रप्रकाश चौधरी का रास्ता रोकने के लिए सारे प्रत्याशियों ने दम लगाया है. चुनाव प्रचार का दौर खत्म हो गया है. अब मतदान की बारी है. वैसे यहां हर उम्मीदवार भी यही मानता चंद्रप्रकाश चौधरी, शहजादा अनवर, विनोद किस्कु के बीच लड़ाई होती नजर आ रही है. इस लड़ाई को निर्दलीय लड़ रहे पूर्व विधायक शंकर चौधरी ने भी रोचक बनाया है. उन्होंने भी क्षेत्र में जोर लगाया है. इसके अलावा झाविमो उम्मीदवार विजय जायसवाल व भाकपा उम्मीदवार भोगनाथ ओहदार चुनाव प्रचार में नजर आये हैं. आजसू के परंपरागत वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कोशिश हो रही है. वैसे भाजपा से मुख्यमंत्री रहते बाबूलाल यहां से उपचुनाव जीत चुके हैं.

प्रचार वार के बाद कांटे की टक्कर

हजारीबाग सदर विधानसभा सीट के लिए मुकाबला जोरदार है. भाजपा के मनीष जायसवाल, कांग्रेस के जयशंकर पाठक, निर्दलीय प्रत्याशी प्रदीप प्रसाद, झामुमो के भुवनेश्वर प्रसाद, झाविमो के मुन्ना मल्लिक और सीपीआइ के रजी अहमद चुनौती पेश कर रहे हैं. चुनावी मैदान में अन्य 15 उम्मीदवारों ने भी मतदाताओं के बीच छाप छोड़ा है. चुनाव प्रचार में उम्मीदवारों ने मतदाताओं के ध्रुवीकरण के लिए मुद्दों की बौछार लगायी. बड़ी-बड़ी रैली व रोड शो कर शक्ति प्रदर्शन में भी पीछे नहीं रहे. सभी प्रमुख दलों के उम्मीदवार मतदाताओं के बीच बढ़त बनाने का दावा कर रहे हैं. लेकिन मतदाता खामोशी से वोट देने के इंतजार में दिख रहे हैं. हजारीबाग विधानसभा में शहरी क्षेत्र व ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाता का रुझान भी अलग-अलग उम्मीदवारों के प्रति दिख रहा है. मतदान के दिन ही स्थिति स्पष्ट होगी कि मुकाबले में कौन बचे हैं.

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