आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बंध तथा हठयोग की शोधक क्रियाओं का अच्छा अभ्यास होना चाहिए. श्वास की चेतना, अजपा, जप, मनोपथ का ज्ञान, चक्रों की स्थिति आदि का सम्यक ज्ञान आवश्यक है. इसके अतिरिक्त मुद्राओं तथा बंधों का भी अच्छा अभ्यास होना चाहिए. मुख्य तथा महत्वपूर्ण बंध तीन हैं- जालंधर, उड्डियान तथा मूल बंध. मुद्रा तथा बंधों के अभ्यास से चक्र जागते हैं. नलिकाविहीन ग्रंथियों के स्त्राव नियमित होते हैं तथा शरीर में प्राण का प्रवाह सक्रिय होता है. क्रियायोग का अभ्यास प्रारंभ करने के पूर्व चार से पांच महीनों तक उपर्युक्त सभी तकनीकों का नियमित रूप से अच्छी तरह अभ्यास करना चाहिए. इसके बाद ही किसी योग्य अनुभवी शिक्षक से क्रियायोग का प्रशिक्षण लेना चाहिये. आजकल समूचे विश्व में काफी संख्या में लोग क्रियायोग सीख कर उसका अभ्यास कर रहे हैं. इनमें से अनेकों को बड़े आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त हुये हैं.
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प्रवचन:::: योग्य शिक्षक से ही क्रियायोग की शिक्षा लें
आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बंध तथा हठयोग की शोधक क्रियाओं का अच्छा अभ्यास होना चाहिए. श्वास की चेतना, अजपा, जप, मनोपथ का ज्ञान, चक्रों की स्थिति आदि का सम्यक ज्ञान आवश्यक है. इसके अतिरिक्त मुद्राओं तथा बंधों का भी अच्छा अभ्यास होना चाहिए. मुख्य तथा महत्वपूर्ण बंध तीन हैं- जालंधर, उड्डियान तथा मूल बंध. मुद्रा तथा […]
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