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सीट 20, मुकाबला के लिए योद्धा तैयार

रांची/जमशेदपुर : झारखंड में दूसरे चरण के 20 सीटों के लिए दो दिसंबर को चुनाव होना है. 20 सीटों के लिए 223 प्रत्याशी मैदान में हैं. कोल्हान और दक्षिणी छोटानागपुर की इन सीटों में मुकाबला तगड़ा है.पार्टियों के रणबांकुरे भी तैयार हैं. मतदान का दिन नजदीक आने के साथ ही सियासी हलचल तेज हुई है. […]

रांची/जमशेदपुर : झारखंड में दूसरे चरण के 20 सीटों के लिए दो दिसंबर को चुनाव होना है. 20 सीटों के लिए 223 प्रत्याशी मैदान में हैं. कोल्हान और दक्षिणी छोटानागपुर की इन सीटों में मुकाबला तगड़ा है.पार्टियों के रणबांकुरे भी तैयार हैं. मतदान का दिन नजदीक आने के साथ ही सियासी हलचल तेज हुई है. चुनावी मैदान में शह-मात का खेल चल रहा है. बाजी पलटने के लिए प्रत्याशी अपनी आखिरी गोटी चल रहे हैं.कहीं जातीय गोलबंदी की चाल, तो कहीं विकास का वास्ता. दलों के दिग्गजों के भी होश उड़े हुए हैं. संघर्ष हर सीट की लड़ाई को रोमांचक बना रहा है. प्रस्तुत है दूसरे चरण में हो रहे मतदान का सीट दर सीट विश्लेषण.

बाजी पलटने के लिए चल रहे दावं

मांडर विधानसभा में चुनाव रोमांचकारी है. 13 प्रत्याशी मैदान में हैं. प्रत्याशी बाजी पलटने के लिए हर कार्ड चलने को तैयार है. वर्तमान विधायक और तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार बंधु तिर्की का रास्ता रोकने के लिए विरोधी जोर लगा रहे हैं. भाजपा की गंगोत्री कुजूर को नरेंद्र मोदी का सहारा है. वहीं बंधु तिर्की को आदिवासी-अल्पसंख्यक वोट बैंक पर भरोसा है. निर्दलीय विधायक देवकुमार धान जातीय गोलबंदी करने में लगे हैं. आदिवासी के एक खास समूह पर इनकी नजर है. इसके लिए पसीना बहा रहे हैं. उधर कांग्रेस के रवींद्र भगत अपनी विरासत के साथ चुनावी मैदान में हैं. कांग्रेस को अपने परंपरागत वोट बैंक पर भरोसा है. सपा की सुखमनी तिग्गा की नजर भी अल्पसंख्यक वोट बैंक पर है. झामुमो के बुधवा उरांव भी दमखम के साथ मैदान में हैं. झामुमो भी यहां अपनी जमीन तलाश रही है. सभी प्रत्याशी बंधु तिर्की के वोट बैंक पर सेंधमारी की फिराक में हैं.

वोट बिखराव बदल सकती है कहानी

मनोहरपुर में इस बार पूर्व मंत्री जोबा मांझी झामुमो की टिकट से मैदान में हैं. 2009 के चुनाव में सुखराम की पत्नी नवमी मांझी झामुमो उम्मीदवार थीं. उन्हें 21 हजार से अधिक मत मिले थे. जोबा मांझी यूजीडीपी की टिकट से चुनाव लड़ी थीं. जोबा को भी 20 हजार से अधिक मत मिले थे. भाजपा से चुनाव जीतनेवाले प्रत्याशी गुरुचरण नायक को 27 हजार के आसपास मत मिले थे. झामुमो का मानना है कि मतों का यदि बिखराव नहीं हुआ, तो सीट आसानी से निकल जायेगी. राह में कांटा झामुमो के पूर्व जिला अध्यक्ष बिरसा मुंडा हैं. वह मधु कोड़ा की जय भारत समानता पार्टी से उम्मीद हैं. श्री मुंडा को झारखंड मुक्ति मोरचा के पुराने साथियों पर पूरा भरोसा है. श्री मुंडा मानकी मुंडा संघ के अध्यक्ष व बिरसाइत धर्म के प्रचारक हैं. इस कारण उनकी सामाजिक पकड़ भी है. कांग्रेस के सुभाष मुंडा को युवा चेहरा होने का फायदा मिल सकता है. उनके पिता मनोहरपुर में ही मुखिया हैं. उनकी अच्छी पकड़ है. सभी प्रत्याशियों की राह को कठिन करती स्नहेलता एक्का दिख रही है. वह लोकसभा चुनाव भी लड़ी थीं.

काम व कैडर के भरोसे सभी दल

सिसई विधानसभा क्षेत्र में इस बार मानव संसाधन विकास मंत्री गीताश्री उरांव की प्रतिष्ठा दावं पर है. उनकी राह रोकने के लिए भाजपा नेदिनेश उरांव को टिकट दिया. वहीं झामुमो के पुराने कैडर जिगा एस होरो बीच से रास्ता निकाल विधानसभा पहुंचना चाहते हैं. यहां किसी के लिए भी राह आसान नहीं है. दिनेश उरांव को सीटिंग विधायक रहते हुए भाजपा ने 2005 में टिकट नहीं दिया था. उनके स्थान पर समीर उरांव को उतारा गया था. वह जीते भी. 2009 में गीताश्री भाजपा को हरा कर विधायक बनीं. मंत्री रहते हुए क्षेत्र में काम करने का दावा भी कर रही हैं. उनकी पुश्तैनी राजनीतिक प्रतिष्ठा भी है. इसका लाभ वह लेना चाहती हैं. कांग्रेस, झामुमो और झाविमो की नजर मुसलिम और ईसाई मतदाताओं पर है. इसके बिखराव का फायदा भाजपा लेना चाहती है. इनके अतिरिक्त डीएसपी की नौकरी छोड़ चुनाव लड़ रहे झाविमो के एजरा बोदरा, झापा की किरण माला बाड़ा भी अंतिम क्षण में बाजी बदलने में लगे हैं.

मोदी के नाम और काम का भरोसा

तोरपा विधानसभा क्षेत्र इस बार अप्रत्याशित परिणाम भी दे सकता है. इस विधानसभा क्षेत्र जितनी कहानी बाहर दिख रही है. वहीं पूरी नहीं है. पिछली बार झारखंड मुक्ति मोरचा के प्रत्याशी पौलुस सुरीन जीते थे. उन पर हमेशा नक्सलियों को सहयोग करने का आरोप लगता रहा है. पौलुस सुरीन सरकार में रहे और बाहर भी. क्षेत्र में किये गये काम के भरोसे वह जनता के बीच हैं. दोबारा सीट निकालने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं. इनके रास्ते में भाजपा और झापा भी है. भाजपा उम्मीदवार कोचे मुंडा को कैडर का भरोसा है. वह विधायक भी रह चुके हैं. पूर्व में किये गये काम और मोदी लहर के असर में है. झापा उम्मीदवार सुमन भेंगरा के साथ युवाओं की टीम है. बिंयाचल के मुखिया सुमन की पहचान युवा नेता के रूप में है. प्रचार-प्रसार के दौरान युवाओं की टोली और जंगल के अंदर-अंदर गांवों तक की पहुंच दूसरी पार्टियों को परेशानी कर रही है.

राजा के रास्ते में विकास व प्रकाश

तमाड़ विधानसभा सीट पर इस बार आजसू और भाजपा ने संयुक्त उम्मीदवार विकास मुंडा को बनाया है. कांग्रेस ने शिक्षाविद् डॉ प्रकाश चंद्र उरांव को टिकट दिया है. दोनों प्रत्याशी वर्तमान विधायक राजा पीटर का रथ रोकना चाहते हैं. राजा पीटर मंत्री व विधायक के रूप में किये गये कार्यो के साथ जनता के बीच हैं. इस बार वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ रहे हैं. इससे पहले वह उप चुनाव में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को भी हरा चुके हैं. दूसरी बार जदयू से जीते थे. चुनाव से पहले भाजपा में चले गये थे. गंठबंधन में यह सीट आजसू को मिल गयी थी. इसके बाद राजा पीटर निर्दलीय लड़ रहे हैं. इनकी सभा में भीड़ भी हो रही थी. वैसे विकास को आजसू व भाजपा संयुक्त गंठबंधन का सहारा है. कांग्रेस प्रत्याशी डॉ प्रकाश चंद्र उरांव क्षेत्र के जाने माने शिक्षाविद हैं. झारखंड जन जातीय शोध संस्थान के निदेशक एवं राज्यपाल के ओएसडी रह चुके हैं.

नीलकंठ का रास्ता रोकने की मशक्कत

खूंटी के वर्तमान विधायक भाजपा के नीलकंठ सिंह मुंडा चौथी बार सीट पर कब्जा बनाये रखने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. पार्टी का कैडर वोट और मोदी लहर से इस नैय्या को पार पाना चाहते हैं. पिछले 15 साल में किये गये कार्यो का फल मांग रहे हैं. लोगों को अपनी सुलभ पहुंच की बात भी कह रहे हैं. इनके रास्ते का रोड़ा कांग्रेस की डॉ पुष्पा सुरीन बनी हुई हैं. झामुमो और झापा अपने पारंपरिक वोट के जरिये नीलकंठ सिंह मुंडा का रथ रोकना चाह रहे हैं. डॉ पुष्पा सुरीन बिरसा कॉलेज में लेरर हैं. पूर्व सांसद डॉ सुशीला एक्का से राजनीतिक विरासत मिली है. वह उनकी बहू हैं. इसका जन मानस पर अच्छा असर है.

एनोस को काम, भाजपा कैडर भरोसे

भाजपा व झामुमो इस बार हर हाल में एनोस एक्का का रथ रोकना चाह रहे हैं. झापा प्रत्याशी एनोस एक्का दो बार यह सीट जीत चुके हैं. इस बार चुनाव से ठीक पहले हत्या के एक आरोप में जेल चले गये हैं. भाजपा श्री एक्का पर लगे आरोपों का फायदा उठाना चाहती है. वहीं एनोस एक्का मंत्री के रूप में इस क्षेत्र में किये गये काम के भरोसे हैं. भाजपा ने मनोज नगेशिया को प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस के पुराने दिग्गज थियोडर किड़ो पिछले लोकसभा चुनाव में आजसू की टिकट से लड़े थे. पुराने और नये संपर्को के आधार पर वह रास्ता बनाने की कोशिश कर रहे हैं. सबका रास्ता बिगाड़ खुद रास्ता बनाने के लिए झामुमो के लुइस कुजूर भी मैदान में हैं.

गीता कोड़ा के सामने मंगल-मंगल

वर्तमान में जभासपा की गीता कोड़ा यहां से विधायक हैं. उन्हें भाजपा से मंगल सिंह सोरेन और झामुमो से मंगल सिंह बोबोंगा चुनौती दे रहे हैं. इस सीट पर रोजाना उम्मीदवारों के हार-जीत का समीकरण बन और बिगड़ रहा है. काफी लंबा और खदान बहुल क्षेत्र होने के कारण मतदाताओं का मूड भांप पाना किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं हो पा रहा है. गीता कोड़ा अपने काम को लेकर मतदाताओं के पास जा रही हैं, वहीं भाजपा मोदी लहर और खनन क्षेत्रों का विकास नहीं होने को मुद्दा बनाये रखा. झामुमो से मंगल सिंह बोबोंगा और कांग्रेस के सन्नी सिंकू भी अपनी दावेदारी मजबूत किये हुए हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में झामुमो की ताबड़तोड़ सभाएं हुई हैं.

सहिस, दुलाल, मंगल में मुकाबला

जुगसलाई से आजसू विधायक रामचंद्र सहिस फिर चुनाव मैदान में हैं. आजसू से गंठबंधन होने के बाद यहां से भाजपा ने कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है. यहां 14 प्रत्याशी हैं. कांग्रेस से टिकट लेने में कामयाब रहे पूर्व मंत्री दुलाल भुइयां ने इस क्षेत्र में पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी की सभा कराकर अपनी स्थिति मजबूत करने की भरपूर कोशिश की है. हालांकि वर्तमान विधायक सहिस को अपने द्वारा किये गये विकास कार्यो के साथ-साथ मोदी लहर का फायदा मिलने का भी भरोसा है. झामुमो के प्रत्याशी मंगल कालिंदी भी ग्रामीण वोट बैंक और अपने जनसंपर्क व मुख्यमंत्री की सभाओं के जरिये मुकाबले में खुद को मजबूत बनाया है.

बदला समीकरण, रोचक हुई लड़ाई

पिछले विस चुनाव में झामुमो के खाते वाली इस सीट पर सभी समीकरण उलट-पुलट हो गये हैं. उस समय के विधायक विद्युत वरण महतो भाजपा के सांसद हो चुके हैं और अब झामुमो से यहां पूर्व मंत्री दिनेश षाड़ंगी के बेटे कुणाल षाड़ंगी मैदान में हैं. पिछले तीन साल से क्षेत्र में सक्रिय कुणाल को युवा कार्यकर्ताओं का भरोसा है. वहीं भाजपा के डॉ दिनेशानंद गोस्वामी राजनीतिक अनुभव के कारण सभी वर्गो में अपनी पकड़ बनायी है. यहां बहुत बड़ा प्रभाव ओड़िया वोटरोंे का रहा है, लेकिन इस बार झामुमो, भाजपा और साथ ही झाविमो से समीर कुमार मोहंती के ओड़ियाभाषी होने के कारण यह प्रभाव कितना बरकरार रहेगा, यह देखना है.

संघर्ष में फंसी सीट

सिमडेगा में भाजपा प्रत्याशी विमला प्रधान एक बार फिर सीट बचाने में लगी हुई हैं. इस बार कड़ी टक्कर मिल रही है. उनके सामने कांग्रेस के बेंजामिन लकड़ा, झापा की मेनन एक्का और झामुमो के नियेल तिर्की हैं. पूर्व मंत्री श्रीमती प्रधान क्षेत्र में किये गये काम के साथ लोगों के बीच हैं. दावा कर रही है कि मंत्री रहते पर्यटन और महिला विकास के क्षेत्र में कई कार्य किये हैं. बेंजामिन लकड़ा शैक्षणिक योग्यता और क्षेत्र में लगातार रहने के दावे के साथ मैदान में हैं. पूर्व मंत्री एनोस एक्का की पत्नी को पति के काम का भरोसा है. जिला परिषद अध्यक्ष के रूप में किये गये काम के नाम पर वोट चाह रही हैं. झामुमो ने नियल तिर्की को उम्मीदवार बनाया है.

बड़कुंवर को मधु कोड़ा की चुनौती

मंझगांव सीट पर कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. खासकर जभासपा उम्मीदवार मधु कोड़ा की. वह इस सीट पर भाजपा के वर्तमान विधायक बड़कुंवर गगराई को टक्कर दे रहे हैं. यहां गृह मंत्री राजनाथ सिंह की सभा हो चुकी है. हो बहुल क्षेत्र होने के कारण सभी दलों की नजर इन पर है. गौड़ समाज का मत भी यहां महत्वपूर्ण है. झामुमो के निरल पुरती ने मुकाबले को रोचक बना दिया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कई सभाएं कर उनकी स्थिति को काफी मजबूत किया है. कांग्रेस के देवेंद्र नाथ चांपिया को अपने लंबे राजनीतिक अनुभव व पार्टी के वोट बैंक से काफी उम्मीद है. झाविमो प्रत्याशी सुखदेव बिरूली ने भी प्रचार में काफी ताकत झोंकी है.

मेनका को रोक रहे संजीव व दुखनी

पोटका ग्रामीण और अर्धशहरी इलाका है. यहां 12 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं. भाजपा विधायक मेनका सरदार तीसरी बार चुनावी मैदान में है. उनके खिलाफ कांग्रेस ने महिला प्रत्याशी दुखनी माई सरदार को उतारा है, जो जिला परिषद सदस्य भी हैं. इसके अलावा झामुमो ने नये चेहरा के तौर पर संजीव सरदार को चुनावी मैदान में उतारा है. झामुमो को इस सीट पर जहां अपने ग्रामीण वोटरों पर भरोसा है, वहीं भाजपा को एकमुश्त शहरी मतदाताओं के वोट मिलने की उम्मीद है. आंदोलनकारी और पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने भी मुकाबले को रोचक बना रहे हैं. यहीं नहीं, झाविमो के उपेंद्र सिंह सरदार भी चुनावी प्रचार में हैं.

राम को लक्ष्मण व सिंड्रेला की चुनौती

यह सीट वर्तमान में झामुमो के खाते में है. झामुमो विधायक रामदास सोरेन शहर से लेकर गांव तक की खाक छान रहे हैं. लेकिन उनके लिए मुकाबला आसान नहीं है. भाजपा से लक्ष्मण टुडू जहां उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं, वहीं राज्यसभा सांसद प्रदीप बलमुचु ने अपनी बेटी सिंड्रेला बलमुचु को कांग्रेस से टिकट दिलाकर मुकाबला काफी रोचक बना दिया है. वह खुद सिंड्रेला के साथ गांव-गांव का दौरा कर रहे हैं. नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण चुनाव परिणाम बहुत कुछ वोट प्रतिशत पर भी निर्भर करता है लेकिन चुनाव प्रचार के अंतिम समय तक सभी दल दूरदराज इलाके तक पहुंच बनाने में कामयाब रहे हैं.

अर्जुन को दशरथ से खतरा

खरसावां विस पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की प्रतिष्ठा की सीट है. पिछले चार बार से भाजपा यहां चुनाव जीतते आ रही है. इस बार भाजपा प्रत्याशी अजरुन मुंडा के सामने झामुमो के दशरथ गागराई (हांसदा) हैं. झामुमो ने अपने तेज प्रचार अभियान से मुकाबला रोचक बना दिया है. वहीं भाजपा यहां तरीके से काम कर रही है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह यहां सभा कर चुके हैं वहीं आजसू प्रमुख सुदेश महतो को महतो वोट बैंक को सुनिश्चित करने के लिए लगाया गया है. साथ ही राजनीतिक बयानबाजी और निजी छिंटाकसी के कारण भी इस बार का चुनावी पारा काफी गरम हो गया है. यहां कांग्रेस व झाविमो का कोई स्टार प्रचारक नहीं पहुंचा.

दीपक बिरुवा के सामने जेबी तुबिद

चाईबासा सीट पर मुकाबला रोचक है. वर्तमान में यह सीट झामुमो के खाते में है. वर्तमान विधायक व झामुमो प्रत्याशी दीपक बिरुवा को झामुमो के वोट बैंक पर पूरा भरोसा है और इसके लिए वे गांव-गांव घूम रहे हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी दीपक बिरुवा के समर्थन में सभा कर उनके पक्ष में माहौल बनाने की पुरजोर कोशिश की है. दूसरी ओर, भाजपा ने पूर्व लोक सेवक जेबी तुबिद पर अपना दांव खेल मुकाबले को रोचक बना दिया है. चाईबासा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा को भाजपा के लोग टर्निंग प्वाइंट मान रहे हैं. इसी दिन जभासपा प्रत्याशी सानगी बानरा भाजपा में शामिल हो गये. दूसरी ओर, प्रचार के अंतिम दौर में कांग्रेस ने पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सभा कराकर अपनी परंपरागत सीट पर खुद को दौड़ में बरकरार रखा है. झाविमो नेत्री गीता सुंडी ने जोरदार चुनाव प्रचार अभियान चलाकर अपने दावेदारी को बरकरार रखा है. इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार जॉन मिरन मुंडा की स्थिति भी मजबूत है.

सरयू, बन्ना, फिरोज, उपेंद्र मुकाबले में

जमशेदपुर पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र में हमेशा से मुकाबला काफी रोचक रहा है. इस बार भी वर्तमान विधायक व कांग्रेस प्रत्याशी बन्ना गुप्ता और भाजपा प्रत्याशी सरयू राय पिछले विधानसभा की तरह चुनाव मैदान में हैं. झाविमो से फिरोज खान और झामुमो से उपेंद्र सिंह भी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं. लेकिन इस विस में हार-जीत का पूरा समीकरण वोटों की सेंधमारी पर निर्भर करता है. मुसलिम मतदाताओं के साथ-साथ जातिगत समीकरण भी मायने रखता है. यहां प्रत्याशियों ने प्रचार माध्यमों के जरिये अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है. भाजपा को जहां प्रचार अभियान समाप्ति के एक दिन पहले जमशेदपुर में नरेंद्र मोदी की हुई सभा से काफी उम्मीदें हैं, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी अपने बलबूते चुनाव की नैया पार लगाने की कोशिश में लगे हुए हैं.

सबका मुकाबला रघुवर से

पूर्वी जमशेदपुर विधानसभा क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता है. 20 साल से यहां भाजपा के वर्तमान राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास चुनाव जीतते आये हैं. पांचवीं बार रघुवर दास की जीत के घोड़े को रोकने के लिए झारखंड विकास मोरचा के केंद्रीय सचिव अभय सिंह चुनावी मुकाबले में हैं, जबकि कांग्रेस ने यहां से कद्दावर नेता आनंद बिहारी दुबे को चुनावी मैदान में उतारकर मुकाबला रोचक बना दिया है. झामुमो की महिला प्रत्याशी कमलजीत कौर गिल भी जनसंपर्क के जरिये अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. इस विधानसभा में चुनाव में खड़े प्रत्याशियों की संख्या 14 है. झाविमो और कांग्रेस रघुवर दास के कार्यकाल को असंतोषजनक बताते हुए एक बार परिवर्तन के लिए वोट की अपील कर रहे हैं.

नोमी नमो के शशि शिबू के भरोसे

चक्रधरपुर विधान सभा क्षेत्र में नौ प्रत्याशी चुनाव मैदान में खड़े हैं. लेकिन खास बात यह है कि इस चुनाव में लगभग सभी चेहरे नये हैं. यह सीट भाजपा के खाते में थी. पूर्व विधायक लक्ष्मण गिलुवा यहां से सांसद बन चुके हैं. इस बार नामांकन प्रक्रिया के अंतिम समय में भाजपा को अपना प्रत्याशी बदलना पड़ा. पूर्व विधायक सुखराम उरावं की जगह उनकी पत्नी नोमी उरांव को टिकट दिया गया. हालांकि भाजपा चुनाव प्रचार के अंत-अंत तक इस झटके से पूरी तरह उबर चुकी है और जीत का दावा कर रही है. झामुमो के शशि भूषण सामड के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने ताबड़तोड़ सभाएं की हैं. सभी सभाएं ग्रामीण क्षेत्रों में हुई हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा की ओर से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अपना दमखम दिखा चुके हैं. हो-तमड़िया समुदाय में जहां भाजपा सेंध लगाने की कोशिश में रही, वहीं उरावं वोटरों में झामुमो अपनी पैठ बनाने की कोशिश करता रहा. इस विस क्षेत्र में मुसलिम, ईसाई मतदाता भी अच्छा-खासा प्रभाव रखता है. कांग्रेस के विजय सिंह सामड और झाविमो के आलोक मुंडु मुकाबले को रोचक बनाये हुए हैं.

शहरी व ग्रामीण वोटरों का समीकरण

झामुमो से निवर्तमान विधायक चंपाई सोरेन छठी बार किस्मत आजमा रहे हैं. वहीं भाजपा से गणोश महाली पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं. साथ ही कांग्रेस से बास्को बेसरा, झाविमो से सोखेन हेंब्रम, झापीपा से विशु हेंब्रम सहित 14 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं. आदित्यपुर शहरी क्षेत्र में हमेशा से भाजपा को फायदा मिलता रहा है, यहां इस बार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की सभा भी करायी गयी, लेकिन झामुमो इस बार यहां भी सेंधमारी करने की कोशिश में है. वहीं चंपाई सोरेन अपने अंदाज में ग्रामीणों के बीच चुनाव प्रचार में लगे रहे और उन्हें अपने मतदाताओं के भरोसे चुनावी बैतरणी पार करने की पूरी उम्मीद है. हालांकि यहां कांग्रेस व झाविमो के एक भी स्टार प्रचारक नहीं पहुंचे. यहां संथाल व हो समुदाय के मतदाता सबसे अधिक हैं जबकि सामान्य जाति व कुड़मी मतदाता भी चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं.

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