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बाल श्रमिक अधिनियम की खुलेआम उड़ रहीं धज्जियां

तेघड़ा. बाल श्रमिक अधिनियम की खुलेआम धज्जियां उड़ रही हैं. चाय-पान की दुकानों व ईंट चिमनियों में बाल श्रमिक मजदूरी करते देखे जा रहे हैं. उनका बचपन छिन रहा है. शिक्षा का प्रकाश उन तक नहीं पहुंच रहा है. आलापुर, घनकौल, बनहारा आदि गांवों में दर्जनों बच्चे स्कूल जाने के बजाय बकरियां, गाय व भैंस […]

तेघड़ा. बाल श्रमिक अधिनियम की खुलेआम धज्जियां उड़ रही हैं. चाय-पान की दुकानों व ईंट चिमनियों में बाल श्रमिक मजदूरी करते देखे जा रहे हैं. उनका बचपन छिन रहा है. शिक्षा का प्रकाश उन तक नहीं पहुंच रहा है. आलापुर, घनकौल, बनहारा आदि गांवों में दर्जनों बच्चे स्कूल जाने के बजाय बकरियां, गाय व भैंस चराने में लगे रहते हैं. किरतौल, घनकौल, वनहारा के 10-12 वर्ष के बालक, बालिकाएं पेड़ों की सूखी पत्तियां चुनने के लिए दूसरे गांव जाते हैं. 14-15 वर्ष तक की बच्चियां बीड़ी उद्योग से जुड़ी हुई हैं. कुछ बच्चे साइकिल पर फास्ट फूड, कुरकुरे, बिस्कुट आदि दुकानों में सप्लाइ करते हैं. उनके समक्ष घर चलाने की मजबूरी है. कई पदाधिकारी बतौर नौकर छोटे बच्चों को रखते हैं. सब्जी मंडियों में बच्चे सब्जी बेचते देखे जाते हैं. इन सबके बाद भी विभाग व प्रशासन मौन है.

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