19.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

विनय की परंपरा

ज्येष्ठ होने का पहला मानक है-वय. संसार में अवस्था से जो बड़ा होता है, उसको भी सामान्य माना जाता है. हमारी साधु-संस्था में भी अनेक साधु साथ में दीक्षित हो रहे हों, तो सामान्यतया जो अवस्था में बड़ा होता है, उसी को बड़ा माना जाता है. ज्येष्ठ होने का दूसरा मानक है-पर्याय. जो चारित्र-पर्याय में […]

ज्येष्ठ होने का पहला मानक है-वय. संसार में अवस्था से जो बड़ा होता है, उसको भी सामान्य माना जाता है. हमारी साधु-संस्था में भी अनेक साधु साथ में दीक्षित हो रहे हों, तो सामान्यतया जो अवस्था में बड़ा होता है, उसी को बड़ा माना जाता है. ज्येष्ठ होने का दूसरा मानक है-पर्याय. जो चारित्र-पर्याय में बड़ा होता है, वह पूजनीय होता है. ज्येष्ठ होने का तीसरा मानक है-प्रज्ञा. जो अधिक ज्ञानी है, वह भी पूज्य होता है.
दीक्षा-पर्याय में छोटा होने पर भी जो ज्ञान देता है, उसका भी किसी सद्गुरु और ज्ञानी-ये विनय ग्रहण करने के अधिकारी होते हैं. गुरु विशेष रूप से विनय प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं. सामान्यतया गुरु का भोजन चपाती हो सकता है, व्यंजन हो सकता है, उनके स्वास्थ्यानुकूल पदार्थ हो सकते हैं, किंतु गुरु का एक महत्वपूर्ण भोजन है विनय. शिष्यों के द्वारा जो विनय मिलता है, वह गुरु के लिए पोषण का काम करता है. शिष्य का धर्म है गुरु को विनय अर्पित करे. वह विनय गुरु की चित्तसमाधि में सहायक बनेगा और गुरु को बड़ा आश्वासन मिलेगा.
शिष्य का धर्म है कि वह गुरु के प्रति विनय का व्यवहार करे. विनय मानसिक भी होना चाहिए और व्यावहारिक भी होना चाहिए. व्यवहार में विनय झलकना भी चाहिए. हमारी परंपरा में गुरु के प्रति विनयभाव रखने के संस्कार दिये जाते हैं, जैसे- आचार्य पांव नीचे रखते हैं, तो पास खड़े शिष्य पांव के नीचे कंबल बिछा देते हैं. यह विनय की परंपरा है. गुरु के प्रति अंतरंग प्रीति का, श्रद्धा का भाव रहना चाहिए.
आचार्य महाश्रमण

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें