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प्रवचन:::: ज्ञानयोग का विस्तार शांति प्रदान करता है

आप सार को ग्रहण करेंगे तथा निस्सार का परित्याग करेंगे. आपको शीघ्र ही इस बात का बोध होगा कि स्वतंत्रता तथा बंधन दोनों के निर्माता आप स्वयं हैं. इसका संबंध किसी बाहरी तत्व से नहीं, अपितु आपकी स्वनिर्मित सीमाओं से है. जब आप दूसरों को पीड़ा तथा बंधन में देखते हैं (जिसके लिये वे स्वयं […]

आप सार को ग्रहण करेंगे तथा निस्सार का परित्याग करेंगे. आपको शीघ्र ही इस बात का बोध होगा कि स्वतंत्रता तथा बंधन दोनों के निर्माता आप स्वयं हैं. इसका संबंध किसी बाहरी तत्व से नहीं, अपितु आपकी स्वनिर्मित सीमाओं से है. जब आप दूसरों को पीड़ा तथा बंधन में देखते हैं (जिसके लिये वे स्वयं उत्तरदायी हैं) तो आपके अंदर इस बात का ज्ञान उदित होता है कि मनुष्य जैसा सोचता है, वैसा ही होता है. ज्ञानयोग के द्वारा मन अपने स्वभावजन्य परिवर्तनों के प्रभाव से मुक्त होता है तथा बाहरी तत्व इस शांति को भंग करने में असमर्थ होते हैं. साथ ही बुद्धि तथा मानसिक स्पष्टता पूरी तरह विकसित होती है. जैसे-जैसे साधक ध्यान द्वारा अपने अंदर निहित एकता का अनुभव करने लगता है, उसमें श्रद्धा, आत्म-विश्वास, स्वतंत्रता तथा बल आश्चर्यजनक रूप से विकसित होने लगते हैं.

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