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वर्ल्‍ड कप पर मजबूत दावेदारी

वर्ल्ड चैंपियन होने के लिए किसी टीम के खिलाड़ियों में जो गुण होने चाहिए, वे भारतीय खिलाड़ियों में है. और फिर खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने के मामले में धौनी का जवाब नहीं. इसलिए भारत को वर्ल्‍ड कप का एक सशक्त दावेदार माना जा रहा है. जब कोलकाता में रोहित शर्मा श्रीलंका के गेंदबाजों की धुनाई […]

वर्ल्ड चैंपियन होने के लिए किसी टीम के खिलाड़ियों में जो गुण होने चाहिए, वे भारतीय खिलाड़ियों में है. और फिर खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने के मामले में धौनी का जवाब नहीं. इसलिए भारत को वर्ल्‍ड कप का एक सशक्त दावेदार माना जा रहा है.

जब कोलकाता में रोहित शर्मा श्रीलंका के गेंदबाजों की धुनाई कर रहे थे, शतक और दोहरा शतक ठोंक रहे थे, क्रिकेटप्रेमियों के मन में यह बात चल रही थी कि बस, ऐसी ही धुनाई वर्ल्ड कप में करना. रोहित शर्मा की एक बड़ी रिकार्डतोड़ पारी ने भारतीय टीम का वर्ल्ड कप जीतने का दावा मजबूत कर दिया है. वनडे मैच में दोहरा शतक जमाना आसान काम नहीं होता. क्रिकेट के इतिहास में यह करिश्मा सिर्फ चार बार हुआ है. इसमें से दो बार रोहित शर्मा ने ही कमाल दिखाया है, इसलिए उन पर विश्वास पुख्ता हुआ है. जब 2010 में सचिन ने पहली बार वनडे में दोहरा शतक (दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ) जमाया था, तो शायद किसी ने सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी खिलाड़ी निकलेगा जो दो-दो बार दोहरा शतक (वनडे में) लगा लेगा. रोहित शर्मा एक धैर्यवान खिलाड़ी हैं, जो धीमी शुरुआत के बाद खेल को तेज करते हैं और बाद में इतने आक्रामक हो जाते हैं, जिससे गेंदबाजों की आफत आ जाती है.

दरअसल, भारतीय टीम अब दुनिया की किसी भी टीम से टक्कर लेने के लिए तैयार है. याद कीजिए पहले, दूसरे और तीसरे वर्ल्ड कप को. 1975 में पहले वर्ल्ड कप में भारत सिर्फ एक मैच (वह भी पूर्वी अफ्रीका से) जीता था, जबकि दूसरे वर्ल्ड कप में भारत का खाता भी नहीं खुला था. इसलिए इंग्लैंड में लगातार तीसरी बार जब वर्ल्ड कप (1983) होने जा रहा था, तो भारतीय टीम के पास कप जीतने का सपना तो नहीं था. हां, एक-दो मैच जीतने के बारे में जरूर सोच रही थी. उस वक्त टीम के कप्तान थे कपिल देव. टीम का मनोबल बढ़ा हुआ था. खास कर कपिल ने जब 175 रन की पारी खेली थी, उसके बाद से. फिर तो भारत ने इतिहास रच दिया था. जिस टीम को एक-दो से ज्यादा मैच जीतने की उम्मीद नहीं थी, उसने यह कमाल दिखाया था.

उसी वर्ल्ड कप से भारत ने वनडे में पांव जमाया था. बाद में अजहरुद्दीन और गांगुली की कप्तानी में भी भारत का प्रदर्शन अच्छा रहा. फिर 27 साल बाद पिछले वर्ल्ड कप में धौनी ने यही कमाल दिखाया और भारत ने कप जीता. अब भारत को खिताब बचाना है. यह काम आसान नहीं. खास कर तब, जब इस बार का वर्ल्ड कप ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड में होने जा रहा है. ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड में उछाल लेती गेंदों को खेलने में भारतीय बल्लेबाज चूक जाते हैं. ऐसी विकेट पर खेलने में परेशानी होती है. भारत को इस बार भी यही परेशानी होगी.

भारतीय टीम में बल्लेबाजों की कमी नहीं है. धवन, रहाणो और रोहित शर्मा आधार को मजबूत करनेवाले बल्लेबाज हैं, लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि इन खिलाड़ियों को इस बार भारतीय उपमहाद्वीप में नहीं, बल्कि दुनिया के तेज विकेट पर खेलना है, जहां गेंद स्विंग करती है, उछाल लेती है. इसलिए भारतीय बल्लेबाजों को उछाल लेती गेंदों पर खेलने का अभ्यास करना होगा. हालांकि, टीम में उत्साह है, क्योंकि उसके सभी बल्लेबाज फॉर्म में हैं. कप्तान विराट कोहली ने रांची में शतक जमा कर यह संदेश दे दिया है कि वे भी फॉर्म में हैं. रैना वनडे के माहिर खिलाड़ी हैं. बाकी का काम तो धौनी करेंगे ही. यानी भारतीय टीम बल्लेबाजी में दुनिया की सबसे मजबूत टीम है. इस टीम को विदेशी धरती पर भी वैसा ही खेल दिखाना होगा, जैसा वे भारतीय पिचों पर दिखाते हैं. वहां भारतीय खिलाड़ियों का सामना दुनिया के तेज गेंदबाजों से तेज विकेट पर होगा. वहां सुस्ती नहीं चलेगी.

भारत को अगर कप जीतने की चिंता है, तो गेंदबाजी पर ध्यान देना होगा. बल्लेबाजी के बल पर आप बड़ा स्कोर खड़ा कर सकते हैं, लेकिन इसे बचा नहीं सकते. 1983 के वर्ल्ड कप में भी भारत के पास कपिल को छोड़ कर कोई विश्व स्तर का तेज गेंदबाज नहीं था, लेकिन जो भी मध्यम गति के गेंदबाज थे (मोहिंदर अमरनाथ, रोजर बिन्नी, मदनलाल, संधू), उन्होंने अनुशासित गेंदबाजी की थी. टीम में अनुभवी ऑलराउंडर भरे पड़े थे. स्पिन गेंदबाजों ने भी काम किया था. इस बार भारत अगर कहीं से कमजोर है, तो वह है गेंदबाजी. ऐसी बात नहीं है कि भारतीय गेंदबाज विदेशों में कमाल नहीं दिखा सकते हैं. जिस तेज विकेट पर दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज घातक हो सकते हैं, उसी विकेट पर हमारे वरुण, यादव भी घातक हो सकते हैं. इसलिए भारत की वर्ल्ड कप की सफलता बहुत हद तक गेंदबाजों के प्रदर्शन पर भी निर्भर करेगी.

जीत के लिए किसी भी टीम में सिर्फ बड़े नामों का होना जरूरी नहीं है. टीम के सभी खिलाड़ियों का योगदान होना चाहिए. बेहतर नेतृत्व बहुत फर्क डालता है. इसमें धौनी माहिर हैं. टीम के खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने में धौनी का जवाब नहीं है. वर्ल्ड चैंपियन होने के लिए टीम के खिलाड़ियों में जो गुण होने चाहिए, वे भारतीय खिलाड़ियों में है. गेंदबाजी के कमजोर पक्ष को बल्लेबाजी से कुछ मदद मिलेगी. इसलिए भारत को वल्र्ड कप का एक सशक्त दावेदार माना जा रहा है.

अनुज कुमार सिन्हा

वरिष्ठ संपादक
प्रभात खबर

anuj.sinha@prabhatkhabar.in

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