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नानावती आयोग ने सीएम को सौंपी अंतिम रिपोर्ट (लीड)

2002 के गुजरात दंगा : 12 वर्ष से अधिक समय चली जांचएजेंसियां, गांधीनगरन्यायामूर्ति नानावती आयोग ने 12 वर्ष बाद 2002 के गुजरात दंगों पर अपनी अंतिम रिपोर्ट मंगलवार को मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंप दी. आयोग के सदस्य सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीटी नानावती और हाइकोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश न्यायमूर्ति अक्षय मेहता मुख्यमंत्री […]

2002 के गुजरात दंगा : 12 वर्ष से अधिक समय चली जांचएजेंसियां, गांधीनगरन्यायामूर्ति नानावती आयोग ने 12 वर्ष बाद 2002 के गुजरात दंगों पर अपनी अंतिम रिपोर्ट मंगलवार को मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंप दी. आयोग के सदस्य सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीटी नानावती और हाइकोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश न्यायमूर्ति अक्षय मेहता मुख्यमंत्री के आवास पर जाकर यह रिपोर्ट सौंपी. न्यायमूर्ति नानावती ने कहा कि हमने रिपोर्ट सौंप दी है, दो हजार से ज्यादा पृष्ठों कर है.’ हालांकि, उन्होंने रिपोर्ट के संबंध में कोई ब्योरा देने से इनकार कर दिया. आयोग को जांच पूरी करने के लिए करीब छह-छह माह का 24 बार विस्तार दिया गया. दंगों में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गये थे, जिनमें अधिकतर अल्पसंख्यक समुदाय के थे. आयोग ने टीओआर के तहत तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके उस समय के कैबिनेट सहयोगियों, वरिष्ठ अधिकारियों और कुछ दक्षिणपंथी संगठनों के पदाधिकारियों की भूमिकाओं की जांच की. जांच पर एक नजर जांच आयोग ने गोधरा ट्रेन अग्निकांड के संबंध में अपने निष्कर्षों का एक हिस्सा 2008 में सौंपा था. इसमें यह नतीजा निकाला गया था कि साबरमती आश्रम के एस-6 डिब्बे में गोधरा स्टेशन के पास लगी आग ‘सुनियोजित साजिश’ थी. शुरू में आयोग के विचारार्थ विषय (टीओआर) उस घटनाक्रम, परिस्थिति और तथ्यों की जांच थे, जिनके बाद साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे में आग लगी. गोधरा में ट्रेन में 27 फरवरी, 2002 के अग्निकांड और उसके बाद राज्य में भड़के सांप्रदायिक दंगों के मद्देनजर राज्य सरकार ने तीन मार्च, 2002 को जांच आयोग कानून के तहत आयोग का गठन किया था, जिसमें न्यायमूर्ति के जी शाह शामिल थे. मई 2002 में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीटी नानावती को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया. जून, 2002 में टीओआर में संशोधन किया गया, जिसके तहत आयोग को गोधरा घटना के बाद हुई हिंसा की घटनाओं की जांच करने को भी कहा गया. वर्ष 2008 में न्यायमूर्ति के जी शाह का निधन होने के बाद न्यायमूर्ति अक्षय मेहता को आयोग में नियुक्त किया गया.

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