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भू -अधिग्रहण कानून में बदलाव के प्रयास का विरोध हो : प्रशांत भूषण

कोयला खदानों की नीलामी की तीन बाधाओं को दूर करना चाहती है मौजूदा सरकार- वन अधिकार कानून व पर्यावरण कानून में भी बदलाव की हो रही कोशिश – निजी कंपनियों को खदान देने की चल रही तैयारी प्रमुख संवाददाता, रांची सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा है कि मौजूदा केंद्र सरकार की मंशा […]

कोयला खदानों की नीलामी की तीन बाधाओं को दूर करना चाहती है मौजूदा सरकार- वन अधिकार कानून व पर्यावरण कानून में भी बदलाव की हो रही कोशिश – निजी कंपनियों को खदान देने की चल रही तैयारी प्रमुख संवाददाता, रांची सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा है कि मौजूदा केंद्र सरकार की मंशा है कि रद्द कोयला खदानों की नीलामी की जाये. नीलामी करके निजी कंपनियों को खदान दी जायेगी. इसलिए सरकार खदान देने में आनेवाली तीन बाधाओं को दूर भी करना चाह रही है. खदान आवंटन के लिए जमीन अधिग्रहण करनी होगी. इसलिए सरकार वर्षों के संघर्ष के बाद बनी जमीन अधिग्रहण के नियमों में बदलाव करना चाह रही है. उन्होंने कहा कि इसका पूरे देश में व्यापक विरोध होना चाहिए. दूसरा यह कि सरकार वन अधिकार कानून में भी बदलाव का प्रयास करेगी. वहीं पर्यावरण कानून में भी संशोधन करना चाह रही है, ताकि पर्यावरण क्लीयरेंस लेना नहीं पड़े. सरकार इन्हीं तीन बाधाओं को दूर करना चाह रही है. अगर इन नियमों में तब्दीली हुई, तो जनता को बड़ा नुकसान होगा. इसलिए इन तीनों मुद्दे को लेकर संघर्ष की जरूरत है. उन्होंने यह भी कहा कि रद्द सारे खदानों की नीलामी की क्या जरूरत है? यह सवाल खड़ा हो? इतने खदानों से कोयला निकलेगा, तो आगे की पीढ़ी के लिए क्या बचेगा? सब हम खा जायेंगे, तो वे क्या खायेंगे? प्रशांत भूषण रविवार को यहां एक्सआइएसएस में सिस्टर वलसा जॉन स्मृति व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे.सरकारी कंपनी को ही ठीक कर चलायेंप्रशांत भूषण ने कहा कि एक ओर केंद्र की मौजूदा सरकार कहती है कि भ्रष्टाचार समाप्त हो रहा है. प्रधानमंत्री मोदी भी यह दावा कर रहे हैं. पर दूसरी ओर सरकार कहती है कि पब्लिक सेक्टर में भ्रष्टाचार है. सवाल खड़ा होता है कि यह कंपनी सरकार के अधीन है. ऐसे में इसी कंपनी को ठीक-ठाक कर पारदर्शी बनायें. उसे ही कोयला खदान दें. खदान निजी हाथों में क्यों दें? निजी कंपनियों का ध्यान मुनाफा पर उन्होंने कहा कि निजी कंपनियों का ध्यान केवल मुनाफा पर ही होता है. उसे पर्यावरण के बिगड़ने या लोगों के विस्थापन से फर्क नहीं पड़ता. कम से कम पब्लिक सेक्टर की जिम्मेवारी होती है. उसका ध्यान केवल मुनाफा कमाना ही नहीं होता है. पीपीपी के नाम पर जनता के साथ धोखाश्री भूषण ने कहा कि सरकार पीपीपी के नाम पर जनता को धोखा दे रही है. कहा गया कि खदान पब्लिक सेक्टर को दे रहे हैं, बाद में निजी कंपनियों को सौंप दिया. पीपीपी के नाम पर सारे एयरपोर्ट का भी निजीकरण कर दिया गया. जीने लायक नहीं रहेगी धरतीउन्होंने कहा कि पिछली व मौजूदा सरकार तेजी से विकास करना चाह रही है. लोहा/कोयला तेजी से निकाले जा रहे हैं, क्योंकि इंडस्ट्री चलानी है. तेजी से खनिज निकालने को रोका नहीं जा रहा है. कर्नाटक में तेजी से लोहा निकाला जा रहा है. ऐसे में 15 वर्षों में यह समाप्त हो जायेगा. तब हमारी धरती जीने लायक नहीं रहेगी. हमारी आगे की पीढ़ी के लिए कुछ नहीं बचेगा. सब खत्म हो जायेगा. न्यायिक व्यवस्था देश की अन्य व्यवस्था की तरहप्रशांत भूषण ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था देश की अन्य व्यवस्था की तरह ही है. सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट उसी व्यवस्था की तरह दिखाई पड़ता है, जैसा की अन्य व्यवस्था है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोट ने कोयला आवंटन, टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला आदि में बड़े फैसले लिये. 1993 से 2009 तक आवंटित 218 कोयला खदानों के आवंटन में से 214 को रद्द कर दिया गया. क्यों हुआ कोयला खदानों का आवंटन रद्दन्यायालय ने देखा कि कोयला खदानों का आवंटन राज्य सरकार को करना था, लेकिन केंद्र सरकार ने किया था. आवंटन में मनमानी/भ्रष्टाचार की बात आने पर उसे रद्द किया. चार का रद्द नहीं किया. इसमें से दो अल्ट्रा मेगा प्लांट्स हैं. दो सरकारी कंपनी को दिया गया था. श्री भूषण ने कहा कि यह बिल्कुल गैर संवैधानिक बात है कि निजी कंपनियों को बिना पैसे लिये ही आवंटन कर दिया गया था. जनता की संपत्ति को बिना उससे पूछे अपने मुनाफे के लिए दे दिया गया था. हो सकता है झारखंड में भी उनकी सरकार बने प्रशांत भूषण ने कहा कि केंद्र में सरकार बन गयी है. हो सकता है झारखंड में भी उनकी सरकार बन जाये. पर इसकी मंशा समझने की जरूरत है. ये संघर्ष तोड़ने, लोगों को बांटने, हिंदू-मुसलिम-ईसाई के नाम पर लड़ाई कराने का खेल खेल रहे हैं. ये पूरी तरह सांप्रदायिक व फासीवादी हैं. इससे सावधान रहें. इसे रोकने की कोशिश करें. सिस्टर वलसा को आदर्श बना कर लड़ेंउन्होंने सिस्टर वलसा जॉन के बारे में अपनी बातें रखी. कहा कि उन्हें आदर्श बना कर लड़ते रहना चाहिए. दोबारा आवंटन न हो: वेंकटेशमौके पर वरिष्ठ पत्रकार वेंकटेश रामाकृष्णन ने कहा कि कोयला खदानों का दोबारा आवंटन न हो. सुप्रीम कोर्ट ने आवंटन रद्द कर नयी परिस्थिति पैदा कर दी है. फिर लड़नी है लड़ाई : बेला बेला भाटिया ने कहा कि खदानों में नियम तोड़े जाते हैं. किसी की अनुमति नहीं ली जाती है. डीसी भी इसे नजरअंदाज करते हैं. लोगों की हित पर ध्यान नहीं दिया जाता है. यह हमारे लिए लंबी लड़ाई है. अब फिर से लड़ाई जारी करनी होती है. यह हमारे लिए चुनौती है. जमीन-संसाधनों की लूट की गयी : प्रो रमेशप्रो रमेश शरण ने कहा कि यहां जमीन-संसाधनों की लूट की गयी है. पेसा एक्ट लागू नहीं हुआ. खनिज-पानी की लूट हुई है. बड़े-बड़े डैम बने, पर सिंचाई घटा है. डैम का पानी खेतों में जाने के बजाय उद्योगों में जा रहा है. अभी बहुत बड़ी लड़ाई की जरूरत है. पछुवाड़ा के संघर्ष पर वीडियो बनायहां पर पछुवाड़ा के संघर्ष पर बने वीडियो फिल्म का विमोचन किया गया. मेघनाथ द्वारा बनाये गये हम आपके साथ हैं साथी, फिल्म प्रदर्शित की गयी.

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