अगर सरकार नीतियों का सही तरीके से पालन करे और कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहतर करने के साथ इंफ्रास्ट्रर के विकास पर जोर दे, तो झारखंड देश का अव्वल राज्य बन सकता है. इसके लिए सही राजनीतिक नेतृत्व के साथ ही दूरगामी विकास नीतियों को लागू करने की जरूरत है.
विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धता से अधिक राजनीतिक नेतृत्व की दूरगामी सोच मायने रखती है. आजादी के बाद देश के कुछ इलाकों में विकास को गति मिली. इन इलाकों में इस विकास को आधार बना कर आगे की रणनीति तय करते हुए समावेशी विकास करने पर जोर दिया गया. लेकिन आजादी के बाद कुछ इलाकों में विकास की रोशनी नहीं पहुंच पायी. ऐसे में विकास से वंचित क्षेत्रों में सरकार की नीतियों के खिलाफ लोगों में नाराजगी बढ़ने लगी. इसी नाराजगी का फायदा उठाते हुए कुछ नक्सली संगठनों ने अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया.
झारखंड में नक्सल समस्या शुरुआती दौर में कुछ क्षेत्र विशेष तक ही सीमित थी, लेकिन असमान विकास और समाज में बढ़ती असमानता के कारण यह समस्या दिन-प्रतिदिन गंभीर होती गयी. जहां सही मायने में विकास हुआ है, वहां नक्सली समस्या नहीं है. नक्सल समस्या आदिवासी बहुल क्षेत्रों और संसाधनों से संपन्न इलाकों में अधिक है. इसका मतलब साफ है कि आदिवासियों की मूल समस्या दूर करने को लेकर सरकारों ने गंभीर प्रयास नहीं किया. एक बात साफ है कि विकास की बदौलत नक्सल समस्या पर काबू पाया जा सकता है. लेकिन जिन इलाकों में प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध है, वहां के लोग सबसे गरीब हैं.
विकास के नाम पर स्थानीय लोगों की जमीनों का औने-पौने दाम पर अधिग्रहण किया जाता रहा. जमीन के अधिग्रणन के बावजूद इन लोगों का पुर्नवास नहीं किया गया. एक ओर संसाधनों का दोहन कर अरबों रुपये का मुनाफा कमाया गया और इसके एवज में लोगों को बुनियादी सुविधाओं भी नसीब नहीं हो पायी. इससे स्थानीय लोगों में आक्रोश फैलना स्वाभाविक है. इसके लिए सरकार और उसकी नीतियां जिम्मेवार हैं. झारखंड इसका अपवाद नहीं है. काफी संघर्ष के बाद झारखंड की पहचान एक अलग राज्य के तौर पर बनी. लेकिन जिस मकसद से राज्य का गठन हुआ, वह कुछ ही वर्षो में अपने रास्ते से भटक गया. अलग राज्य बनने के बाद राज्य में नक्सली समस्या और भी गंभीर हो गयी. गठन के बाद से ही राज्य में कोई सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी. संसाधनों का प्रयोग जनहित में करने की बजाय कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए किया जाने लगा. इससे राजनेता, नौकरशाह और अपराधियों के बीच सांठगांठ कायम हो गया. इस सांठगांठ के कारण हर स्तर पर भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया.
आज झारखंड में भ्रष्टाचार हर स्तर पर व्याप्त हो गया है. भ्रष्टाचार के कारण जनकल्याण योजनाओं का लाभ गरीबों तक नहीं पहुंच पा रहा है. आज भी राज्य में कई ऐसे इलाके हैं, जहां लोगों को सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. राज्य के गरीब लोगों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवा जैसी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. झारखंड में दलों को मकसद सिर्फ सत्ता हासिल करना रहा है. इसके लिए नक्सली संगठनों से सहयोग लेना भी इन्हें स्वीकार करना है. यही वजह है कि झारखंड में नक्सलियों का प्रभाव कम होने की बजाय बढ़ा है. अगर सरकार ईमानदारी से कोशिश करे तो नक्सल समस्या पर काबू पाया जा सकता है. आंध्र प्रदेश सरकार ने इसे साबित किया है. लेकिन झारखंड की विडंबना रही है कि वहां अस्थिर सरकार और भ्रष्टाचार हावी रहा है. इससे शासन के प्रति लोगों का विश्वास कम हुआ है.
किसी समस्या का समाधान कानून का सही तरीके से पालन कर किया जा सकता है. प्रशासन को पारदर्शी और साफ-सुथरा होना चाहिए. झारखंड गठन के बाद से ही वहां शासन व्यवस्था का ताना-बाना कमजोर होता चला गया. किसी सरकार ने इसे ठीक करने की कोशिश नहीं की. सिर्फ सत्ता बचाने के लिए शासन-व्यवस्था का प्रयोग किया जाता रहा. इससे कानून-व्यवस्था की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती गयी. एक ओर राज्य का अधिकांश क्षेत्र नक्सली गिरफ्त में पहुंच गया, वहीं दूसरी ओर कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती गयी. किसी भी राज्य में विकास के लिए कानून-व्यवस्था के साथ ही निवेश का बेहतर माहौल होना काफी महत्वपूर्ण होता है. सिर्फ संसाधनों की उपलब्धता विकास की गारंटी नहीं हो सकती है.
झारखंड में विकास की अपार संभावनाएं है. अगर सरकार नीतियों का सही तरीके से पालन करे और कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहतर करने के साथ इंफ्रास्ट्रर के विकास पर जोर दे, तो झारखंड देश का अव्वल राज्य बन सकता है. इसके लिए सही राजनीतिक नेतृत्व के साथ ही दूरगामी विकास नीतियों को लागू करने की जरूरत है. राज्य के लोग काफी मेहनती हैं और विकास की सभी संभावनाएं वहां मौजूद हैं. विकास को गति देकर नक्सल समस्या का भी समाधान हो सकता है.
(बातचीत पर आधारित)
शंकर रॉय चौधरी
पूर्व सेना प्रमुख
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