हमें यह अकसर कहा जाता है कि किसी भी परिस्थिति में गलती करने से बेहतर है कि उस विषय की जानकारी ले लें. कुछ समझ न आये, तो बिना हिचके सवाल पूछें. लेकिन जब यही काम बच्चे करते हैं और हमसे कोई सवाल पूछते हैं, तो हम उन्हें डांट देते हैं, यह कह कर कि ‘तुम बहुत ज्यादा ही सवाल पूछते हो, मुङो इस बारे में नहीं पता.’ अभी यह जानने की आपकी उम्र नहीं है. फालतू के सवाल मत पूछो, पढ़ाई पर ध्यान दो.. आदि.’
मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि सवाल करने की आदत आपके व्यक्तित्व की सुदृढ़ता के साथ ही पूर्णता पाने एवं जानने की ललक को दर्शाती है, न कि ज्ञान की कमी को. ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं कि बड़े होते बच्चों के मन में ढेर सारे सवाल पलते होंगे. उनके मासूम मन को उनके ही परिवेश से जुड़ा बहुत कुछ कभी हैरान करता होगा, तो कभी उन्हें परेशान भी करता होगा.
बच्चे तो हर समय कोई न कोई सवाल करेंगे ही. यह हम पर निर्भर करता है कि हम बच्चों को परेशान ही देखना चाहते हैं या उन्हें सवाल का जवाब देकर ज्ञानी बनाना चाहते हैं. माता-पिता या घर के अन्य बड़े-बुजुर्गो को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि बच्चों को उनके प्रश्नों का सही उत्तर मिले. घर के बड़े न केवल उन सवालों को दिल से सुनें, बल्कि उन्हें हल भी करें. हमें समझना होगा कि घर के इन छोटे सदस्यों को भी बहस, आपत्ति, आलोचना करने का अधिकार है. यही तरीका है, जिससे आप जान सकते हैं कि बच्च किस ओर जा रहा है. उसका व्यक्तित्व किस तरह का बन रहा है.
आप अपने बच्चे के सवालों पर गौर कर उसके आसपास के वातावरण को समझ सकते हैं, उसे गाइड भी कर सकते हैं. कई बार ऐसा होता है कि बच्चे के सवाल का जवाब हमें पता नहीं होता. या पता होता है, लेकिन हमारे पास शब्द नहीं होते कि इस बात को कैसे समझाया जाये. ऐसे वक्त में आप बच्चे से थोड़ा वक्त मांगें. उस सवाल का जवाब तलाशें. उसके बाद उसे समझाएं. आप चाहें, तो अपनी बात समझाने के लिए किस्से-कहानियों का प्रयोग कर सकते हैं. ध्यान रहे बच्चे की जिज्ञासा शांत करना हमारी जिम्मेवारी में शामिल है.
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